Bhartiya Aryabhasha Aur Hindi

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Bhartiya Aryabhasha Aur Hindi
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‘भारतीय आर्यभाषा और हिन्दी’ में प्रख्यात भाषाविद् डॉ. सुनीतिकुमार चाटुर्ज्या के वे अत्यन्त महत्त्वपूर्ण भाषण संकलित हैं, जो उन्होंने 1940 ई. में ‘गुजरात वर्नाक्यूलर सोसाइटी’ के आमंत्रण पर दिए थे। इन भाषणों के विषय थे : (1) ‘भारतवर्ष में आर्यभाषा का विकास’ और (2) ‘नूतन आर्य अन्त:प्रादेशिक भाषा हिन्दी का विकास’ अर्थात् राष्ट्रभाषा के रूप में हिन्दी का विकास। जनवरी 1942 में सुनीति बाबू ने इन भाषणों को संशोधित और परिवर्धित करके पुस्तक रूप में प्रकाशित कराया था। 1960 में दूसरे संस्करण के लिए उन्होंने फिर इसे पूरी तरह संशोधित किया। इसमें कुछ अंश नए जोड़े और कुछ बातों पर पहले के दृष्टिकोण में संपरिवर्तन किया। इस प्रकार पुस्तक ने जो रूप लिया, वह आज पाठकों के सामने है, और भारत में ही नहीं विदेश में भी यह अपने विषय की एक अत्यन्त प्रामाणिक पुस्तक मानी जाती है।

भारत सरकार द्वारा यह पुस्तक पुरस्कृत हो चुकी है।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 1954
Edition Year 2020, Ed 10th
Pages 322p
Translator Aatmaram Jajodiya
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22.5 X 14.5 X 3
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Sunitikumar Chaturjya

Author: Sunitikumar Chaturjya

डॉ. सुनीतिकुमार चाटुर्ज्या

आपका जन्म हावड़ा के शिवपुर गाँव में 26 नवम्बर, 1890 को हुआ। आपने 1913 में अंग्रेज़ी में कोलकाता विश्वविद्यालय से एम.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की। भारत सरकार की छात्रवृत्ति पर लन्दन विश्वविद्यालय से ध्वनिशास्त्र में डिप्लोमा लिया। इसके साथ ही भारोपीय भाषाविज्ञान, प्राकृत, पारसी, प्राचीन आयरिश, गौथिक और अन्य भाषाओं का अध्ययन भी किया।

रवीन्द्रनाथ ठाकुर की मलय, सुमात्रा, जावा और बाली की यात्रा के समय आप उनके साथ रहे और भारतीय कला और संस्कृति पर अनेक व्याख्यान दिए।

1922 से 1952 तक कोलकाता विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर पद पर कार्य। 1952 में सेवानिवृत्ति के बाद अवकाशप्राप्त प्रोफ़ेसर बने और 1964 में ‘राष्ट्रीय प्रोफ़ेसर’ की उपाधि मिली। आप ग्रीक, लैटिन, फ्रेंच, इतालवी, जर्मन, अंग्रेज़ी, संस्कृत, फ़ारसी तथा दर्जनों आधुनिक भारतीय भाषाओं के ज्ञाता थे। आपकी बांग्ला, अंग्रेज़ी, हिन्दी आदि भाषाओं में चालीस से ज़्यादा पुस्तकें अनूदित व प्रकाशित हुईं।

आप भारत सरकार द्वारा ‘पद्मविभूषण’ सहित कई सम्मानों से सम्मानित किए गए। केन्द्रीय साहित्य अकादेमी के सभापति भी रहे।

29 मई, 1977 को कोलकाता में आपका निधन हुआ।

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