Bin Kan Ka Hoichi

Author: koizumi yakumo
Translator: Unita Sachchidanand
Edition: 2023, Ed. 3rd
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
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Bin Kan Ka Hoichi

जापानी कथा-साहित्य की दुनिया में अलौकिक प्रसंगों के आधुनिक प्रवर्तक कोइज़ुमी याकुमो की छह बहु-चर्चित कहानियों को इस संकलन में शामिल किया गया है। इनमें पाठकों को न सिर्फ़ अलौकिक दुनिया में विचरण करने का मौक़ा मिलेगा, बल्कि जापान के ऐतिहासिक, आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक पहलुओं को जानने-समझने का अवसर भी प्राप्त होगा।

1185 में घटित दान-नो-उरा के विध्वंसक युद्ध की पृष्ठभूमि में रचित ‘बिन कान का होइची’ युद्ध के विनाशकारी प्रभावों को बख़ूबी उभारती है। ‘बच्चों की रज़ाई’ दो अनाथ बच्चों की मार्मिक दास्तान है, जिन्हें ठिठुरती रात में मकान-मालिक बेघर कर उनकी रज़ाई छीन लेता है। बच्चे ठंड से दम तोड़ देते हैं लेकिन उनकी आत्मा रज़ाई में समा जाती है। हर रात रज़ाई से निकलती आवाज जैसे समाज से उसकी निष्ठुरता का हिसाब माँगती है। ‘बर्फ़ सुन्दरी’ और ‘सोएमोन भूला नहीं’ नैतिक मूल्यों के प्रति सजग कराती रोचक कहानियाँ हैं। ‘कुनीज़ाका की ढलान’ एक इच्छाधारी रकून कुत्ते की कहानी है जो यात्रियों को डराया करता है। इस कहानी के द्वारा रचनाकार का सन्देश है कि भय मनुष्य की आन्तरिक कमज़ोरी है जिससे भागना कायरता है। ‘आँसू बने मोती’ कहानी लीक से हटकर है, जो मनुष्य और प्रकृति के पारस्परिक घनिष्ठ सम्बन्ध को रोचक ढंग से प्रस्तुत करती है।

रेखाचित्रों तथा टिप्पणियों से भरपूर कोइज़ुमी याकुमो की मूल जापानी कहानियों का यह हिन्दी अनुवाद बाल-पाठकों का मनोरंजन करने के साथ उन्हें नैतिक तथा चारित्रिक मूल्यों के प्रति सजग कराएगा।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 1998
Edition Year 2023, Ed. 3rd
Pages 71p
Translator Unita Sachchidanand
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 21.5 X 14 X 1
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Author: koizumi yakumo

कोइज़ुमी याकुमो

जन्म : सन् 1850

यूरोपीय माता-पिता की सन्तान लाफ़्कादियों हर्न 1890 में चालीस वर्ष की उम्र में जापान पहुँचे। वह जापानी संस्कृति से इतने प्रभावित हुए कि वहाँ के बन गए। 1891 में जापानी बाला से विवाहकर उन्होंने कोइज़ुमी याकुमो नाम धारण कर लिया। इसी नाम से उन्होंने सृजन कर जापानी कथा-संसार में प्रतिष्ठित मुक़ाम हासिल किया। उन्हें जापान में अलौकिक प्रसंगों के आधुनिक प्रवर्तक के रूप में जाना जाता है। याक़ुमो ने पाठकों को जापान की प्राचीन छवि से परिचित कराया। वे ‘अपने’ नए देश से इतने प्रभावित थे कि आधुनिकता की ओर बढ़ते जापान में प्राचीन मूल्यों का विघटन उन्हें सालता था। उनकी रचनाएँ ‘ग्लिम्पसेज़ ऑफ़ अनफैमिलियर जापान’ (1894), ‘कोकोरो’ (1896) और ‘जापान : ऐन एटेम्प्ट एट इंटरप्रिटेशन’ (1904) आज भी जापान में दिलचस्पी के साथ पढ़ी जाती हैं।

निधन : 1904

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