पेट भरने के प्रबन्ध के बाद जो समस्या सामने आती है, वह है—सम्भोग की। यह समस्या उदित होती है किशोरावस्था में, और यौवन से प्रौढ़ावस्था के ढल जाने तक चलती है। इस समस्या के समाधान के लिए क्या किया जाए? जब तक सम्पन्नता एवं स्वस्थ मनोवृत्ति निर्मित नहीं होती है और सबका एक निवास-स्थल और पति-पत्नी के अलग नीड़ का प्रबन्ध नहीं होता है तब तक सरकार के नियंत्रण में स्त्री-पुरुषों की ऐसी संस्थाओं की स्थापना करना अनुचित न माना जाए, जहाँ प्रेम-प्रधान मनोविनोद एवं कलात्मक वातावरण रहे, ताकि सम्भोग की मूल प्रवृत्ति का मार्गान्तरीकरण हो सके। तब भी बलात्कार की घटनाएँ होती हों तो फिर दंड-विधान प्रभावी हो सकता है अन्यथा हर क्षण, हर एकान्त स्थली और हर व्यक्ति बलात्कार की सृष्टि के साधक हो सकते हैं। 'अहल्या’ में यही दिखाया गया है। स्त्री-पुरुष के मिलन की घटनाओं को राजकुमार राम की तरह अधिक तूल न देकर सहानुभूति से जाँचने की आवश्यकता है। किसी भी कारण सर्वसम्पन्न इन्द्र और कुलीन अहल्या का संयोग-वृत्त उन्हें अक्षम्य शाप-दंड की परिधि के अन्दर नहीं ले जाता है। राम के आदेश पर शाप-दंड दाता गौतम सबको क्षमा करता है। ठीक है, थाली में रखे भोजन को खाने से जूठा हो जाने की तरह नारी जूठी नहीं हो जाती है, वह केवल सम्भोग-सामग्री नहीं, पूज्य माँ है। राम अपने मुँह से 'माँ! उठो’, कहकर ही सबकी दृष्टि में उसका उद्धार करते हैं और गौतम उसे पाकर अपने को धन्य समझता है। अहल्या, जो कि इस काव्य की नायिका है, उसके माध्यम से नारी के पुरुष-सम्पर्क से उद्भूत समस्याओं का आकलन करना तथा उनका समाधान ढूँढ़कर उसे एक दिशा दिखाना मेरे इस काव्य का प्रमुख उद्देश्य है। काव्य-कर्ता को वस्तु की प्रबन्धात्मकता के औचित्य के अन्दर समाहित करने में काव्यशास्त्र का सहारा लेना पड़ता है। फलत: वस्तुगत सत्य और साहित्यिक सत्य में कुछ भिन्नता आ जाती है, अत: विद्वज्जन को मेरे काव्य में भिन्नता दिखाई देगी, हालाँकि मैंने अपनी ओर से विभिन्न स्रोतों में समन्वय स्थापित करने का प्रयत्न किया है।

—'प्रस्तावना’ से

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2014
Edition Year 2014, Ed. 1st
Pages 88P
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 2
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Mathuradatt Pandey

Author: Mathuradatt Pandey

मथुरादत्‍त पाण्‍डेय

जन्म : 12 अगस्त, 1928; उत्तरांचल के गाँव—कुमाल्ट, रानीखेत, अल्मोड़ा में।

शिक्षा : उच्च शिक्षा वाराणसी तथा पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़।

पंजाब और नेपाल में प्राध्यापकीय जीवन। वी.वी.आर. संस्थान, होशियारपुर के संयुक्त निदेशक तथा हॉलैंड के महर्षि वैदिक विश्वविद्यालय में अभ्यागत आचार्य रहे। नेपाली-हिन्दी भक्तिकाव्य, तंत्र सम्बन्धी पांडुलिपि ग्रन्थों की सूची-रचना, सुभाषित-संग्रह-सम्पादन आदि विषय-क्षेत्रों में शोध के अलावा काव्य-परम्परा, वैदिक साहित्य तथा शैक्षिक विषयों पर व्यापक शोधपरक लेखन।

कृतियाँ : संस्कृत—'पल्लवपंचकम्’, 'द्यावा-प्रथिवीयम्’ तथा 'कालगिरि’ आदि एकांकी नाटक-संग्रह; ‘अपराजिता’ (कथा); ‘एकांक-पंचदशी’ (लघु रूपक) एवं अनेक शोध-पत्र व आलेख। हिन्दी—'नेपाली-हिन्दी भक्तिकाव्य का तुलनात्मक अध्ययन’ (शोध), 'बिछलन’, 'अहोरात्र’ (काव्य-संग्रह); 'प्रणय और परिणय’ (उपन्यास); 'कुहराई गुफाएँ’ (कथा-संग्रह); ‘होमियोपैथिक मेटेरिया मेडिका’ (हिन्दी दोहों में) तथा ‘दुर्गाचरित श्रीदुर्गा सप्तशती’ का पद्य-रूपान्तर’ आदि।

सम्मान : ‘बलराज साहनी राष्ट्रीय पुरस्कार’; भाषा विभाग, पंजाब का ‘शिरोमणि साहित्यकार सम्मान’; ‘कालिदास पुरस्कार’; 'कुहराई गुफाएँ’ पर ‘सुदर्शन पुरस्कार’; राष्ट्रपति की ओर से 'लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड’; प्रणय मीडिया, चंडीगढ़ द्वारा ‘विवेकानन्द एक्सेलेंसी अवार्ड’ तथा संस्कृत अकादमी, हरियाणा द्वारा ‘महर्षि वेदव्यास सम्मान’ आदि।

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