Jheel Ka Naam Sagar Hai

Edition: 2024, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Radhakrishna Prakashan
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Jheel Ka Naam Sagar Hai

‘झील का नाम सागर है’ एक कस्बे के जनजीवन के आरोहों-अवरोहों की कथा है जिसका नाम है हरिपुर। हरि अनन्त हरिकथा अनन्ता की तरह हरिपुर और वहाँ रहने वाले लोगों की कथा भी सच कहें तो कभी खत्म होने वाली नहीं है। हरिपुर के सामाजिक जीवन में इतनी पेंच-परतें हैं कि जहाँ एक सिरा बन्द होता है वहीं दूसरा खुलने लगता है। पाठक देखेंगे कि यह उपन्यास जितना कुछ व्यक्त करता है उससे कहीं अधिक का संकेत करता चलता है और इस तरह हरिपुर और उसके रहवासियों की यह कथा उत्तर भारत के किसी भी कस्बे और वहाँ के लोगों की प्रतिनिधि कथा बन जाती है। पाठक सहज ही इसमें अपने आस-पास के लोगों को पहचानने लगता है और इस कथा से स्वयं को भी अभिन्न रूप से जुड़ा पाता है।

उपन्यास में एक विश्वविद्यालय की स्थापना का प्रसंग आता है जिसके जरिये हरिपुर की सियासत अपनी पूरी रंगत के साथ प्रत्यक्ष हो उठती है। यह पूरा प्रकरण जितना रोचक है उतना ही करुण भी है। इससे पता चलता है कि हमारे बड़े स्वप्नों की जड़ में भी कितनी क्षुद्रताएँ मौजूद रहती है जिन्हें प्राय: हम राजनीति कहकर नजरअंदाज कर देते हैं।

कस्बाई जीवन के विस्तृत विवरण इस उपन्यास को अतिरिक्त पठनीयता प्रदान करते हैं। 

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Language Hindi
Binding Paper Back
Publication Year 2024
Edition Year 2024, Ed. 1st
Pages 256p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 21.5 X 14 X 1.5
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Prabhat Kumar Bhattacharya

Author: Prabhat Kumar Bhattacharya

प्रभात कुमार भट्टाचार्य

प्रभात कुमार भट्टाचार्य का जन्म 6 दिसम्बर, 1932 को हुआ। उन्होंने एम.ए. (राजनीति विज्ञान), पी-एच.डी. (गांधी दर्शन) की उपाधि प्राप्त की। राजनीति विज्ञान के प्रोफ़ेसर रहे। विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन सहित कई शैक्षणिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं की स्थापना व अध्यापन से जुड़े रहे।

उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं—‘राजनीति विज्ञान : एक अध्ययन’, ‘गांधी दर्शन’ (शोध सन्दर्भ ग्रन्थ); ‘एक गाँव घर सबका’ (नवसाक्षरों के लिए); ‘काठमहल’, ‘प्रेत शताब्दी’, ‘आगामी आदमी’ (समवेत मुक्तिकथा), ‘सतोरिया’ (नाटक); ‘रानी कैकेयी का सफ़रनामा’, ‘मगरमुँहा’, ‘झील का नाम सागर है’ (उपन्यास);  ‘कविता प्रभात : नीडराग’, ‘वृक्षराग’, ‘रागरंग’, ‘अनुराग’, ‘ऋतुराग’, ‘राग अजगरी’, ‘राग अवधूत’ (कविता-संग्रह); उन्होंने अठारह संस्कृत नाटकों का हिन्दी रूपान्तरण एवं पुनः रचना की है। शताधिक हिन्दी नाटकों की प्रस्तुति व निर्देशन। आठ संस्कृत नाटकों के मूल संस्कृत एवं हिन्दी रूपान्तरण का निर्देशन। मालवी लोक नाटक ‘माच’ का पुनराविष्कार एवं प्रयोग।

उन्हें उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के दो पुरस्कारों समेत ‘मध्य प्रदेश राष्ट्रभाषा प्रचार समिति सम्मान’, ‘संगीत नाटक अकादेमी सम्मान’, श्री मध्य भारत हिन्दी साहित्य समिति संस्थान के ‘शताब्दी पुरस्कार’, ‘भवभूति अलंकरण’, 10वें विश्व हिन्दी सम्मेलन में ‘विश्व हिन्दी सम्मान’, ‘कुसुमांजलि सम्मान’ से सम्मानित किया गया है।

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