‘जावेदनामा’ मुहम्मद इक़बाल का ऐसा महाकाव्य है जिसमें पहली बार विश्व के सभी प्रमुख धर्मों के महान व्यक्तित्वों को सम्मानजनक स्थान देकर उन्हें मानवता की विरासत के रूप में प्रस्तुत किया गया है। इस्लाम के अन्तिम पैग़म्बर मुहम्मद के मे’राज के बहाने यह काव्यकृति हिन्दुत्व, बौद्ध, ज़रतुश्त और इस्लाम समेत ईसाई धर्म की समेकित अभिव्यक्ति है।

मूल फ़ारसी में सन् 1932 में प्रकाशित इस काव्यकृति ने क्लासिक का दर्जा पा लिया था। इसे ‘शाहनामा’, ‘गुलिस्ताँ’, ‘दीवान’, ‘डिवाइन कॉमेडी’ और ‘फ़ाउस्ट’ की क़तार में शुमार किया जाने लगा। एशिया का ‘डिवाइन कॉमेडी’ कहे गए इस महाकाव्य के सभी मुख्य पात्र, यथा—मौलाना रूमी, विश्वामित्र, ज़रतुश्त, गौतमबुद्ध, टॉल्स्टाय, ग़ालिब, ताहिरा, हल्लाज, अब्दाली, नादिरशाह, टीपू सुल्तान, जमालउद्दीन अफ़ग़ानी, सईद हलीम पाशा और संस्कृत कवि भर्तृहरि सभी एशिया के हैं। गोएटे की तरह इक़बाल में भी अन्य परम्पराओं एवं संस्कृतियों के प्रति सहिष्णुता और आदर की भावना है। ‘जावेदनामा’ के माध्यम से इक़बाल का मक़सद सम्बन्धित क़ौमों को पाश्चात्य साम्राज्यवाद के विरुद्ध संघर्ष करने के लिए उत्प्रेरित भी करना था।

हिन्दी में पहली बार तथा विश्व की लगभग तमाम प्रमुख भाषाओं में अनूदित इस महाकाव्य में इक़बाल तत्त्व मीमांसात्मक विमर्शों से मुठभेड़ करने के साथ बीसवीं सदी की राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, नैतिक और धार्मिक पेचीदगियों के परिप्रेक्ष्य में अपनी महान कलात्मक क्षमताओं का इस्तेमाल मूलतः एक भविष्योन्मुख विश्वदृष्टि की स्थापना के लिए करते हैं। अपने ढंग की अपूर्व और अनूठी कृति जिसकी मिसाल विश्व साहित्य में नहीं मिलती।

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Language Hindi
Format Hard Back, Paper Back
Publication Year 2009
Edition Year 2009, Ed. 1st
Pages 360p
Translator Mohd. Shees Khan
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 21.5 X 14 X 1.8
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Mohd. Ikbal

Author: Mohd. Ikbal

मुहम्मद इक़बाल

जन्म : 9 नवम्बर, 1877

अल्लामा मुहम्मद इक़बाल आधुनिक इस्लामी जगत् के एकमात्र दार्शनिक हैं जिन्होंने इस्लाम तथा इस्लामी संस्कृति के वैचारिक आधारों को अपने चिन्तन का विषय बनाया है। आधुनिक मनुष्य धार्मिक अनुभूति की एक ऐसी प्रणाली की अपेक्षा करता है जो मूर्त चिन्तन की आदतों वाले मन के लिए उपयुक्त हो। इस्लाम की धार्मिक परम्परा और आधुनिक ज्ञान-विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में होनेवाले नवीनतम विकास के परिप्रेक्ष्य में इस्लामी चिन्तन की पुनर्रचना में इक़बाल ने आधुनिक मन की अपेक्षाओं की पूर्ति का एक महत्त्‍वपूर्ण प्रयास किया है। पुनर्रचना में इक़बाल का उद्देश्य धर्म एवं विज्ञान के प्रवर्गों के माध्यम से उस यथार्थता की

अभिपुष्टि एवं व्याख्या करना है जिसका संज्ञान धार्मिक अनुभूति द्वारा होता है। उनका मानना है कि आधुनिक मनोविज्ञान ने धार्मिक अनुभूति की अन्तर्वस्तुओं के मूल्यांकन और विश्लेषण पर ध्यान नहीं दिया है।

शिक्षा : 1895 में एफ़.ए., मरे कॉलेज, सियालकोट; 1897 में बी.ए. और 1899 में दर्शनशास्त्र

में एम.ए., गवर्नमेंट कॉलेज, लाहौर; 1907 में पीएच.डी., म्यूनिख विश्वविद्यालय।

छात्र-जीवन में ही प्रसिद्ध प्राच्यविद् सर टॉमस आर्नल्ड के सम्पर्क में आए। पेशे से प्राध्यापक रहे। राजनीति में भी दख़ल, लेकिन यह जगह उन्हें रास न आई।

प्रमुख कृतियाँ : ‘अस् रारे-ख़ुदी’, ‘पयामे-मश् रिक़’, ‘बाँगे-दरा’, ‘ज़बूरे-अजम’, ‘ज़र्बे-कलीम’ आदि।

सम्मान : ‘अल्लामा, सर’ का ख़िताब।

निधन : 21 अप्रैल, 1938; लाहौर।

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