Bihari Ratnakar

Editor: Bachchan Singh
Edition: 2019, Ed. 4th
Language: Hindi
Publisher: Lokbharti Prakashan
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Bihari Ratnakar
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प्रस्तुत पुस्तक बिहारी-रत्नाकर में विशेषत: इस बात का ध्यान रखा गया है कि पाठकों की समझ में शब्दार्थ तथा भावार्थ भली-भाँति आ जाएँ। दोहे के शब्दों के पारस्परिक व्याकरणिक सम्बन्ध तथा कारक इत्यादि को स्पष्ट रूप से प्रकट करने का भी यथासम्भव प्रयत्न किया गया है। प्रत्येक दोहे के पश्चात् उसके कठिन शब्दों के अर्थ हैं और फिर उस दोहे के कहे जाने का अवसर, वक्ता, बोधव्य इत्यादि, ‘अवतरण' शीर्षक के अन्तर्गत बतलाए गए हैं। उसके पश्चात् ‘अर्थ' शीर्षक के अन्तर्गत दोहे का अर्थ लिखा गया है। अर्थ लिखने में जो कोई शब्द अथवा वाक्यांश कठिन ज्ञात हुआ, उसका अर्थ, उसके पश्चात् गोल कोष्ठक में दे दिया गया है और जिस किसी शब्द अथवा वाक्यखंड का अध्याहार करना उचित समझा गया, वह चौखूँटे कोष्ठक में रख दिया गया है। जहाँ कहीं कोई विशेष बात कहने की आवश्यकता प्रतीत हुई, वहाँ टिप्पणी एक भिन्न वाक्य-विच्छेद (पैराग्राफ़) में

लिखी गई है। इस टीका में अधिकांश दोहों के अर्थ अन्यान्य टीकाओं से भिन्न हैं। उनके यथार्थ होने की विवेचना पाठकों की समझ, रुचि तथा न्याय पर निर्भर है।

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Language Hindi
Binding Hard Back, Paper Back
Publication Year 2007
Edition Year 2019, Ed. 4th
Pages 360p
Translator Not Selected
Editor Bachchan Singh
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 21.5 X 14 X 2
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Author: Jagannath Das Ratnakar

जगन्नाथदास रत्नाकर

जन्म : सन् 1866

शिक्षा : शिक्षा का आरम्भ उर्दू-फ़ारसी से हुआ। क्वीन्स कॉलेज बनारस से सन् 1891 में बी.ए. पास करने के बाद एल.एल.बी. और एम.ए. फ़ारसी का अध्ययन प्रारम्भ किया।

सन् 1900 में अवागढ़ के ख़ज़ाने के निरीक्षक। 1902 में अयोध्या नरेश प्रताप नारायण सिंह के प्राइवेट सेक्रेटरी और 1906 में महाराज की मृत्यु के पश्चात् महारानी के प्राइवेट सेक्रेटरी नियुक्त हुए।

प्राचीन संस्कृत धर्म और साहित्य में उनकी विशेष अभिरुचि थी। मध्यकालीन हिन्दी काव्य, उर्दू, फ़ारसी, संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, मराठी, बांग्‍ला, पंजाबी, आयुर्वेद, संगीत, ज्योतिष, व्याकरण, छन्दशास्त्र, विज्ञान, योग-दर्शन, साहित्य, इतिहास आदि की अच्छी जानकारी थी। रत्नाकर जी की साहित्य-साधना का प्रारम्‍भ बचपन की समस्यापूर्तियों से हुआ था। विद्यार्थी जीवन में वे ‘जकी’ उपनाम से उर्दू एवं फ़ारसी में भी कविता करते थे, किन्तु आगे चलकर हिन्दी कवियों से प्रभावित होकर केवल ब्रजभाषा में कविता करने लगे।

‘साहित्य सुधानिधि’ तथा ‘सरस्वती’ आदि पत्रिकाओं के सम्पादन और काशी नागरी प्रचारिणी सभा की स्थापना एवं विकास में सक्रिय योगदान।

आधुनिक युग के श्रेष्ठ ब्रजभाषा कवि जगन्‍नाथदास ‘रत्‍नाकर’ की प्रमुख कृतियाँ हैं : पद्य—‘हरिश्चन्‍द्र’, ‘गंगावतरण’, ‘उद्धवशतक’, ‘हिंडोला’, ‘कलकाशी’, ‘शृंगारलहरी’, ‘गंगालहरी’, ‘विष्णुलहरी’, ‘रत्नाष्टक’, ‘वीराष्टक’; गद्य-लेख—‘रोला छन्द के लक्षण’, ‘महाकवि बिहारीलाल की जीवनी’, ‘बिहारी सतसई सम्‍बन्‍धी साहित्य’, ‘साहित्यिक ब्रजभाषा तथा उसके व्याकरण की सामग्री’, ‘बिहारी सतसई की टीकाएँ’; सम्‍पादन—‘कविकुल कंठाभरण’, ‘दीपप्रकाश’, ‘हम्मीर हठ’, ‘रसिक विनोद’, ‘हिततरंगिणी’, ‘केशवदासकृत नखशिख’, ‘सुजानसागर’, ‘बिहारी रत्नाकर’, ‘सूरसागर’ आदि।

निधन : 21 जून, 1932; हरिद्वार।

 

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