पारसी थिएटर हमारी बहुमूल्य विरासत है, इसलिए हमें इसकी हिफ़ाज़त भी करनी है। ‘राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय’ में पारसी नाटकों के मंचन की परम्परा रही है। यह भी एक सत्य है कि उत्तर भारत के सभी नगरों और महानगरों में रंगकर्मी इस परम्परा से जुड़ने पर सुख और सन्तोष का अनुभव करते हैं। शायद यही कारण है कि देश-भर के रंगकर्मी समय-समय पर पारसी नाटकों, विशेषकर आग़ा हश्र काश्मीरी के नाटकों की माँग करते रहते हैं।
दो खंडों की इस पुस्तक में आगा हश्र के दस चर्चित नाटकों के साथ उनके जीवन व योगदान पर एक लम्बा शोधपरक लेख भी शामिल है। पहले खंड में 'असीर-ए-हिर्स', 'सफ़ेद ख़ून', 'सैद-ए-हवस' तथा 'ख़ूबसूरत बला' नाटकों को शामिल किया गया है। दूसरे खंड में हैं—'सिल्वर किंग', 'यहूदी की लड़की', 'आँख का नशा', 'बिल्वा मंगल', 'सीता बनबास' तथा 'रुस्तम-ओ-सोहराब'। इन नाटकों के लिप्यन्तरण में शब्दार्थ के साथ-साथ इस बात का भी पूरा ध्यान रखा गया है कि उर्दू शब्दों का यथासम्भव सही उच्चारण हो सके और ख़ास तौर पर अभिनेताओं तथा रंगकर्मियों को संवाद अदायगी में कोई दिक़्क़त पेश न आए।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back |
Publication Year | 2004 |
Pages | 646p |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publisher | Rajkamal Prakashan |