Hindi Ekanki

Drama Studies Books
Author: Siddhnath Kumar
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Hindi Ekanki

‘हिन्दी एकांकी’ में लेखक ने भारतेन्दु काल से लेकर अब तक हिन्दी एकांकी का तथ्याधारित तर्कसंगत अध्ययन प्रस्तुत किया है। अनेकांकी नाटक से एकांकी का सम्बन्ध लगभग वही बनता है जो कहानी का उपन्यास से एक विधा के रूप में एकांकी की अपनी स्वतन्त्र सत्ता है, इसीलिए हिन्दी नाट्य परिदृश्य में उसकी उपस्थिति बराबर रहती आई है। कालान्तर में वह रेडियो रूपक, रेडियो नाटक और नुक्कड़ नाटकों के रूप में भी परवान चढ़ी और भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, भुवनेश्वर, अश्क आदि अनेक लेखकों ने उसे एक सशक्त अभिव्यक्ति-माध्यम के रूप में आगे बढ़ाया। इस पुस्तक में लेखक ने समीक्षा ग्रन्थों में आए कई बिन्दुओं को विस्तार देते हुए सभी विवादास्पद बिन्दुओं के विश्लेषण-विवेचन के उपरान्त हर बिन्दु पर तर्कसंगत निष्कर्ष देने की कोशिश की है। यत्र-तत्र बिखरी नई उपलब्ध सामग्री के समावेश के साथ-साथ नुक्कड़ नाटक को हिन्दी नाटक की नव्यतम प्रवृत्ति के रूप में स्वीकार करते हुए उसका भी विवेचन इस पुस्तक में किया गया है। इस पुस्तक के माध्यम से नई सामग्री एवं नए चिन्तन का समावेश करते हुए लेखक ने हिन्दी एकांकी का व्यवस्थित इतिहास पहली बार प्रस्तुत किया है।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2001
Edition Year 2022, Ed. 5th
Pages 232p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1.5
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Editorial Review

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Author: Siddhnath Kumar

सिद्धनाथ कुमार

जन्म : 13 अगस्त, 1927; बक्सर (बिहार)।

शिक्षा : एम.ए., पीएच.डी, डी.लिट्.।

कुछ कॉलेजों में अध्यापन, आकाशवाणी के पटना केन्द्र में नाटक-लेखक और सहायक प्रोड्यूसर। सन् 1962 से निरन्तर राँची विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में रहे। वहीं से प्रोफ़ेसर पद से अगस्त, 1989 में सेवानिवृत्त।

कृतियाँ : ‘प्रसाद के नाटकों का पुनर्मूल्यांकन’, ‘हिन्दी एकांकी की शिल्पविधि का विकास’, ‘हिन्दी एकांकी’, ‘रेडियो नाट्य-शिल्प’, ‘वार्ता-शिल्प’, ‘रेडियो नाटक की कला’, ‘हिन्दी पद्यनाटक : सिद्धान्त और इतिहास’, ‘संवेदना और शिल्प’; समीक्षा-शृंखला की पाँच पुस्तकों में : ‘आधे-अधूरे’ (मोहन राकेश), ‘अंधेर नगरी’ (भारतेन्दु), ‘भारतदुर्दशा’ (भारतेन्दु), ‘चन्द्रगुप्त’ (प्रसाद) और ‘स्कंदगुप्त’ (प्रसाद) का अध्ययन; ‘टूटा हुआ आदमी’ और ‘जिन्दगी, तुम कहाँ हो?’ (काव्य); ‘कवि, सृष्टि की साँझ और अन्य काव्यनाटक’, ‘रंग और रूप’, ‘वे अभी भी क्वाँरी हैं’, ‘आदमी है नहीं है’, ‘मुर्दे जिएँगे’, ‘रोशनी शेष है’, ’आतंक’, ‘रास्ता बन्द है’ और ‘अशोक’ (नाटक); ‘कमाल कुर्सी का’, ‘चमचे वही रहे’, ‘मिले सुर मेरा-तुम्हारा’, ‘मियाँ-बीवी राज़ी तो’, ‘देशभक्ति की जय’ (व्यंग्य); जीवनचरित और बाल-साहित्य की अनेक पुस्तकें। ‘हिन्दी साहित्य कोश’, ‘हिन्दी साहित्य का बृहत् इतिहास’ आदि अनेक सन्दर्भ ग्रन्थों में टिप्पणियाँ और लेख।

सम्मान : सन् 1954 में वॉयस ऑफ़ अमेरिका की हिन्दी सर्विस द्वारा आयोजित रेडियो रूपक प्रतियोगिता में एक रूपक सर्वश्रेष्ठ रूप में पुरस्कृत। नाट्य कृतियों के लिए ‘राधाकृष्ण पुरस्कार’, ‘रामवृक्ष बेनीपुरी’ पुरस्कार (राजभाषा विभाग, बिहार); ‘भारतेन्दु हरिश्चन्द्र पुरस्कार’ (सूचना और प्रसारण मंत्रालय) आदि द्वारा सम्मानित।

 

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