चरण सिंह पथिक हिन्दी के उन चुनिन्दा कथाकारों में हैं जिनके यहाँ लेखन की प्रेरणा कोई शैल्पिक कौतुक या नवाचार नहीं, बल्कि कथ्य होता है। वे पूर्णकालीन रूप में गाँव में रहते हैं। इसीलिए वे ग्रामीण जीवन की उन परतों को भी देख लेते हैं जो कोई नागर दृष्टि कितने भी साहित्यिक उद्यम के बावजूद नहीं देख पाती। क्रूरता, वैमनस्य, सहज मानवीयता के प्रति एक मूलबद्ध द्वेष, पर तथा आत्मघाती ईर्ष्या, स्पर्धा, लालसा और जिन-जिन नैतिक मूल्यों को धर्म और ईश्वर स्थापित करते प्रतीत होते हैं, उन सबसे एक परफ़ेक्ट और चालाक ‘इस्केप’ हमारे मौजूदा गाँवों का अपना आविष्कार है। नहीं तो यह कैसे होता कि 'संयुक्त परिवार के स्वर्ग' में किसी एक भाई की शादी साज़िशन और बिना किसी अपराध-बोध के और लगभग एक स्वीकृत सामाजिक ‘नॉर्म’ (बल्कि पुरुषार्थ) के तौर पर न होने दी जाए ताकि उसके हिस्से की ज़मीन-जायदाद बाकी भाइयों को हासिल हो जाए। यह सिर्फ़ एक उदाहरण है, जो पथिक जी की बस एक कहानी का विषय है, लेकिन हमारे ग्रामीण जीवन की नैतिक हक़ीक़त, संयुक्त परिवार की अति-मंडित इकाई और गाँव के हर कोने में विराजे ईश्वर और हर क़दम पर निभाए जानेवाले धर्म के ऐन सामने सम्भव कर दिए गए मनुष्य-विरोध की कितनी सारी परतें इससे खुल जाती हैं! ऐसी दृष्टि तब मुमकिन होती है जब आप पॉलिटिकल करेक्ट बने रहने की स्थायी आत्मवंचना से मुक्त होते हैं। चरण सिंह पथिक के कथाकार की बहुआयामी और बहुस्तरीय मौलिकता उन्हें इस वंचना से परे रखती है, इसीलिए वे वही लिखते हैं जो देखते हैं और वह उसे देखते हैं जो सिर्फ़ वही देख सकता है जो हर क्षण भीतर से नया और ताज़ा हो जाता हो।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back, Paper Back |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publication Year | 2020 |
Edition Year | 2020, Ed. 1st |
Pages | 143p |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 20.5 X 13.5 X 1.5 |