Adhbuni Rassi : Ek Parikatha

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Adhbuni Rassi : Ek Parikatha
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रस्सी अगर अधबुनी रह जाए तो वह रस्सी नहीं कहलाती। रस्सीपन न हो तो रस्सी कैसी? बुननेवाले ने आख़‍िर पूरी क्यों नहीं बुनी? बुननेवाला मिले तभी तो पूछें। और वह नहीं मिलता। डमरुआ गाँव और उसमें रहनेवालों की ज़िन्‍दगी ऐसी ही एक अधबुनी रस्सी है। जीवन्‍तता में कोई कमी नहीं है। लेकिन यह एक कड़ी सच्‍चाई है कि जिजीविषा अपने आपमें कोई गारंटी नहीं—न निर्माण की और न नाश के निराकरण की। फिर यह भी कि जहाँ जिजीविषा, वहाँ आस्था। भले ही अधबुनी ज़िन्‍दगियाँ हों लेकिन ज़िन्‍दगीपन से भरपूर हैं —उनका यह पूरापन आकर्षित भी करता है और अपने अधबुनेपन पर करुणा भी उपजाता है। और सबसे ख़ास बात यह है कि लेखक ने कथा बड़ी सहजता से कही है। पूरे भरोसे के साथ उसने पात्रों और उनके परिवेश का पाठकों से परिचय करवाया है और सहृदय पाठक पाता है कि परिचय एक अविस्मरणीय आत्मीयता में बदल गया है। कहना होगा कि औपन्यासिकता कोई अधबुनी नहीं रह गई है। लेखक का यह पहला उपन्यास है लेकिन इसे निस्संकोच ‘मैला आँचल’ और ‘अलग अलग वैतरणी’ की परम्परा में रखा जा सकता है और यह कोई कम उपलब्धि की बात नहीं। डमरुआ गाँव और उसमें रहनेवालों को जानना जैसे स्वयं को और अपने परिवेश को नए सिरे से पहचानना है। जिस सहजता के साथ डमरुआ एकाएक बीसवीं शती के उत्तरार्ध का भारत बन जाता है, वह पाठक के लिए एक सुखद विस्मयकारी घटना है। कथा-रस और यथार्थ का ऐसा संयोग बहुत ही कम देखने को मिलता है और ‘अधबुनी रस्सी : एक परिकथा’ उपन्यास इसीलिए पाठक के अनुभव संसार को अतुलनीय समृद्धि देने में सक्षम बन सका है। कथ्य सहज, शिल्प सहज और फिर भी रस्सी के अधबुनी रह जाने की अत्यन्‍त विशिष्ट कथा उपन्यास को बार-बार पढ़ने को प्रेरित करती है। कोई विस्मय की बात नहीं, अगर यह उपन्यास भविष्य में इने-गिने महत्त्वपूर्ण उपन्यासों में एक गिना जाए।

—वेणुगोपाल

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2009
Edition Year 2023, Ed. 2nd
Pages 271p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 2
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Sachchidanand Chaturvedi

Author: Sachchidanand Chaturvedi

सच्चिदानन्द चतुर्वेदी

जन्म : 1 मई, 1958 को ग्राम—गोधनी, जनपद—कन्नौज (उत्तर प्रदेश) में।

शिक्षा : पीएच.डी. (संस्कृत), कानपुर विश्वविद्यालय; पीएच.डी. (हिन्दी), मणिपुर विश्वविद्यालय, इम्फाल।

शिक्षण अनुभव : राजकीय महाविद्यालय, बमडीला, अरुणाचल प्रदेश; वार्सा विश्वविद्यालय, पोलैंड के दक्षिण पूर्व एशिया अध्ययन केन्द्र में एसोशिएट प्रोफ़ेसर (फ़रवरी 2005 से फ़रवरी 2007 तक)।

विदेश में व्याख्यान  : विलनिस विश्वविद्यालय, लिथुआनिया; क्रैकोफ विश्वविद्यालय, क्रैकोफ; पोलैंड, पोजनान विश्वविद्यालय, पोजनान; पोलैंड तथा वार्सा विश्वविद्यालय, वार्सा; पोलैंड में विभिन्न विषयों पर भाषण।

‘दैनिक वार्ता’, ‘वसुधा’, ‘अनभै साँचा’, ‘नई धारा’, ‘भाषा भारती’ आदि पत्र-पत्रिकाओं में लेख और कहानियाँ प्रकाशित।

प्रकाशित कृतियाँ : ‘वैराग्य—एक दार्शनिक एवं तुलनात्मक अध्ययन’; ‘अरुणाचल का आदिकालीन इतिहास : एक झलक’; एक कहानी संग्रह; अज्ञेय के निबन्ध प्रकाशनाधीन।

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