Jansanchar Madhyam Aur Vishesh Lekhan (Swaroop Aur Prakar)

Author: Niranjan Sahay
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Jansanchar Madhyam Aur Vishesh Lekhan (Swaroop Aur Prakar)

आज हम ऐसे दौर में हैं जब पलक झपकते हम हजारों मील दूर बैठे परिचित से चेहरा देखते हुए बात कर सकते हैं, जिसे सम्भव किया है इंटरनेट और सूचना क्रान्ति के नूतन आविष्कार 'वीडियो कॉल' ने, जिसमें डाटा एक सेकेंड से भी कम समय में वह दूरी तय कर लेता है।

संचार के इतिहास में कई महत्त्वपूर्ण पड़ाव आए हैं। हमने बोलने के साथ-साथ गाना सीखा, विभिन्न वाद्य यंत्र बनाए एवं संगीत की रचना की। पहले पत्तों पर लिखना सीखा और फिर काग़ज़ का निर्माण हुआ, जिससे लिखे गए को संरक्षित रखना सम्भव हुआ। पन्द्रहवीं सदी में छापेखाने के आविष्कार ने वह रास्ता दिखाया, जिससे अखबार और किताब लाखों-करोड़ों लोगों तक पहुँच सकें। टेलीग्राफ की तारों से कोई भी लिखित सन्देश चन्द मिनटों में अपनी मंजिल तक पहुँचने लगा। टेलीफोन से हम एक-दूसरे से एक ही समय पर दूर बैठकर बात करने में सक्षम हुए।

हजारों वर्षों के इस तकनीकी कालक्रम में जो एक चीज समान रही है वह है—अपनी बात दूसरों तक पहुँचाने की आवश्यकता। आदि मानव इशारों से एक-दूजे को खतरे की चेतावनी देते थे, तो हम आज विभिन्न प्रयोजनों के लिए लिखित से लेकर वीडियो सन्देश और कॉन्फ्रेंसिंग तक कर लेते हैं। संचार अपने विचारों और जरूरतों को इसी तरह दूसरों तक पहुँचाने का काम है।

संचारशास्त्र के जाने-माने प्रणेता हैरॉल्ड लैसवेल के अनुसार, संचार प्रक्रिया का सार है कि किसने किससे किस माध्यम द्वारा क्या कहा और उसका (यानी कहे गए का) क्या प्रभाव पड़ा? यह पुस्तक संचार, जनसंचार और उनके विभिन्न पहलुओं की विस्तृत व्याख्या प्रस्तुत करती है।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2023
Edition Year 2023, Ed/ 1st
Pages 168p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 2
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Niranjan Sahay

Author: Niranjan Sahay

निरंजन सहाय

जन्म :  26 फरवरी, 1970; आरा, बिहार

पटना विश्वविद्यालय से स्नातक, जेएनयू से एम.ए. तथा एम.फिल. एवं मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर से पी-एच.डी ।

 हिन्दी  आलोचक और पाठ्यक्रम परिकल्पक के रूप में ख्यात। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में नियमित लेखन आकाशवाणी और दूरदर्शन से विभिन्न वार्ताएँ प्रकाशित।

प्रकाशित पुस्तकें : ‘केदारनाथ सिंह और उनका समय’, ‘आत्मानुभूति के दायरे’, ‘प्रपद्यवाद और नलिन विलोचन शर्मा’, ‘शिक्षा की परिधि’, ‘जनसंचार माध्यम और विशेष लेखन’, ‘कार्यालयी हिन्दी और कंप्यूटर अनुप्रयोग’।

सम्प्रति : हिंदी तथा आधुनिक भारतीय भाषा विभाग,  महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में अध्यक्ष पद पर कार्यरत।

ई-मेल : drniranjansahay@gmail.com

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