Dharm Aur Gender

Author: Ilina Sen
Editor: Zeba Imam
Edition: 2018, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
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Dharm Aur Gender
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जेंडरगत मानसिकता से ग्रस्त नागरिकों के निर्माण और पुनर्निर्माण में धर्म की भूमिका से सम्बन्धित अध्ययन की ज़रूरत सिर्फ़ यह मान लेने के चलते ही नहीं है कि धर्म रोज़मर्रा के हमारे जीवन के संरचनात्मक ढाँचे में रची-बसी एक प्रभावशाली संस्था है, बल्कि अब यह ज़रूरत इसलिए और ज़्यादा है क्योंकि वर्तमान राजनीतिक सन्दर्भ में हमारी अस्मिताओं को लामबन्द करने या मज़बूत बनाने में भी यह प्रभावी भूमिका निभा रहा है।

यह संचयन दो भागों में विभाजित है। पहले भाग के अन्तर्गत दस आलेखों का संकलन है जो भारत, पाकिस्तान और चीन से सम्बन्धित हैं। इन आलेखों को तीन विषयवस्तुओं के तहत बाँटा गया है। पहली विषयवस्तु में शामिल तीन आलेख जाति और धर्म के बीच अन्तर्संवाद और उसके जेंडरगत परिणामों के बारे में सैद्धान्तिक चर्चा करते हैं। दूसरी विषयवस्तु में वे आलेख समाहित हैं जो भिन्न-भिन्न तरीक़ों से जेंडर का निर्माण करनेवाले सांस्थानिक मानकों और नियमों की श्रेष्ठता के आत्मसातीकरण की चर्चा करते हैं। तीसरी श्रेणी में उन लेखों को शामिल किया गया है जो सीधे तौर पर महिलाओं के आन्दोलन से सम्बन्धित हैं या जहाँ धर्म के साथ नारीवादी सम्बद्धता है। इस अन्तर्सम्बन्ध की अभिव्यक्ति अस्मिता-विमर्श, कट्टरपन्थी सामूहिकता या धार्मिक-राजनीतिक आन्दोलनों के रूप में होती है।

संचयन के दूसरे भाग में धार्मिक दृष्टि से महिलाओं के आचरण-सम्बन्धी मानकों को निर्देशित करनेवाली हिन्दी और उर्दू की एक-एक प्रचलित पुस्तक (‘बहिश्ती जेवर' और ‘नारी शिक्षा') के चुनिन्दा हिस्सों को शामिल किया गया है। ये उपदेशात्मक पुस्तकें हिन्दू और मुस्लिम महिलाओं के आचरण और व्यवहार से जुड़ी जेंडरगत परम्पराओं को मज़बूत करती हैं।

आशा है, पाठकों के सहयोग से यह शुरुआत एक सफल अंजाम तक पहुँचेगी।

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Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 2018
Edition Year 2018, Ed. 1st
Pages 232p
Translator Not Selected
Editor Zeba Imam
Publisher Rajkamal Prakashan
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Ilina Sen

Author: Ilina Sen

प्रो. इलीना सेन 

इलीना सेन पिछले तीन दशक से महिलाओं और दूसरों के अधिकारों के लिए होनेवाले आन्दोलनों में सक्रिय रही हैं। शिलोंग, कोलकाता और दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से प्रशिक्षित इलीना का शोध और लेखन अधिकांशत: महिलाओं की राजनीति, जीविका सम्बन्धित विषयों, संवहनीय मुद्दों, कृषि-जैवविविधता और शान्ति पर आधारित रहा है। आप महात्मा गांधी अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा और टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ़ सोशल साइंस, मुम्बई में प्रोफ़ेसर रह चुकी हैं। आपकी प्रकाशित किताबों में प्रमुख हैं—‘ए स्पेस विथिन द स्ट्रगल’ (1990) और ‘सुखवासिन : द माइग्रेंट वुमन ऑफ़ छत्तीसगढ़’ (1995)।  

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