Janos Arany : Kathageet evam Kavitayen

Author: MARGIT KOVES
Edition: 2018, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
As low as ₹297.50 Regular Price ₹350.00
15% Off
In stock
SKU
Janos Arany : Kathageet evam Kavitayen
- +
Share:

हंगरी में उस समय एक संघर्ष चला जिसके अन्तर्गत हंगेरियन संस्कृति एवं साहित्य की स्वायत्त और जीवन्त सांस्कृतिक जड़ों का महत्त्व प्रस्तुत किया गया। इन प्रयासों में हंगेरियन राष्ट्रीय अभिजात वर्ग की भूमिका अहम रही। राष्ट्रीय आदर्श यानोश आरन्य और पैतोफ़ि के कार्यों में प्रकट थे। राष्ट्रीय आभिजात्यवाद, मौखिक परम्परा और साहित्यिक कार्य में जनता, किसान और अन्य सामाजिक समूहों को शामिल किया गया। ये अठारहवीं शताब्दी में शुरू हुआ और पैतोफ़ि और यानोश आरन्य के कार्यों में प्रभावशील रहा। पचास, साठ और सत्तर के दशक में पाल ज्युलोई (1826-1909) किश्फालुदी साहित्यिक संस्था के अध्यक्ष थे और बुडापेस्ट विश्वविद्यालय के प्राध्यापक रहे। पैतोफ़ि की मृत्यु के बाद पचास, साठ और सत्तर के दशक में राष्ट्रीय आभिजात्यवाद के प्रस्तुत होने के बाद आरन्य की कविताओं में परिपक्वता आई जोकि उनकी लघु कविताओं और अनुवाद-कार्य में दृष्टिगोचर होती है।

नाज्यकोरोश में स्थायी कार्य मिलने से पूर्व उन्हें तिसा परिवार में अध्यापन का कार्य मिला।

इस संग्रह में संकलित अधिकतर कविताएँ पचास के दशक में रची गई थीं मसलन ‘करार’, ‘मूँछ’ और ‘वो भी क्या दिन थे’; हालाँकि ‘विद्वान की बिल्ली’ कविता का रचनाकाल सन् 1847 है।

स्वतंत्रता-संग्राम की विफलता के बाद हंगेरियन साहित्यकारों ने काव्य-अभिव्यक्ति के नए रूपों की तलाश की। यह तलाश राष्ट्रीय आभिजात्यवाद के लिए भी महत्त्वपूर्ण थी जिसके तहत हंगेरियन पारिवारिक हालात को एक आदर्श रूप में दर्शाया गया। 'घरेलू गुफ़्तगू' कविता इसका एक उदाहरण है।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 2018
Edition Year 2018, Ed. 1st
Pages 104p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Write Your Own Review
You're reviewing:Janos Arany : Kathageet evam Kavitayen
Your Rating

Author: MARGIT KOVES

मारगित कोवैश

मारगित कोवैश दिल्ली विश्वविद्यालय में हंगेरियन भाषा पढ़ाने के लिए सन् 1983 में भारत आईं। इनकी रुचि उन्नीसवीं और बीसवीं शताब्दी के भारतीय और हंगेरियन साहित्य एवं पत्रकारिता में है। इस सिलसिले में इनके कई लेख प्रकाशित हो चुके हैं। इन्होंने हंगेरियन गद्य-संग्रह के हिन्दी अनुवाद ‘अभिनेता की मृत्यु : आधुनिक और उत्तर-आधुनिक हंगेरियन कहानियाँ और उपन्यास अंश’ का सम्पादन तथा दस आधुनिक हंगारी कवि और यानोश हाय के ‘गेज़ॉबबुआ’ का गिरधर राठी के साथ अनुवाद किया है। वे दिल्ली विश्वविद्यालय में स्लावोनिक और फिन्नोउग्रीयन अध्ययन विभाग में हंगेरियन भाषा और साहित्य पढ़ाती हैं। 

Read More
Books by this Author
New Releases
Back to Top