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Hindi Kahani Ki Ikkisavin Sadi : Paath Ke Pare : Path Ke Paas

Author: Sanjeev Kumar
Edition: 2022, Ed. 2nd
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
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Hindi Kahani Ki Ikkisavin Sadi : Paath Ke Pare : Path Ke Paas

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लम्बे-लम्बे अन्तराल पर तीन-चार कहानियाँ ही मैं लिख पाया, पर लिखने की ललक बनी रही जिसने यह ग़ौर करनेवाली निगाह दी कि अच्छी कहानी में अच्छा क्या होता है, कहानियाँ कितने तरीक़ों से लिखी जाती हैं, वे कौन-कौन-सी युक्तियाँ हैं जिनसे विशिष्ट प्रभाव पैदा होते हैं, कोई सम्भावनाशाली कथा-विचार कैसे एक ख़राब कहानी में विकसित होता है और एक अति-साधारण कथा-विचार कैसे एक प्रभावशाली कहानी में ढल जाता है इत्यादि। लेकिन जब आप एक कहानीकार पर या किसी कथा-आन्दोलन पर समग्र रूप में टिप्पणी कर रहे होते हैं, तब ‘ज़ूम-आउट मोड’ में होने के कारण रचना-विशेष में इस्तेमाल की गई हिकमतों, आख्यान-तकनीकों, रचना के प्रभावशाली होने के अन्यान्य रहस्यों और इन सबके साथ जिनका परिपाक हुआ है, उन समय-समाज-सम्बन्धी सरोकारों के बारे में उस तरह से चर्चा नहीं हो पाती। कहीं समग्रता के आग्रह से विशिष्ट की विशिष्टता का उल्लेख टल जाता है तो कहीं साहित्यालोचन को प्रवृत्ति-निरूपक साहित्येतिहास का अनुषंगी बनना पड़ता है।

जब 'हंस' कथा मासिक की ओर से एक स्तम्भ शुरू करने का प्रस्ताव आया तो मैंने छूटते ही इस सदी की चुनिन्दा कहानियों पर लिखने की इच्छा जताई। मुझे लगा कि मैं जिन चीज़ों पर ग़ौर करता रहा हूँ, उनका सही इस्तेमाल करने का समय आ गया है। यह इस्तेमाल सर्वोत्तम न सही, द्वितियोत्तम यानी सेकंड बेस्ट तो कहा ही जा सकता है।

आगे जो लेख आप पढने जा रहे हैं, वे 'खरामा-खरामा' स्तम्भ की ही कड़ियाँ हैं। इन्हें इनके प्रकाशन-क्रम में ही इस संग्रह में भी रखा गया है। कई कड़ियाँ ऐसी हैं जो अपनी स्वतंत्र शृंखला बनाती हैं।    

—भूमिका से

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back, Paper Back
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publication Year 2019
Edition Year 2022, Ed. 2nd
Pages 232p
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 21.5 X 14.5 X 1.5
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Sanjeev Kumar

Author: Sanjeev Kumar

संजीव कुमार

जन्म : 10 नवम्बर, 1967; पटना।

शिक्षा : पटना विश्वविद्यालय से बी.ए. और दिल्ली विश्वविद्यालय से एम.ए., एम.फ़िल, पीएच.डी.। फ़िलहाल दिल्ली विश्वविद्यालय के देशबंधु कॉलेज में एसोसिएट प्रोफ़ेसर।

किताबें : ‘जैनेन्द्र और अज्ञेय : सृजन का सैद्धान्तिक नेपथ्य’ (2011 के ‘देवीशंकर अवस्थी सम्मान’ से सम्मानित), ‘तीन सौ रामायणें और अन्य निबन्ध’ (सम्पादित), ‘बालाबोधिनी’ (वसुधा डालमिया के साथ सह-सम्पादन), योगेन्द्र दत्त के साथ मिलकर वसुधा डालमिया की पुस्तक ‘नेशनलाइज़ेशन ऑफ़ हिन्दू ट्रेडिशंस : भारतेन्दु हरिश्चन्द्र एंड नाइन्टींथ सेंचुरी बनारस’ का हिन्दी में अनुवाद—‘हिन्दू परम्पराओं का राष्ट्रीयकरण : भारतेन्दु हरिश्चन्द्र और उन्नीसवीं सदी का बनारस’, तेलंगाना संग्राम पर केन्द्रित पी. सुन्दरैया की किताब के संक्षिप्त संस्करण का हिन्दी में अनुवाद—‘तेलंगाना का हथियारबंद जनसंघर्ष’।

आलोचना के अलावा गाहे-बगाहे व्यंग्य, कहानी, निबन्ध, संस्मरण जैसी विधाओं में लेखन। 2009 से जनवादी लेखक संघ की पत्रिका ‘नया पथ’ के सम्पादन से जुड़ाव और 2018 से राजकमल प्रकाशन की पत्रिका ‘आलोचना’ के सम्पादन की शुरुआत।

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