Amma Se Batein Aur Kuch Lambi Kavitayan

Author: Bhagwat Rawat
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Amma Se Batein Aur Kuch Lambi Kavitayan
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भगवत रावत का काव्य-संसार विविधवर्णी और बहुआयामी है। वे हिन्दी के ऐसे कवि हैं जिन्होंने अपने आत्मीय देसी मुहावरे में कविता को सम्भव किया। छोटी कविताओं से लेकर अनेक लम्बी और प्रयोगमूलक कविताओं तक फैला हुआ उनका काव्य-फलक अत्यन्त व्यापक है। उनकी कविताओं का संसार हमारे समाज के निम्नवर्ग से लेकर मध्यवर्ग तक के उन अति साधारण लोगों की जीवन छवियों का ऐसा रचनात्मक दस्तावेज है जो दुनिया में बची हुई मनुष्यता का जीवन्त साक्ष्य है। यथार्थ की ठोस जमीन पर खड़ी उनकी कविता न तो किसी छद्म क्रान्ति का शंखनाद है, न सबकुछ के नष्ट हो जाने की उदासी और अवसाद। उनमें करुणा की ऐसी ऊर्जा है जिसमें जीवन की महक और उसकी खनक छिपी हुई है। भगवत रावत की कविता रूप और कथ्य के अनेक स्तरों से गुज़रती हुई अपना संसार रचती है। इस दृष्टि से उनकी लम्बी कविताएँ विशेष रूप से द्रष्टव्य हैं। इन कविताओं में उन्होंने बौद्धिकता और आधुनिक जीवन की जटिलताओं को आत्मसात् कर जो सहजता और आत्मीयता अर्जित की है, वह समकालीन हिन्दी कविता की विरल उपलब्धि है। ‘अम्मा से बातें’, ‘नकद उधार’, ‘जो भी पढ़ रहा या सुन रहा है इस समय’, ‘लड़का अजूबा’ से लेकर ‘सुनो हिरामन’ और ‘अथ रूपकुमार कथा’ आदि कविताएँ अपनी तरह के अकेले उदाहरण हैं। उनकी लम्बी कविता ‘कहते हैं कि दिल्ली की है कुछ आबोहवा और’ ने भी न सिर्फ़ साहित्यिक समाज बल्कि व्यापक पाठक समुदाय को आन्दोलित किया है। इन कविताओं को जाने-समझे बिना भगवत रावत के कवि स्वभाव को सम्पूर्णता में पहचानना शायद सम्भव नहीं होगा। यह संग्रह इस दृष्टि से भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2008
Edition Year 2023, Ed. 2nd
Pages 167P
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1.5
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Bhagwat Rawat

Author: Bhagwat Rawat

भगवत रावत

जन्म : 13 सितम्बर, 1939; ग्राम—टेहेरका, ज़‍िला—टीकमगढ़ (म.प्र.)।

शिक्षा : बी.ए., बुन्देलखंड कॉलेज, झाँसी (उ.प्र.)। एम.ए., बी.एड. प्राइमरी स्कूल के अध्यापक के रूप में कार्य करते हुए भोपाल (म.प्र.) से। 1967 से 1982 तक क्षेत्रीय शिक्षा संस्थान, मैसूर (कर्नाटक) तथा भोपाल में हिन्दी के व्याख्याता। 1983 से 1994 तक हिन्दी के रीडर-पद पर कार्य करने के बाद दो वर्ष तक मध्य प्रदेश हिन्दी ग्रन्थ अकादमी के संचालक। 1998 से 2001 तक क्षेत्रीय शिक्षा संस्थान में हिन्दी के प्रोफेसर तथा समाज-विज्ञान और मानविकी शिक्षा विभाग के अध्यक्ष। इसके बाद 2001 से 2003 तक साहित्य अकादेमी, मध्य प्रदेश के निदेशक तथा मासिक पत्रिका 'साक्षात्कार’ का सम्पादन। 1989 से 1995 तक म.प्र. प्रगतिशील लेखक संघ के प्रान्तीय अध्यक्ष तथा 'वसुधा’ (त्रौमासिक) पत्रिका का सम्पादन। मध्य प्रदेश की साहित्यिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों के विकास एवं संचालन में सक्रिय योगदान।

प्रकाशित कृतियाँ : कविता-संग्रह)—‘समुद्र के बारे में’ (1977), ‘दी हुई दुनिया’ (1981), ‘हुआ कुछ इस तरह’ (1988), ‘सुनो हिरामन’ (1992), ‘अथ रूपकुमार कथा’ (1993), ‘सच पूछो तो’ (1996), ‘बिथा-कथा’ (1997), ‘हमने उनके घर देखे’ (2001), ‘ऐसी कैसी नींद’ (2004), ‘निर्वाचित कविताएँ’ (2004), ‘कहते हैं कि दिल्ली की है कुछ आबोहवा और’ (2007), ‘अम्मा से बातें और अन्य कविताएँ’ (2008), ‘देश एक राग है’ (2009); आलोचना—‘कविता का दूसरा पाठ’ (1993), ‘कविता का दूसरा पाठ और प्रसंग’ (2006)।

सम्मान : 1. दुष्यन्त कुमार पुरस्कार, मध्य प्रदेश साहित्य परिषद् (1979), ‘वागीश्वरी सम्मान’, मध्य प्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन (1989), ‘शिखर सम्मान’, मध्य प्रदेश शासन, संस्कृति विभाग (1997-98), ‘भवभूति अलंकर’, मध्य प्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन (2004)।

उर्दू, पंजाबी, मराठी, बांग्ला, ओड़िया, कन्नड़, मलयालम, अंग्रेज़ी तथा जर्मन भाषाओं में कविताएँ अनूदित।

 

निधन : किडनी की गम्भीर बीमारी से जूझते हुए 25 मई, 2012 को भोपाल (म.प्र.) में अवसान।

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