Infocorp Ka Karishma

Author: Pradeep Pant
Edition: 2006, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
15% Off
Out of stock
SKU
Infocorp Ka Karishma

सिद्धान्त यह कि कोई सिद्धान्त नहीं। नीति यह कि अनीति भी उचित। नैकितता यह कि अनैतिकता से कोई परहेज़ नहीं। यदि सत्ता के लिए असत्य ही सत्य हो जाए तो उसका दंश समाज में हर किसी को झेलना पड़ता है। अव्यवस्था का पर्याय बनी राजनीतिक व्यवस्था को केवल अपनी चिन्ता रहती है, जिसके चलते सन्धियाँ-दुरभिसन्धियाँ उसकी प्राथमिकता बन जाती हैं। ऐसी ही सर्वग्रासी स्थितियों को रेखांकित करता है सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार प्रदीप पंत का उपन्यास ‘इन्फोकॉर्प का करिश्मा’, जिसमें वे सब हैं जो अपने-अपने ढंग से सत्ता-व्यवस्था को नियंत्रित करते हैं अथवा नियंत्रित करने की कोशिश में लगे रहते हैं और अपने साथियों-समर्थकों के साथ मिलकर स्वार्थों की सफलता के लिए समवेत प्रार्थना करते हुए आगे बढ़ते हैं। लेकिन घात-प्रतिघात की कुटिल चालों में यहाँ केवल अपने प्रतिद्वन्द्वियों को ही नहीं, वक़्त-ज़रूरत अपने निकटस्थों को भी क्रूरतापूर्वक ध्वस्त करने की तत्परता दिखाई पड़ती है, क्योंकि यहाँ न कोई स्थायी मित्र है और न बन्धु-बान्धव।

उपन्यास का यथार्थ प्रायः रचनाकार की कल्पना, और कई बार अतिकल्पना, से उभरता है, किन्तु ‘इन्फोकॉर्प का करिश्मा’ महज़ कल्पना अथवा अतिकल्पना नहीं है। इस कृति में कल्पना और अतिकल्पना केवल उसी सीमा तक है, जिस सीमा तक यथार्थ को अधिकाधिक धारदार और विश्वसनीय बनाने की ज़रूरत है।

प्रदीप पंत के भाषिक विन्यास में एक अद्भुत खिलंदड़ापन है। यह खिलंदड़ापन उपन्यास की संरचना को एक निश्चित तेवर देते हुए पात्रों के चरित्र को पर्त-दर-पर्त उघाड़ता चलता है।

सम्पूर्ण उपन्यास में अनेक पात्र अपने-अपने रहस्यलोक में बैठे हुए अपने-अपने ढंग से षड्यंत्र रचते नज़र आते हैं और ये षड्यंत्र ऊपरी तौर पर भले ही एक-दूसरे के विरुद्ध हों, किन्तु अपनी सम्पूर्णता में जन-सामान्य के ख़िलाफ़ हैं। इसीलिए अन्त तक पहुँचते-पहुँचते नज़र आने लगता है कि उपन्यास का कथ्य अपनी समग्रता में कॉमिक से कहीं अधिक ट्रैजिक है। कहना न होगा कि एक सफल कामदी का अन्त त्रासदी से ही होता है। यही उसका निर्णायक मोड़ होती है और कथावस्तु की जीवन्तता, शिल्पगत और भाषायी वैभव तथा निरन्तर चलती क़िस्सागोई के उपकरणों से प्रदीप पंत ने यही किया है—एक करिश्मे के आख्यान की रचना। ऐसा आख्यान जो केवल सत्ता-विमर्श ही नहीं, वरन् सत्ता का मर्सिया भी है।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 2006
Edition Year 2006, Ed. 1st
Pages 351p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 3
Write Your Own Review
You're reviewing:Infocorp Ka Karishma
Your Rating

Author: Pradeep Pant

प्रदीप पंत

अप्रैल, 1941 में हल्द्वानी, ज़िला नैनीताल में जन्मे प्रदीप पंत की शिक्षा-दीक्षा लखनऊ में हुई।

प्रदीप पंत का व्यंग्य उपन्यास ‘महामहिम’ अत्यन्त चर्चित रहा है जिसका मराठी में अनुवाद हुआ और कुछ अन्य भाषाओं में हो रहा है। उनके कई अन्य उपन्यास भी प्रकाशित हुए हैं।

उनके व्यंग्य-संग्रह हैं—‘मैं गुट निरपेक्ष हूँ’, ‘प्राइवेट सेक्टर का व्यंग्यकार’, ‘सच के बहाने’, ‘मीडियाकर होने के मज़े’, ‘आँगन में कागा बोला’ आदि।

कहानी-संग्रह हैं—‘चर्चित कहानियाँ’, ‘कुत्ते की मौत’, ‘आम आदमी का शव’, ‘एक से दूसरी’, ‘राजपथ का मेनहोल तथा अन्य कहानियाँ’।

कन्नड़ में अनूदित कहानियों का संकलन ‘न्यायामट्टू इतहार कथेगलु’ शीर्षक से प्रकाशित। देश-विदेश के उनके यात्रा-संस्मरणों की पुस्तकें हैं—‘सफ़र-हमसफ़र’, ‘कुछ और सफ़र’, ‘लौटने से पहले’, ‘महादेश की दुनिया’। लेखों और भेंटवार्ताओं की पुस्तकें हैं—‘स्त्री और समाज , ‘प्रश्न और प्रसंग’।

यशपाल जन्मशती वर्ष में वे हिन्दी अकादमी, दिल्ली की पत्रिका ‘इन्द्रप्रस्थ भारती’ के वृहद् ‘यशपाल विशेषांक’ का सम्पादन कर चुके हैं।

उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, अनेक साहित्यिक संस्थाओं तथा हिन्दी अकादमी, दिल्ली ने उन्हें साहित्य, भाषा तथा संस्कृति के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए सम्मानित किया है।

 

Read More
Books by this Author
New Releases
Back to Top