Bihar Ke Mere Pachchis Varsh

Author: Kalpana Sastri
Edition: 2018, Ed. 2nd
Language: Hindi
Publisher: Radhakrishna Prakashan
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Bihar Ke Mere Pachchis Varsh

जिस कालखंड में देश का पढ़ा-लिखा वर्ग बिहार जाने से डर रहा था और बिहार का पढ़ा-लिखा वर्ग राज्य से बाहर नहीं तो, गाँवों को छोड़ शहरों में अपनी जगह बनाने का जी-तोड़ प्रयास कर रहा था, उस वक़्त कल्पना महाराष्ट्र के सुव्यवस्थित माहौल को छोड़कर स्वेच्छा से बिहार आईं और वहाँ किसी शहर में नहीं बल्कि धुर गाँवों में काम कर रही हैं।

बिहार में काम करने के माध्यम के रूप में इन्होंने एक संस्था बनाई और गाँव की मुसहर तथा दुसाध दलित महिलाओं के बीच काम शुरू किया। गांधीवादी विचार को माननेवाले समूहों के साथ चर्चा करने के लिए एक संगठन द्वारा इन्हें जर्मनी बुलाया गया। एक प्रसिद्ध शान्तिवादी संगठन आई.एफ़.ओ.आर. के स्वीडन सम्मेलन में शामिल हुईं और फिलाडेल्फ़िया के क्वेकर समूह द्वारा आयोजित लम्बे प्रशिक्षण कोर्स का भी अनुभव लिया। इन अनुभवों के साथ-साथ बिहार के गाँवों को भी देखना, समझना और वह भी अन्दर घुसकर सामाजिक कार्यों के माध्यम से—ख़ुद लेखिका के लिए भी—बहुत शिक्षाप्रद और रोमांचक रहा है।

इस किताब में उन्होंने बिहार के गाँवों के झरोखों से जैसा देखा, वैसा लिखा है। अपने काम का ज़िक्र करते हुए वहाँ के समाज की आवश्यकताएँ बताई हैं, लोगों के स्वभाव बतलाए हैं और सम्बन्धों के पारिवारिक व सामाजिक ताने-बाने को खोलकर दिखाया है।

आशा है, विषय की गहराई में जानेवाले लोगों को यह किताब अच्छी लगेगी।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 2006
Edition Year 2018, Ed. 2nd
Pages 127p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 1.5
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Kalpana Sastri

Author: Kalpana Sastri

कल्पना शास्त्री

कल्पना शास्त्री महाराष्ट्र की हैं। मराठी भाषी हैं। फिर भी हिन्दी-मराठी दोनों भाषाओं पर इनका समान प्रभुत्व है।
समाज की व्यवस्था के बारे में इनका गहन अध्ययन रहा है। वे समाज सेवा से 17 वर्ष की उम्र से ही जुड़ गई थीं, जब वे बांग्लादेशी शरणार्थियों के लिए काम करने वर्धा महाराष्ट्र से गई थीं। कॉलेज जीवन पूरा होने पर इन्होंने अलग-अलग क्षेत्रों में सामाजिक काम भी किया। 25 वर्ष की उम्र में बिहार के निवासी प्रसिद्ध गांधीवादी कुमार शुभमूर्ति से शादी की और उनके घर रोसड़ा को कार्यक्षेत्र बनाकर दलितों के बीच काम करना शुरू किया। इनके काम का मुख्य केन्द्र औरतें और बच्चे हैं।

कल्पना शास्त्री ने कई अन्तरराष्ट्रीय सेमिनार आयोजित भी किए हैं और दुनिया-भर में समाज के बदलाव के लिए जो लोग काम कर रहे हैं, उनके आमंत्रण पर कई जगह मीटिंग और सेमिनार में निमंत्रित हुई हैं। ‘आयफ़ोर’ और ‘ट्रेनिंग फॉर चेंज’, जैसे पीस ग्रुप्स से ये जुड़ी रही हैं। वक्तृत्व प्रभावी होने के कारण इन्हें कई जगह देश-विदेश में बुलाया भी जाता है।
इनकी दो बेटियाँ हैं। दोनों उच्च शिक्षित हैं। दोनों को इन्होंने स्कूल नहीं भेजा। आज के शोषणकारी शिक्षण तंत्र के विरोध में ये खड़ी रहीं। स्कूली सिस्टम के दबावों और कमियों को हटाने के लिए शिक्षा के दूसरे तरीक़े अपनाए।
इन्होंने कईं किताबें लिखी हैं जिनमें 'जर्मनी : यह कैसा विकास', 'हम औरतों के लिए', 'मिथिला की हरिजन औरत' प्रमुख हैं। इनकी कई किताबों का मराठी व इंग्लिश में अनुवाद भी हो चुका है।

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