आधुनिक हिन्दी-समीक्षा के स्वरूप-विकास में पौर्वात्य से कहीं अधिक पाश्चात्य समीक्षा-दर्शन का अनुप्रभाव परिलक्षित हो रहा है। आज विश्वविद्यालयों और प्रतियोगी-परीक्षाओं में जिन समीक्षा-सिद्धान्तों, आलोचनात्मक प्रत्ययों, समीक्षा-आन्दोलनों की चर्चा का विषय बनाया जा रहा है, प्रश्नांकनों की कसौटी पर कसा जा रहा है, उनमें से अधिकांश पाश्चात्य भाषा-विमर्श, साहित्य-कला-दर्शन और अन्य साहित्येतर अनुशासनों से अनुस्यूत हैं। इन नवोन्मेषी सिद्धान्तों, वादों और समीक्षात्मक संकल्पनाओं, साहित्येतर अवधारणाओं का प्रामाणिक विमर्श इस ग्रन्थ में है।
प्रस्तुत कृति संगोष्ठियों में विमर्श के अधुनातन सन्दर्भों से सम्पृक्त है। विश्वास है कि शिक्षकों-शिक्षार्थियों, प्रतियोगियों और जिज्ञासुओं के लिए यह उपादेय सिद्ध होगी।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back |
Edition Year | 2006 |
Pages | 365p |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publisher | Lokbharti Prakashan |
Dimensions | 22 X 14 X 2 |