Dubhang

Author: Laxman Gaiakwad
Translator: Sunanda Maggirwar
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Dubhang
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‘दुभंग’ 30 सितम्बर, 1993 को महाराष्ट्र के किल्लारी गाँव, ज़िला लातूर में आए भूकम्प पर आधारित उपन्यास है। इस भूकम्प से यह गाँव लगभग पूरी तरह नष्ट हो गया था। अनेकों लोग मलबे में दफ़न हो गए थे। प्रसिद्ध मराठी लेखक लक्ष्मण गायकवाड़ ने भूकम्प के बाद किल्लारी जाकर बाक़ायदा सहायता और राहत कार्यों में हिस्सा लिया था और उन तमाम सामाजिक तथा मानवीय स्थितियों को अपनी आँखों से देखा था जिनका वर्णन उन्होंने इस उपन्यास में किया है।

एक ऐसी प्राकृतिक आपदा के बाद जिसके सम्मुख मनुष्य अपनी तमाम शक्तिमानता के बावजूद असहाय हो जाता है, हमारा सामाजिक-राजनीतिक ताना-बाना, हमारे मूल्य-मानदंड, जाति-धर्म, हमारा चरित्र और मन क्या-क्या रूप अख़्तियार करता है, यह इस उपन्यास में बख़ूबी चित्रित किया गया है।

लक्ष्मण गायकवाड़ मराठी के अग्रणी लेखकों में हैं। ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’ से सम्मानित उनकी पुस्तक ‘उचक्का’ विभिन्न भाषाओं में अनूदित हो चुकी है। हमें विश्वास है कि उनका यह उपन्यास भी पाठकों के मन और विचारों को छुएगा।

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Language Hindi
Format Hard Back, Paper Back
Publication Year 2004
Edition Year 2022, Ed. 2nd
Pages 187p
Translator Sunanda Maggirwar
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 2
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Laxman Gaiakwad

Author: Laxman Gaiakwad

लक्ष्मण गायकवाड़

23 जुलाई, 1952 को धनेगाँव, लातूर, महाराष्ट्र में जन्म।

‘उचल्या’ पुस्तक का अनुवाद हिन्दी, अंग्रेज़ी, कन्नड़, तेलुगू, उर्दू, फ़्रेंच, बांग्ला भाषाओं में। इनकी ‘वडार वेदना’ कृति भी काफ़ी चर्चित है। ये केन्द्रीय साहित्य अकादेमी के भूतपूर्व जूनियर मेम्बर, सोसायटी फ़ॉर कम्यूनल हार्मनी, दिल्ली के भूतपूर्व जूनियर मेम्बर और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सदस्य रह चुके हैं।

श्री गायकवाड़ ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’, ‘समता पुरस्कार’, ‘संजीवनी पुरस्कार’, ‘महाराष्ट्र गौरव पुरस्कार’, ‘सार्क’ राष्ट्रों द्वारा दिए जानेवाले ‘अन्तरराष्ट्रीय पुरस्कार’ से सम्मानित किए जा चुके हैं।

शोषित, पीड़ित समुदायों में सामाजिक परिवर्तन लानेवाले और विमुक्त, घुमन्तू जमातों के लोगों को न्याय तथा उनके अधिकार दिलाने के लिए ये 1978 से कार्यरत हैं। ये महाराष्ट्र में ‘विमुक्त भटके (घुमन्तू) संघर्ष महासंघ’ के व्यवस्थापकीय अध्यक्ष भी हैं। कामगार, खेत मज़दूर, होटल बॉयज, स्त्री-मुक्ति आदि आन्दोलनों में इनकी सक्रिय सहभागी रही है। 1984 में निकली विमुक्त घुमन्तू लोगों की शोधयात्रा के संयोजक भी रहे हैं।

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