‘दस चक्र राजा’ कवि के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त कर चुके हरीश चन्द्र पाण्डे का पहला कहानी-संग्रह है। इन कहानियों को पढ़ते हुए स्पष्ट प्रतीत होता है कि कवि-दृष्टि के साथ जीवन के गद्यात्मक यथार्थ को चित्रित करने में लेखक को पूर्ण सफलता प्राप्त हुई है।

इन कहानियों के केन्द्र में सामान्य मनुष्य हैं। लगभग निम्न-मध्यमवर्ग के व्यक्ति। संग्रह की कहानियाँ इन व्यक्तियों के छोटे-छोटे सुखों और दु:खों को व्यक्त करती हैं। लेखक ने सूक्ष्म पर्यवेक्षण का परिचय देते हुए जैसे इस जीवन को शब्दों में पुनरुज्जीवित किया है।

बहुतेरी कहानियाँ स्त्रियों के अन्तरंग की झलक हैं। लेखक ने ‘स्त्री-विमर्श’ के ‘मार्मिक मुहावरे’ का लोभ त्यागकर यथार्थ को इसके सम्यक् स्वरूप में प्रस्तुत किया है। यही कारण है कि ‘वह फूल छूना चाहती है’, ‘प्रतीक्षा’, ‘कुन्ता’, ‘ढाल’ जैसी कहानियाँ मन में बस जाती हैं।

हरीश चन्द्र पाण्डे की अभिव्यक्ति में अनुभवों का वैविध्य है। ‘बोहनी’, ‘साथी’ व ‘प्रोत्साहन’ कहानियों से इसे परखा जा सकता है। अपनी सरलता और सहजता में ये रचनाएँ बेजोड़ हैं। शब्द-स्फीति के संक्रामक समय में लेखक का संयम और सन्तुलन सराहने योग्य है। भाषा में अद्‌भुत लय है, जैसे—‘अरे भई, शब्द की अपनी एक सुगन्ध होती है? व्याप्ति होती है?...बुरूंश कहते ही चारों ओर उजाला-सा फैल जाता है। फूलों से लदी पहाड़ियों और घरों की देहरियाँ कौंधने लगती हैं?’

इन कहानियों को पढ़ना सहज दिखते जटिल यथार्थ से गुज़रना है।

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Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2013
Edition Year 2013, Ed. 1st
Pages 120p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1
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Harish Chandra Pandey

Author: Harish Chandra Pandey

हरीश चन्‍द्र पाण्‍डे

जन्म : दिसम्बर 1952; सदीगाँव, उत्तराखंड में।

शिक्षा : एम.कॉम.।

प्रमुख कृतियाँ : ‘कुछ भी मिथ्या नहीं है’, ‘एक बुरूंश कहीं खिलता है’, ‘भूमिकाएँ ख़त्म नहीं होतीं’, ‘कलेंडर पर औरत’ तथा ‘अन्य प्रतिनिधि कविताएँ’, ‘असहमति’ (कविता-संग्रह); ‘दस चक्र राजा’ (कहानी-संग्रह); ‘संकट का साथी’ (बाल-कथा संग्रह)।

अनुवाद : कविताओं के अनुवाद कई भाषाओं में प्रकाशित।

सम्मान : ‘कुछ भी मिथ्या नहीं’ के लिए वर्ष 1995 का ‘परिमल (सोमदत्त) सम्मान’। ‘एक बुरूंश कहीं खिलता है’ के लिए उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान का ‘सर्जना पुरस्कार’, ‘केदार सम्मान’ (2001) तथा ‘ऋतुराज सम्मान’ (2004)। ‘भूमिकाएँ ख़त्म नहीं होतीं’ हेतु वर्ष 2006 का ‘कविवर हरिनारायण व्यास’ सम्मान।

सम्प्रति : भारतीय लेखा एवं लेखा-परीक्षा विभाग से सेवानिवृत्ति के पश्चात् स्वतंत्र लेखन।

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