भवानी नंदन श्रीगणेश पिता शिव नहीं, केवल माता पार्वती से उत्पन्न हैं। माता की कोख से नहीं। मैल, उबटन के संग्रह से निर्मित तन। जन्म लेते ही द्वार पर बैठ गए। किसी का भी भीतर प्रवेश वर्जित है। माता का आदेश है। यह उनका स्नान कारण है। पिता शंकर क्रुद्ध हो रहे हैं। बड़ा ज़िद्दी बालक है। उनके ही घर में उनका प्रवेश रोक रहा है। क्रोध में उन्होंने गणेश की गर्दन उतार ली। माता पार्वती रो रही हैं। यह क्या किया प्रभु? अपने ही पुत्र की गर्दन उतार ली। पुत्र गया। अपयश ऊपर से। सनातन अपयश। पुत्रहंता शिव। पुत्रहंता की पत्नी पार्वती। गणेश के धड़ में हाथी की गर्दन जोड़ी गई। गणेश पुन: सक्रिय हो गए। माता पार्वती के वक्ष स्नेहमय दुग्ध से भर आए। शंकर परिवार में उत्सव का माहौल था। पिता ने आशीर्वाद दिया। गणेश प्रथम पूज्य होंगे। किसी भी पूजा का प्रारम्भ गणेश पूजा से होगा। लाभ, शुभ के दाता, विघ्नविनाशक गणेश। गणेश ने अनेक अवतार लिए। इसी शरीर से अनेक कार्य किए। सभी अद्भुत, लोकरंजक, जनकल्याण निमित्त। माता-पिता की भक्ति के श्रेष्ठतम नमूने।
महाभारत के लेखक। युगेश्वर द्वारा लिखित गणेश कथा केवल मनोरंजन ही नहीं, विशिष्ट आध्यात्मिक प्रेरणा भी है। भारत के सांस्कृतिक जीवन को समझने-समझाने का अभिनव प्रयास है। गणेश सम्पूर्ण भारत में पूज्य हैं। उनकी कथा के खंड-खंड से सभी परिचित हैं। लेखक ने सम्पूर्ण गणेश कथा का संग्रह, संयोजन एवं उनका बुद्धिभाव से संयुक्त संस्थापन किया है। इसी से सम्पूर्ण उपन्यास जितना भावक है, उतना ही सन्देश निदेशक भी। आँखें खोलनेवाला। खुली दृष्टि में लोकोत्तर रंग भरनेवाला एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण कृति।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back |
Publication Year | 2018 |
Edition Year | 2018, Ed. 1st |
Pages | 242p |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publisher | Lokbharti Prakashan |
Dimensions | 22 X 14.5 X 2 |