Is Shahar Mein Tumhen Yaad Kar

Poetry
Translator: Kharakraj Giri
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Is Shahar Mein Tumhen Yaad Kar
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'इस शहर में तुम्हें याद कर' संग्रह की कविताएँ इसी दुनिया में एक ऐसी धरती की कविताएँ हैं, जहाँ आसमान में जब काले बादल मँडराते हैं, धरती बिवाइयों की तरह फटती है और अपनी पीड़ा किसी से नहीं कह पाती; जहाँ कुछ लोग बाज और चील की तरह अपनी उड़ान में शामिल हैं और कुछ उन तोते-मैना की तरह हैं जिनके पंख काट दिए गए हैं; जहाँ दया और प्रेम की हत्याएँ होती हैं तो अपराधियों के अपराध की सज़ा एक निरपराध को भुगतना पड़ता है; जहाँ एक भागा हुआ आदमी भागकर भी कहीं नहीं भाग पाता, वापस वहीं आ जाता है अपनी ग़लती पुन: दुहराने; जहाँ बूट रौंदते हैं सड़कों को तो आह में बस पिघलने को अभिशप्त पर्वत देखते रह जाते हैं कि रात में श्रमिकों की ख़ुशियों को जलानेवाले ही दिन में संरक्षक हैं...। ऐस में कवि की यह अदम्य जिजीविषा ही है कि वह अपनी आग से सृजन की ही कामना करता है और कहता है—'...तुम्हारे कारावास से परे/जो जीवन है/नितान्त नवीन जीवन/वहीं से गुज़रने दो/कि मैं तुम्हारी ईश्वरीय दुनिया में/पुन: एक युग ईश्वरहीन होकर जी सकूँ!

इस संग्रह की कविताएँ अपनी पीठ पर अपना बोझ लेकर अपने पैरों से यात्रा करनेवाले कवि की कविताएँ हैं, जो अपने वितान-उद्देश्य में जितनी मनुष्यों की उतनी ही प्रकृति की हैं—सुख, दु:ख, संघर्ष और सौन्दर्य के साथ; अपनी बोली-बानी, संस्कृति और सभ्यता के साथ; बदलते समय में सत्ता और समाज के बीच निरन्तर प्रदूषित होते कारकों के साथ—इसीलिए ये कविताएँ अपने पाठक से मुखर होकर संवाद भी करती हैं।

प्रेम है, बिछुड़न है और उसकी यादें भी हैं जो कवि की अपनी ज़मीन की ऋतुओं और पर्वतों की तरह जीने की कला में शामिल हैं, और इस तरह जैसे थाह के आगे अथाह की अभिव्यक्ति हों; वह कैनवस हों जहाँ कहने-भूलने के सम्बन्धों की हार-जीत का कोई भी चित्र बनाना बेमानी है। ईश्वर है तो आध्यात्मिक चेतना के उस रूप में जिससे कुछ कहा जा सके, जिसका कुछ सुना जा सके। आँसुओं में मन की बातें देखने-समझने की ये कविताएँ जो अनूदित होने के बावजूद अपरिचित नहीं लगतीं—साथ जगते हुए जीने की कविताएँ हैं।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2016
Edition Year 2016, Ed. 1st
Pages 128p
Translator Kharakraj Giri
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 1.5
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Editorial Review

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Virbhadra Karkidholi

Author: Virbhadra Karkidholi

वीरभद्र कार्कीढोली

5 मई, 1964 को सिक्किम में जन्म।

मूल रूप से नेपाली भाषा में लेखन।

आपकी प्रमुख पुस्तकें हैं—कविता : 'निर्माण यो मोड़सम्मको', 'आभास', 'कविता पर्खिएर आधारातसम्म', 'एक मुटठी कविता', 'शब्द र मन', 'अक्षरहरुको यात्राम', 'समाधि अक्षरहरू', 'ध्वनि-अन्‍तर्ध्वनि'; कहानी : 'शब्दमा मनका आवेगहरू' और 'समय र रागहरू'; संमरण : 'समिझएर उनीहरूलाई'।

आपकी कृतियों का अनुवाद विभिन्न भाषाओं में हुआ है, जिनमें हिन्‍दी में 'तुमने जीवन तो दिया...', 'शब्दों का कोहरा', 'समाधिस्थ अक्षर'; असमिया में 'वीरभद्र कार्कीढोलीर निर्वाचित कविता'; बांग्‍ला में 'नेपाली कवि वीरभद्र कार्कीढोलीर प्रतिनिधि कविता'; अंग्रेज़ी में 'एक्सप्रेसन ऑफ़ वर्ड्स', 'ए जर्नी ऑफ़ द लेटर्स' आदि शामिल हैं।

आप 'प्रक्रिया', 'प्रथा', 'स्थापना', 'होम्रो पीढ़ी' जैसी महत्त्वपूर्ण पत्रिकाओं के सम्‍पादन से भी जुड़े रहे हैं।

आप 'साहित्यश्री नेशनल अवार्ड', 'अन्‍तरराष्ट्रीय भाषा साहित्य विशिष्ट सम्मान', 'अन्‍तरराष्ट्रीय हिन्‍दी सार्क सम्मान', 'राष्ट्र गौरव सम्मान', 'निराला साहित्य गौरव सम्मान' सहित कई पुरस्कारों से सम्मानित भी किए जा चुके हैं।

सम्‍पर्क : birbhadra64@yahoo.com

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