Dharamguru

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Author: Swarajbir
Translator: Chaman Lal
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यह नाटक उच्चस्तरीय बौद्धिक रचना का प्रमाण देता है। नाटककार ने पूरे धार्मिक व्यवहार पर जो कटाक्ष किया है, वह अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है। संवादों, घटनाओं तथा कार्यव्यापार के माध्यम से उभारा गया नाटकीय टकराव शिखर को छूता है। इस नाटक ‘धर्मगुरु’ की प्रस्तुति से पंजाबी नाटक नए क्षितिजों के द्वार खोलता है...।

—गुरुशरण सिंह (नाटककार एवं निर्देशक)

स्वराजबीर के नाटक पहली बार पंजाबी नाटक को उस नाट्य विधिविधान के साथ जोड़ते हैं जो भारतीय नाट्य रूप से जुड़ा हुआ है। यही वजह है कि ये नाटक अग्रदूत बनकर पंजाबी नाटक में पैदा हुई जड़ता को तोड़ते हैं। नाट्य-विधि के रूप में ही इनमें कविता और गद्य अन्तर्सम्बन्धित हैं।

—डॉ. सुतिंदर सिंह नूर

स्वराजबीर का नाटक ‘धर्मगुरु’ वर्तमान समय पर एक बड़ी टिप्पणी है जो धर्म और राजनीति की साँठ-गाँठ के माध्यम से समाज के समूचे अस्तित्व को अपनी गिरफ़्त में लेने के लिए सक्रिय है। इस समय इसकी प्रस्तुति एक साहसिक क़दम है।

—‘नवांजमाना’ (दैनिक, जालंधर)

यह नाटक ‘धर्मगुरु’ आज के दौर में फैले धार्मिक कठमुल्लापन और सामाजिक आपाधापी पर तीखा व्यंग्य है। तथाकथित धार्मिक नेताओं की मनमानियों और समाज की बेबसी की त्रासदी के दौर में इस नाटक का मंचन बुद्धिजीवियों और कलाकारों की बुलन्द आवाज़ और सच्चाई का प्रतीक है।

—‘अजीत’ (दैनिक, जालंधर)

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2005
Edition Year 2022, Ed. 2nd
Pages 107p
Translator Chaman Lal
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 1
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Editorial Review

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Author: Swarajbir

स्वराजबीर

कवि और नाटककार स्वराजबीर अपने पहले काव्य-संग्रह ‘आपणी आपणी रात’ (1985) से ही चर्चा के केन्द्र में आ गए थे। इसके बाद उनके दो कविता-संग्रह ‘साहाँथाणी’ (1989) और ‘23 मार्च’ (1993) प्रकाशित हुए। ‘23 मार्च’ की कविताएँ पाश और पाश की कविता के साथ एक संवाद हैं।

1988-89 के दौरान पंजाबी की प्रसिद्ध पत्रिका ‘प्रीत लड़ी’ में ‘तेरी धरती तेरे लोक’ नाम से कॉलम लिखकर एक ओर आपने अपने सुगठित गद्य-लेखन का परिचय दिया, तो दूसरी ओर आतंकवाद के विरुद्ध अपना : दृष्टिकोण दर्ज किया।

‘कृष्ण’ स्वराजबीर का मंचित (1997) होनेवाला पहला नाटक है जिसे रूढ़िवादी संगठनों के विरोध का सामना करना पड़ा। इसके बाद ‘धर्मगुरु’ का मंचन किया गया जिसका प्रकाशन ‘कृष्ण’ से पहले (2000) हो चुका था। यह नाटक रूढ़िवादी लोगों के विरोध के बावजूद पंजाब के लोगों द्वारा व्यापक स्तर पर स्वीकार किया गया। ‘मेदनी’ (2002) और ‘शायरी’ (2003) स्वराजबीर के दो और नाटक हैं। इन सभी नाटकों के बारे में डॉ. सुतिंदर सिंह नूर का मानना है कि इन नाटकों का लेखक स्वराजबीर बलवंत गार्गी, आतमजीत और अजमेर औलख से आगे का नाटककार है।

स्वराजबीर 2016 में ‘मासआ दी रात’ के लिए ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’ से सम्मानित किए गए।

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