Bhawani Nandan Sriganesh

Author: Yugeshwar
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Bhawani Nandan Sriganesh

भवानी नंदन श्रीगणेश पिता शिव नहीं, केवल माता पार्वती से उत्पन्न हैं। माता की कोख से नहीं। मैल, उबटन के संग्रह से निर्मित तन। जन्म लेते ही द्वार पर बैठ गए। किसी का भी भीतर प्रवेश वर्जित है। माता का आदेश है। यह उनका स्नान कारण है। पिता शंकर क्रुद्ध हो रहे हैं। बड़ा ज़िद्दी बालक है। उनके ही घर में उनका प्रवेश रोक रहा है। क्रोध में उन्होंने गणेश की गर्दन उतार ली। माता पार्वती रो रही हैं। यह क्या किया प्रभु? अपने ही पुत्र की गर्दन उतार ली। पुत्र गया। अपयश ऊपर से। सनातन अपयश। पुत्रहंता शिव। पुत्रहंता की पत्नी पार्वती। गणेश के धड़ में हाथी की गर्दन जोड़ी गई। गणेश पुन: सक्रिय हो गए। माता पार्वती के वक्ष स्नेहमय दुग्ध से भर आए। शंकर परिवार में उत्सव का माहौल था। पिता ने आशीर्वाद दिया। गणेश प्रथम पूज्य होंगे। किसी भी पूजा का प्रारम्भ गणेश पूजा से होगा। लाभ, शुभ के दाता, विघ्नविनाशक गणेश। गणेश ने अनेक अवतार लिए। इसी शरीर से अनेक कार्य किए। सभी अद्‌भुत, लोकरंजक, जनकल्याण निमित्त। माता-पिता की भक्ति के श्रेष्ठतम नमूने।

महाभारत के लेखक। युगेश्वर द्वारा लिखित गणेश कथा केवल मनोरंजन ही नहीं, विशिष्ट आध्यात्मिक प्रेरणा भी है। भारत के सांस्कृतिक जीवन को समझने-समझाने का अभिनव प्रयास है। गणेश सम्पूर्ण भारत में पूज्‍य हैं। उनकी कथा के खंड-खंड से सभी परिचित हैं। लेखक ने सम्पूर्ण गणेश कथा का संग्रह, संयोजन एवं उनका बुद्धिभाव से संयुक्त संस्थापन किया है। इसी से सम्पूर्ण उपन्यास जितना भावक है, उतना ही सन्देश निदेशक भी। आँखें खोलनेवाला। खुली दृष्टि में लोकोत्तर रंग भरनेवाला एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण कृति।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2018
Edition Year 2000, Ed. 1st
Pages 242p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 2
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Author: Yugeshwar

युगेश्वर

हिन्दी विभाग काशी विद्यापीठ, वाराणसी (भारत) के पूर्व आचार्य, लब्धप्रतिष्ठ विचारक, भाषाशास्त्री आलोचक एवं उपन्यासकार प्रो. युगेश्वर का जन्म 10 जनवरी, 1934 को बिहार के गडुआ, सेखपुरा गाँव में हुआ था। साहित्यालंकार तक की शिक्षा देवघर में प्राप्त कर प्रो. युगेश्वर ने हाईस्कूल से पीएच.डी. तक की शिक्षा वाराणसी में पूर्ण की।

समाजवादी राजनीति, साहित्य एवं अध्यात्म के विभिन्न क्षेत्रों में शोधपूर्ण तथा विचारोत्तेजक लेखन युगेश्वर जी की विशिष्ट पहचान है। इनकी शोधवृत्ति और ज्ञान के सम्मानार्थ उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, द्वारा इन्हें ‘मधुलिमये फ़ेलोशिप’ प्रदान किया गया था।

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