Goongi Rulaai Ka Chorus

Author: Ranendra
Edition: 2023, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
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Goongi Rulaai Ka Chorus
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गूँगी रुलाई का कोरस अपने समय और समाज की गहरी, बेचैन, मानवीय, नैतिक, रचनात्मक-सृजनात्मक चिन्ताओं के तहत लिखा गया हमारे समय का एक ज़रूरी उपन्यास है जिसके सरोकार कहीं अधिक व्यापक हैं।
गूँगी रुलाई का कोरस केवल उस्ताद महताबुद्दीन ख़ान की चार पीढ़ियों के कुल सात सदस्यों की पारिवारिक कथा न होकर, हिन्दुस्तान और इस उपमहाद्वीप के साथ विश्व के एक बड़े भू-भाग की कथा भी है। यह मौसिक़ी मंज़िल को केवल एक मकान और स्थान के रूप में न देखकर व्यापक अर्थों-सन्दर्भों में देखता है। हिन्दुस्तानी संगीत की विकास-यात्रा, धर्म, सम्प्रदाय, हिंसा की राजनीति, अन्य के प्रति घृणा-विद्वेष, राष्ट्र-राष्ट्रवाद, अख़बार, न्याय-न्यायपालिका, हिन्दुत्ववादी ताक़तें, पुलिस, ट्रोलर्स, स्पेशल टास्क फ़ोर्स, जाति, धर्म, सोशल मीडिया, अमरीकी-यूरोपीय नीतियाँ सब ओर उपन्यासकार की निगाह है। फ़लक व्यापक है।
गूँगी रुलाई का कोरस गहन अध्ययन,
श्रम-अध्यवसाय से लिखा गया एक शोधपरक उपन्यास है। साझी संस्कृति और इनसानियत को नए सिरे से रेखांकित करनेवाला एक विशिष्ट आख्यान। बांग्ला-भाषा से युक्त इस कृति की भाषा का अपना एक अलग सौन्दर्य-रस है। रणेन्द्र गहरे सामाजिक-सांस्कृतिक कन्सर्न के उपन्यासकार हैं, उनका ‘स्टैंड’ साफ़ है, जिसे समझने के लिए इस कथाकृति को अवश्य पढ़ा जाना चाहिए।
–रविभूषण

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Language Hindi
Binding Paper Back
Publication Year 2023
Edition Year 2023, Ed. 1st
Pages 232p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22.5 X 14.5 X 2
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Ranendra

Author: Ranendra

रणेन्द्र

रणेन्द्र का जन्म 4 मार्च 1960 को बिहार के नालन्दा जिले के सोहसराय में हुआ।

प्रशासनिक सेवा से सम्बद्ध रहे रणेन्द्र की प्रकाशित कृतियाँ है : ग्लोबल गाँव के देवता, गायब होता देश, गूँगी रूलाई का कोरस (उपन्यास), रात बाकी एवं अन्य कहानियाँ, छप्पन छुरी बहत्तर पेंच (कहानी-संग्रह) और थोड़ा-सा स्त्री होना चाहता हूँ (‌कविता संग्रह)। इन्होंने ‘झारखण्ड एन्साइक्लोपीडिया’ और ‘पंचायती राज : हाशिये से हुकूमत तक’ का सम्पादन भी किया है।

इनकी अनेक रचनाएँ कई भाषाओं में अनूदित  हो चुकी हैं। ‘ग्लोबल गाँव के देवता’ का अंग्रेजी अनुवाद ‘लॉड् र्स ऑफ ग्लोबल विलेज’ नाम से प्रकाशित हो चुका है।

इन्हें श्रीलाल शुक्ल स्मृति इफको सम्मान, प्रथम विमलादेवी स्मृति सम्मान, वनमाली कथा सम्मान,  बनारसी प्रसाद भोजपुरी सम्मान, जे.सी. जोशी स्मृति जनप्रिय लेखक सम्मान कई और अनेक सम्मानों से सम्मानित किए जा चुका है।

सम्प्रति : डॉ. रामदयाल मुंडा जनजातीय कल्याण शोध संस्थान, झारखंड सरकार के निदेशक हैं।

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