स्व. प्रो. राधाकुमुद मुखर्जी की गणना देश के शीर्षस्थ इतिहासकारों में होती है और परम्परागत दृष्टि से इतिहास लिखनेवालों में उनका महत्त्वपूर्ण स्थान है।
प्रस्तुत पुस्तक में प्रो. मुखर्जी के वे भाषण हैं, जो उन्होंने सर विलियम मेयर भाषणमाला के अन्तर्गत मद्रास विश्वविद्यालय में दिए थे। इन निबन्धों में भारत के प्रथम सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य के जन्म तथा प्रारम्भिक जीवन और उसके विजय-अभियानों की चर्चा करते हुए उन सारे कारकों का गहराई से अध्ययन किया गया है जो एक शक्तिशाली राज्य के निर्माण में और फिर उसे स्थायित्व प्रदान करने में सहायक हुए। चन्द्रगुप्त के कुशल प्रशासन और उसकी सुविचारित आर्थिक नीतियों की परम्परा अशोक के काल तक अक्षुण्ण रहती है। आर्थिक जीवन का राज्य द्वारा नियंत्रण तथा उद्योगों का राष्ट्रीयकरण मौर्यकाल की विशेषता थी।
प्रो. मुखर्जी का यह अध्ययन चौथी शताब्दी ई.पू. की भारतीय सभ्यता के विवेचन-विश्लेषण के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इसमें कौटिल्य के अर्थशास्त्र की बहुत सारी ऐसी सामग्री का समुचित उपयोग किया गया है, जिसके सम्बन्ध में या तो काफ़ी जानकारी नहीं थी या जिसकी तरफ़ काफ़ी ध्यान नहीं दिया गया था। साथ ही, शास्त्रीय रचनाओं—संस्कृत, बौद्ध एवं जैन ग्रन्थों के मूल पाठों और अशोक के शिलालेखों—जैसे विभिन्न स्रोतों से लिए गए प्रमाणों का सम्पादन और तुलनात्मक अध्ययन भी यहाँ मौजूद है। भारतीय सभ्यता तथा संस्कृति के अन्वेषक विद्वानों ने इस पुस्तक को बहुत ऊँचा स्थान दिया है और यह आज तक इतिहास के विद्यार्थियों, शोधार्थियों और प्राध्यापकों के लिए एक मानक ग्रन्थ के रूप में मान्य है।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back |
Publication Year | 2011 |
Edition Year | 2011, Ed. 1st |
Pages | 143p |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publisher | Radhakrishna Prakashan |
Dimensions | 21 X 16 X 1 |