एक कवि के लिए विचारधारा से बड़ा है दर्शन और दर्शन से भी बड़ी है जीवन-दृष्टि जो हर कवि को स्वयं आयत्त करनी पड़ती है। कविता न तो विचार से बनती है न विचारधारा या दर्शन से। ये कविता के बाहरी उपस्कर हैं। एक समय में मार्क्सवाद के कुछ अनुयायियों ने विचारधारा यानी मार्क्सवादी सूत्रों को और उनके अनुसार रचित साहित्य को विशेष महत्त्व दिया। लेकिन मार्क्सवादियों में भी अनेक मत रहे। लुकाच और ब्रेख़्त का विवाद मशहूर है। बेन्यामिन और फ़्रैंकफ़र्ट स्कूल की धारणा भी अलग थी। अर्न्स्ट फ़िशर की किताब आर्ट अगेन्स्ट आइडियालॉजी आज भी प्रासंगिक है। बाद के सिद्धान्तकारों ने जिन्होंने मार्क्सवाद से सम्बन्ध जोड़ा, उनके विचार भी रूढ़ि-विरोधी रहे। स्वयं मार्क्स कविता की स्वायत्तता के हामी थे। फिर भी शीत युद्ध के दरम्यान विचारधारा पर अतिशय बल दिया गया। एक बात और दबा दी गई कि पूँजीवाद की भी एक विचारधारा है, गाँधीवाद की भी, धर्म और जाति और नस्ल की भी। श्रेष्ठ कविता इन सभी संकीर्णताओं का अतिक्रमण करके अपने को सीधे जीवन से जोड़ती है। जीवन की घटना महत्त्वपूर्ण है, घटना को नियंत्रित करने वाले नियम नहीं। हमारे लिए घड़ी द्वारा दर्शाया गया समय महत्त्वपूर्ण है, कील और चक्के या क्वार्ट्ज या बैटरी नहीं, हालाँकि वे होंगे ही। दिलचस्प यह है कि दुनिया में अब तक ऐसी कोई श्रेष्ठ रचना नहीं बनी जिसकी जड़ संकीर्ण विचारधारा में हो। कविता हमेशा उदात्त की अभिव्यक्ति है। न तो भारत में न अमेरिका में कोई लेखक धुर दक्षिणपन्थ का समर्थक है, न हिंसा या नफ़रत का। समस्त विश्व की कविता का उत्स करुणा और प्रेम में है, आदिकवि वाल्मीकि के क्रन्दन और व्याधे को शाप में। हर कविता बधित क्रौंच पक्षी के पक्ष में व्याधे को शाप है। जीवन से बड़ा कुछ भी नहीं।
—अरुण कमल, भाव, विचार और विचारधारा शीर्षक से
Language | Hindi |
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Binding | Paper Back |
Publication Year | 2023 |
Edition Year | 2023m Ed. 1st |
Pages | 168p |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 21.5 X 14 X 1 |