‘झील का नाम सागर है’ एक कस्बे के जनजीवन के आरोहों-अवरोहों की कथा है जिसका नाम है हरिपुर। हरि अनन्त हरिकथा अनन्ता की तरह हरिपुर और वहाँ रहने वाले लोगों की कथा भी सच कहें तो कभी खत्म होने वाली नहीं है। हरिपुर के सामाजिक जीवन में इतनी पेंच-परतें हैं कि जहाँ एक सिरा बन्द होता है वहीं दूसरा खुलने लगता है। पाठक देखेंगे कि यह उपन्यास जितना कुछ व्यक्त करता है उससे कहीं अधिक का संकेत करता चलता है और इस तरह हरिपुर और उसके रहवासियों की यह कथा उत्तर भारत के किसी भी कस्बे और वहाँ के लोगों की प्रतिनिधि कथा बन जाती है। पाठक सहज ही इसमें अपने आस-पास के लोगों को पहचानने लगता है और इस कथा से स्वयं को भी अभिन्न रूप से जुड़ा पाता है।
उपन्यास में एक विश्वविद्यालय की स्थापना का प्रसंग आता है जिसके जरिये हरिपुर की सियासत अपनी पूरी रंगत के साथ प्रत्यक्ष हो उठती है। यह पूरा प्रकरण जितना रोचक है उतना ही करुण भी है। इससे पता चलता है कि हमारे बड़े स्वप्नों की जड़ में भी कितनी क्षुद्रताएँ मौजूद रहती है जिन्हें प्राय: हम राजनीति कहकर नजरअंदाज कर देते हैं।
कस्बाई जीवन के विस्तृत विवरण इस उपन्यास को अतिरिक्त पठनीयता प्रदान करते हैं।
Language | Hindi |
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Binding | Paper Back |
Publication Year | 2024 |
Edition Year | 2024, Ed. 1st |
Pages | 256p |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publisher | Radhakrishna Prakashan |
Dimensions | 21.5 X 14 X 1.5 |