Antastal Ka Poora Viplav : Andhere Mein-Text Book

Author: Nirmala Jain
₹150.00
ISBN:9788171196029
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9788171196029
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‘अँधेरे में’ उत्तरशती की सबसे महत्त्वपूर्ण और शायद सबसे विवादास्पद कविता है। वि‍वाद भि‍न्न रुचि और वि‍चारधारा वालों के बीच ही नहीं, समानधर्मा आलोचकों के बीच भी है। यह तथ्य कविता की सम्भावनाशीलता का प्रमाण है। यह भी सही है कि मुक्ति‍बोध के जीवन-काल में इस कविता को ख़ुद उनसे सुना तो कइयों ने होगा, लेकि‍न इसे सराहा उनकी मृत्यु के बाद ही गया। इस वि‍लम्ब का कारण उपेक्षा या उदासीनता नहीं, बल्कि ऐतिहासिकता है।

अपने समय का अतिक्रमण हर कालजयी रचना में होता है। लेकि‍न आनेवाले समय के इस कदर साथ चलनेवाली रचनाओं की संख्या बहुत नहीं होती। इस दृष्टि से देखने पर यह बात हैरत में डालनेवाली है कि अपने सारे जटिल अर्थ-वि‍न्यास और अपारदर्शी शि‍ल्प के बावजूद इस कविता के पाठकों की संख्या उत्तरोत्तर बढ़ती गई है।

कविता के पाठक-आलोचकों ने तरह-तरह से इस बात को दोहराया है कि मध्यवर्ग के सुविधाजीवी, समझौतावादी और आदर्शजीवी मन का संघर्ष ही ‘अँधेरे में’ की काव्य-वस्तु है।

इस पुस्तक में ख्यात हि‍न्दी आलोचक नि‍र्मला जैन ने ‘अँधेरे में’ पर आधारित आलोचनात्मक आलेखों को संकलित कि‍या है। ये आलेख इस कालजयी कविता की वि‍भिन्न पक्षों से व्याख्या करते हैं।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back, Paper Back
Publication Year 1994
Edition Year 2021, Ed. 4th
Pages 155p
Price ₹150.00
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 21 X 14 X 1
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Nirmala Jain

Author: Nirmala Jain

डॉ निर्मला जैन

हिन्दी की जानी-मानी आलोचक निर्मला जैन का जन्म सन् 1932 में दिल्ली के व्यापारी परिवार में हुआ। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से बी.ए., एम.ए., पीएच.डी. और डी.लिट की उपाधियाँ प्राप्त कीं।

लेडी श्रीराम कॉलेज (1956-70) और फिर दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग (1970-1996) में अध्यापन किया। इस दौरान वे हिन्दी विभाग की अध्यक्ष (1981-84) और कई वर्षों तक दक्षिण-परिसर में विभाग की प्रभारी प्रोफ़ेसर रहीं।

प्रकाशन : 1962 से अनेक मौलिक ग्रन्थों की रचना, अनुवाद और सम्पादन।

प्रमुख रचनाएँ : ‘आधुनिक हिन्दी काव्य में रूप-विधाएँ’, ‘रस-सिद्धान्त और सौन्दर्यशास्त्र’, ‘आधुनिक साहित्य : मूल्य और मूल्यांकन’, ‘हिन्दी आलोचना का दूसरा पाठ’, ‘कथा-समय में तीन हमसफ़र’, ‘दिल्ली : शहर-दर-शहर’, -‘ज़माने में हम’, ‘पाश्चात्य साहित्य-चिन्तन’, ‘कविता का प्रति-संसार’ (आलोचना); 'उदात्त के विषय में’, 'बांग्ला साहित्य का इतिहास’, 'समाजवादी साहित्य : विकास की समस्याएँ’, 'भारत की खोज’, 'एडविना और नेहरू’, 'सच, प्यार और थोड़ी-सी शरारत’ (अनुवाद) ; ‘नई समीक्षा के प्रतिमान’, ‘साहित्य का समाजशास्त्रीय चिन्तन’, ‘महादेवी साहित्य’ (4 खंड), ‘जैनेन्द्र रचनावली’ (12 खंड)।

पुरस्कार : ‘सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार’, ‘रामचन्द्र शुक्ल पुरस्कार’, ‘हरजीमल डालमिया पुरस्कार’, ‘तुलसी पुरस्कार’, ‘केन्द्रीय हिन्दी संस्थान’ (आगरा) का ‘सुब्रह्मण्यम भारती सम्मान’, ‘हिन्दी अकादमी’ का ‘साहित्यकार सम्मान’, ‘साहित्य अकादेमी’ का ‘अनुवाद पुरस्कार’, ‘संतोष कोली स्‍मृति सम्‍मान’ आदि।

सम्प्रति : स्वतंत्र लेखन।

 

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