Jadoon Ki Aakhiri Pakar Tak

Author: Ravindra Bharti
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Jadoon Ki Aakhiri Pakar Tak

रवीन्द्र भारती का कवि गाँव का कवि है। ठेठ देहाती। देहात के जीवन, उसके वृक्ष, वहाँ के चरवाहे, कुएँ, नदी का किनारा, किनारे पर जलती चिता से उठता धुआँ, लू से भरी पछेया हवा, सूखे हुए गाछ के पत्ते, जलती हवा में टनटनाते पत्ते, यानी पूरा देहाती वातावरण—इन कविताओं में साँस लेता और धड़कता प्रतीत होता है।

रवीन्द्र की ये कविताएँ औसत भारतीय जनमानस के उन उपेक्षित धूल-धूसरित खंडित व्यक्तित्व-बिम्बों को बिना किसी कालगत कलात्मक व पारिभाषिक जॉगर्नस में पहचान करवाने की ईमानदार कोशिश है। रवीन्द्र ने अपनी विषय-वस्तु के साथ एक अत्यन्त आत्मीय सम्बद्धता का अहसास कराते हुए भी पूरी सतर्कता के साथ उन अभिव्यक्ति-रूढ़ियों से बचने की कोशिश की है, जिनकी उपस्थिति का मुख्य प्रभाव आज कविता द्वारा उपस्थित मनुष्य की आदिम और ऐतिहासिक भावनाओं, आकांक्षाओं और हर्ष-विवाद को एक विशिष्ट कलात्मक मुद्रा में परिणत कर उनके वस्तुनिष्ठ द्वन्द्व की तपिश को कुन्द कर देता है।

रवीन्द्र भारती ग्रामीण जीवन की प्रशंसा नहीं करते, उसका उपहास भी नहीं करते, सहानुभूति भी नहीं दिखाते, बल्कि उसे अपनी संवेदना का अंग बनाते हैं। यानी, ये कविताएँ निजता, संलग्नता की सहज उपज हैं। कवि अपनी अभिव्यक्ति के प्रति ईमानदार है और उसके माध्यम से वह भाषा को नई ऊर्जा प्रदान करता है; कवि की हृदयस्पर्शी और अन्तरंग कविताओं में ‘गुल्लू’, ‘माँ का क़िस्सा’, ‘स्मृति-1’, ‘स्मृति-2’, ‘सूर्य की ज्योति’, ‘पेड़’, ‘रात का क़िस्सा’, पिछली बार जैसी एक से एक कविता जड़ों की आख़िरी पकड़ तक में संगृहीत हैं।

ये कविताएँ बार-बार पढ़ने के लिए विवश करती हैं। संक्षेप में कहना हो, तो कहेंगे कि रवीन्द्र भारती के कविता-संसार से गुज़रना अभूतपूर्व अनुभव से गुज़रना है।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 1980
Edition Year 2000, Ed. 2nd
Pages 84p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1
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Ravindra Bharti

Author: Ravindra Bharti

रवीन्द्र भारती

आपकी प्रकाशित कृतियाँ हैं—‘जड़ों की आख़िरी पकड़ तक’, ‘धूप के और क़रीब’, ‘यह मेरा ही अंश है’, ‘नचनिया’, ‘नाभिनालऔर जगन्नाथ का घोड़ा’ (कविता-संग्रह); ‘कम्पनी उस्ताद’, ‘फूकन का सुथन्ना’, ‘जनवासा’, ‘अगिन तिरियाऔर कौआहंकनी’ (नाटक)।

उनकी कविताएँ कई भाषाओं में अनूदित हुई हैं। नाटकों के भी अनेक मंचन हुए हैं जिन्हें रंगकर्मियों और दर्शकों, सभी ने सराहा है। कौआहंकनीनाटक पर फिल्म भी बनी है।

सम्मान और पुरस्कार : बिहार राष्ट्रभाषा परिषद का विशिष्ट साहित्य सेवा सम्मान, दिनकर सम्मान, मानव संसाधन मंत्रालय, भारत सरकार से सीनियर फेलोशिप।

सम्पर्क : ravinderbharti12@yahoo.com

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