Jaise Chand Par Se Dikhti Dharti

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Jaise Chand Par Se Dikhti Dharti
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हरजेन्द्र चौधरी के पहले कविता-संग्रह ‘इतिहास बोलता है’ की कविताओं में जो गड़गड़ाता आवेश था, वह इस संग्रह की कविताओं में काफ़ी हद तक मंथर हो गया लगता है। समाज और संसार को अपनी अवधारणाओं, अपने सपनों के मुताबिक ढाल लेने की वह बेचैनी इन कविताओं में भी दिखाई पड़ती है लेकिन अधिक संयत, अधिक सधे हुए रूप में। चतुर्दिक घटित हो रहे सामाजिक परिवर्तन की गहरी पहचान और उसके सघन अनुभव इन कविताओं को अपेक्षाकृत अधिक 'स्थायी' प्रभविष्णुता प्रदान करते दिखाई पड़ते हैं। कवि यहाँ सामाजिक परिवर्तन की दिशा-गति के बिम्ब रचता है, जिनमें एक नैतिक आग्रह और 'रेजिस्टेंस' भाव अन्तर्निहित है। धरती पर से चाँद देखने की बजाय चाँद पर से धरती देखने-दिखाने वाली इन कविताओं में भाषा और बिम्बों की गजब की ताज़गी है। ये कविताएँ एक गहरी मानवीय संवेदना की कविताएँ हैं। यह आकस्मिक नहीं है कि हरजेन्द्र चौधरी की कविताओं में किसान, कवि, औरत और बच्चे की उपस्थिति बार-बार दर्ज होती है। यहाँ इन्हें मानवीय संवेदना के बचे रहने के लक्षण और उसे बचाए रखने की चिन्ता के प्रमाणों के रूप में भी पढ़ा-देखा जा सकता है। साथ ही इन कविताओं में हम अपने 'समय का चेहरा' देख सकते हैं, जो निरन्तर बदल रहा है—जितना बाहर जीवन में, उतना ही इन कविताओं के भीतर भी। प्रतिकूल परिस्थितियाँ और मानवीय संघर्ष—दोनों की टकराहट भरी पारस्परिकता बार-बार इन कविताओं में स्थान पाती है। सामूहिक ज़िन्दगी को अनेकविध प्रभावित करने वाले 'सुदूर' कारणों को भी इन कविताओं में बिना किसी बड़बोलेपन के इतनी सहजता से स्थान दे दिया गया है कि पाठक चमत्कृत हुए बिना इनकी पकड़ में आ जाता है।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2002
Edition Year 2024, Ed. 2nd
Pages 115p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1.5
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Author: Harjendra Chaudhary

हरजेन्द्र चौधरी

हरजेन्द्र चौधरी का जन्म 2 दिसम्बर, 1955 को गाँव धनाना, जिला भिवानी (हरियाणा) में हुआ। उन्होंने हिन्दी में एम.ए. किया। एम.फिल., पी-एच.डी., एल.एल. बी. की उपाधियाँ प्राप्त कीं। 1983 से कॉलेज ऑफ़ वोकेशनल स्टडीज (दिल्ली विश्वविद्यालय) में अध्यापन। 1994 से 1996 तक जापान के ओसाका विदेशी भाषा-अध्ययन विश्वविद्यालय में अध्यापन। विजिटिंग प्रोफेसर के रूप में वार्सा विश्वविद्यालय, वार्सा (पोलैंड) में भारत सरकार द्वारा प्रतिनियुक्त। अब सेवानिवृत्त।

उनकी प्रकाशित कृतियाँ हैं—‘इतिहास बोलता है’, ‘जैसे चाँद पर से ​दिखती धरती’, ‘फसलें अब भी हरी हैं’ (कविता-संग्रह); ‘पता नहीं

क्या होगा’ (कहानी-संग्रह)।

सम्प्रति :  स्वतंत्र लेखन

ई-मेल : visproharosa@gmail.com

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