‘हिन्दी एकांकी’ में लेखक ने भारतेन्दु काल से लेकर अब तक हिन्दी एकांकी का तथ्याधारित तर्कसंगत अध्ययन प्रस्तुत किया है। अनेकांकी नाटक से एकांकी का सम्बन्ध लगभग वही बनता है जो कहानी का उपन्यास से एक विधा के रूप में एकांकी की अपनी स्वतन्त्र सत्ता है, इसीलिए हिन्दी नाट्य परिदृश्य में उसकी उपस्थिति बराबर रहती आई है। कालान्तर में वह रेडियो रूपक, रेडियो नाटक और नुक्कड़ नाटकों के रूप में भी परवान चढ़ी और भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, भुवनेश्वर, अश्क आदि अनेक लेखकों ने उसे एक सशक्त अभिव्यक्ति-माध्यम के रूप में आगे बढ़ाया। इस पुस्तक में लेखक ने समीक्षा ग्रन्थों में आए कई बिन्दुओं को विस्तार देते हुए सभी विवादास्पद बिन्दुओं के विश्लेषण-विवेचन के उपरान्त हर बिन्दु पर तर्कसंगत निष्कर्ष देने की कोशिश की है। यत्र-तत्र बिखरी नई उपलब्ध सामग्री के समावेश के साथ-साथ नुक्कड़ नाटक को हिन्दी नाटक की नव्यतम प्रवृत्ति के रूप में स्वीकार करते हुए उसका भी विवेचन इस पुस्तक में किया गया है। इस पुस्तक के माध्यम से नई सामग्री एवं नए चिन्तन का समावेश करते हुए लेखक ने हिन्दी एकांकी का व्यवस्थित इतिहास पहली बार प्रस्तुत किया है।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publication Year | 2001 |
Edition Year | 2022, Ed. 5th |
Pages | 232p |
Publisher | Radhakrishna Prakashan |
Dimensions | 22 X 14 X 1.5 |