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स्वतंत्रता-पूर्व के संघर्षकाल में जिन कवियों की लेखनी ने भारतीय जन-गण के स्वाभिमान को जगाने और उनके भीतर स्वाधीनताबोध भरने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई,  उनमें मैथिलीशरण गुप्त अग्रणी हैं। युग की आवश्यकता मानकर उन्होंने न केवल भारत के अतीत के उज्ज्वल पक्षों का गायन किया बल्कि जहाँ आवश्यक समझा वहाँ जड़ और प्रासंगिक हो चुकी चीज़ों की आलोचना की तथा उन्हें छोड़कर आगे बढ़ने का आह्वान किया। वास्तव में वे भारतीय समाज की बहुविध उन्नति चाहते थे। यह उनकी राष्ट्रीय भावना थी। दूसरे शब्दों में, वे चाहते थे कि उनकी कविता भारतीयों के अन्तर में राष्ट्रीयता ​की और राष्ट्र के प्रति दायित्व की सम्यक भावना को दृढ़तर करने में प्रेरक बने।

‘हिन्दू’ को इस पृष्ठभूमि में ही देखा जा सकता है जिसमें अतीत का गौरव, वर्तमान की दुरवस्था की  आलोचनात्मक विवेचना और इन दोनों के सामंजस्य में एक सुन्दर-सुखद भविष्य की आशा, ये तीनों बातें दिखलाई पड़ती हैं।

समुदाय विशेष को विषय बनाकर रचे जाने के बावजूद ‘हिन्दू’ का कवि भारत में रहनेवाले समस्त समुदायों की पारस्परिक एकता का आकांक्षी है जिसे वह राष्ट्रीय उत्थान के लिए अपरिहार्य मानता है। गुप्त जी ने इस काव्य-कृति में यदि हिन्दू समुदाय के भूत-वर्तमान-भविष्य को अवलम्ब बनाकर अपने उद्गार प्रकट किए हैं तो इसको इस रूप में समझना असंगत न होगा कि इस तरह वे भारत के बहुसंख्यक समुदाय को उसके महत उत्तरदायित्व का स्मरण कराते हैं। इसी कारण यह पुस्तक अपने प्रथम प्रकाशन (1927) के लगभग एक सदी बाद भी उतनी ही महत्त्वपूर्ण है जितनी तब थी।

More Information
Language Hindi
Format Paper Back
Publication Year 1919
Edition Year 2023, Ed. 2nd
Pages 189p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1
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Maithlisharan Gupt

Author: Maithlisharan Gupt

मैथिलीशरण गुप्त 

जन्म : 3 अगस्त, 1886 (चिरगाँव, झाँसी) में एक सम्पन्न वैश्य परिवार में। पूरी स्कूली शिक्षा नहीं। स्वतंत्र रूप से हिन्दी, संस्कृत और बांग्ला भाषा एवं साहित्य का ज्ञान। मुंशी अजमेरी के कारण संगीत की ओर भी आकृष्ट।

काव्य-रचना का आरम्भ ब्रजभाषा में उपनाम ‘रसिछेन्द’ ‘सरस्वती’ 1905 के रूप में छपने के बाद से महावीरप्रसाद द्विवेदी के प्रभाव से खड़ीबोली में काव्य-रचना। द्विवेदी-मंडल के नियमित सदस्य। अपनी कृतियों से खड़ीबोली को काव्य-माध्यम के रूप में स्वीकृति दिलाने में सफल। 1909 में पहली काव्य-कृति ‘रंग में भंग’ का प्रकाशन। तत्पश्चात् ‘जयद्रथ-वध’ और ‘भारत-भारती’ के प्रकाशन से लोकप्रियता में भारी वृद्धि। 1930 में महात्मा गांधी द्वारा ‘राष्ट्रकवि’ की अभिधा प्रदत्त, जिसे सम्पूर्ण राष्ट्र द्वारा मान्यता।

प्रमुख कालजयी कृतियाँ : ‘जयद्रथ-वध’, ‘भारत-भारती’, ‘पंचवटी’, ‘साकेत’, ‘यशोधरा’, ‘द्वापर’, ‘मंगल-घर’ और ‘विष्णु प्रिया’। गुप्त जी ने बांग्ला से मुख्यतः माइकेल मधुसूदन दत्त की काव्य-कृतियों ‘विरहिणी वज्रांगना’ और ‘मेघनाद-वध’ का पद्यानुवाद भी किया। संस्कृत से भास के अनेक नाटकों का भी अनुवाद। उत्कृष्ट गद्य-लेखक भी, जिसका प्रमाण ‘श्रद्धांजलि और संस्करण’ नामक पुस्तक।

भारतीय राष्ट्रीय जागरण और आधुनिक चेतना के महान कवि के रूप में मान्य। खड़ीबोली में काव्य-रचना के ऐतिहासिक पुरस्कर्ता ही नहीं, साहित्यिक प्रतिमान भी।

सम्मान : ‘हिन्दुस्तान अकादमी पुरस्कार’, ‘मंगला प्रसाद पुरस्कार’, हिन्दी साहित्य सम्मेलन द्वारा ‘साहित्य वाचस्पति’, ‘पद्म भूषण’ आदि से सम्मानित।

निधन : 12 दिसम्बर, 1964

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