Aksharo Ke Aage

Language: Hindi
Publisher: Lokbharti Prakashan
25% Off
Out of stock
SKU
Aksharo Ke Aage

'अज्ञानवश अन्धविश्वास में फँसना एक बात है और ज्ञान होते हुए भी अन्धविश्वास का शिकार होना दूसरी बात है। अन्धविश्वास के कारण मनुष्य का आत्म- विश्वास क्षीण होता है, शक्ति तथा क्रियाशीलता में शिथिलता आती है, यहाँ तक कि वह एकदम निकम्मा तथा असमाजिक भी हो जाता है, जैसे लाखों साहू, सन्त, फ़क़ीर, आवारे, चोर, डाकू, हत्यारे, अन्य अपराधकर्मी आदि। सबसे गम्भीर बात तो यह है कि अन्धविश्वासों के कारण समाज के विकास में बड़ी रुकावटें आती हैं, आदमी की सामाजिक चेतना तक कुंठित हो जाती है, जिसके चलते आदमी समाज के विकास की नई दिशा में अथवा नए मार्ग पर चलने से इनकार कर देता है।... हमारी ज़‍िन्दगी ऐसी क्यों है, हम क्यों अंधविश्वासों, कुप्रथाओं से जकड़े हुए हैं, हम क्यों अपने अनुभवों से भी कुछ नहीं सीखते?'

More Information
Language Hindi
Binding Paper Back
Publication Year 2007
Pages 254p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
Write Your Own Review
You're reviewing:Aksharo Ke Aage
Your Rating
Bhairavprasad Gupt

Author: Bhairavprasad Gupt

भैरवप्रसाद गुप्त

जन्म : 7 जुलाई, 1918 को गाँव— सिवानकला, बलिया, उ.प्र.।

शिक्षा : इविंग कॉलेज, इलाहाबाद से स्नातक।

अपने शिक्षक की प्रेरणा से कहानी-लेखन की ओर रुझान हुआ। जगदीशचन्द्र माथुर, शिवदानसिंह चौहान जैसे लेखकों एवं आलोचकों के सम्पर्क और साहित्यक-राजनीतिक परिवेश में उनके रचनात्मक संस्कारों को दिशा मिली।

सन् 1940 में मज़दूर नेताओं से सम्पर्क। सन् 1944 में माया प्रेस, इलाहाबाद से जुड़े। अपने अन्य समकालीनों की तरह आर्य समाज और गाँधीवादी राजनीति की राह से वामपंथी राजनीति की ओर आए। सन् 1948 में वे कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य बने।

प्रमुख प्रकाशित पुस्तकें : उपन्यास—‘शोले’, ‘मशाल’, ‘गंगा मैया’, ‘ज़ंजीरें और नया आदमी’, ‘सत्ती मैया का चौरा’, ‘धरती’, ‘आशा’, ‘कालिन्दी’, ‘रम्भा’, ‘अन्तिम अध्याय’, ‘नौजवान’, ‘एक जीनियस की प्रेमकथा’, ‘भाग्य देवता’, ‘अक्षरों के आगे’ (मास्टर जी), 'छोटी-सी शुरुआत’; कहानी-संग्रह—‘मुहब्बत्त की राहें’, ‘फ़रिश्ता’, ‘बिगडे हुए दिमाग़’, ‘इंसान’, ‘बलिदान की कहानियाँ’, ‘मंज़‍िल’, ‘महफ़‍िल’, ‘सपने का अन्‍त’, ‘आँखों का सवाल’, ‘मंगली की टिकुली’, ‘आप क्या कर रहे हैं?’; नाटक और एकांकी—‘कसौटी’, ‘चंदबरदाई’, ‘राजा का बाण’। सम्पादित पत्रिकाएँ—‘माया’, ‘मनोहर कहानियाँ’, ‘कहानी’, ‘नई कहानियाँ’ आदि ।

निधन : 5 अप्रैल, 1995

Read More
Books by this Author
New Releases
Back to Top