जब शायर कोई बात कह रहा होता है तो कहे का ज़ाविया बदलकर उसे छुपा भी रहा होता है और इस खेल में जो बाँकपन पैदा होता है
वही शायरी का हुस्न है। जहाँ यह बाँकपन नहीं, वहाँ शायरी नहीं।
कई बार शायर बस एक तिनका छिपाता है और पढ़ने वाले उसमें पूरा जंगल खोज लेते हैं।
आप जब संग्रह के पन्नों से गुज़रेंगे तो आपकी मुलाक़ात शायर के छुपाए मा’नियों से भी होगी और उनसे भी जो आपके भीतर पोशीदा हैं।
यह एक ऐसे शायर के कलाम की किताब है जिसने न सिर्फ़ सारी दुनिया देखी है बल्कि बदलावों से भरे पिछले साठ-सत्तर साल भी।
Language | Hindi |
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Format | Paper Back |
Publication Year | 2022 |
Edition Year | 2022, Ed. 1st |
Pages | 200p |
Translator | Not Selected |
Editor | Salman Akhtar |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 22 X 14.5 X 1 |