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Acharya Nand Dulare Vajpeyi

Edition: 2020, 1st Ed.
Language: Hindi
Publisher: Lokbharti Prakashan
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Acharya Nand Dulare Vajpeyi

ऐतिहासिक तथ्य तो यही है कि शुक्लोत्तर आलोचकों में अग्रगण्य और सर्वप्रमुख नाम आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी का है। ‘हिन्दी आलोचना की बीसवीं सदी’ की लेखिका निर्मला जैन का यह कथन तथ्यपूर्ण है कि 'आचार्य शुक्ल का विशाल व्यक्तित्व एक चुनौती की तरह परवर्ती आलोचकों के सामने खड़ा था...बाद की आलोचना में उनकी सीधी और पहली टकराहट छायावाद को लेकर अपने ही शिष्य नन्ददुलारे वाजपेयी से हुई।...वाजपेयी ने शुक्ल जी को सैद्धान्तिक स्तर पर चुनौती दी।'

आचार्य वाजपेयी मानते थे कि ‘कवि अपने काव्य के लिए ही ज़‍िम्मेदार है पर समीक्षक अपने युग की सम्पूर्ण साहित्यिक चेतना के लिए ज़‍िम्मेदार है।' उनकी समीक्षा-दृष्टि इसी सन्दर्भ में 'प्रगल्भ भावोन्मेष' की स्वामिनी है।

राष्ट्रीय और मूलभूत क्रान्तिकारी विरासतों के साथ अपने देश और काल को अहमियत देते हुए भी वे वैश्विक चेतना के प्रति सजगता को भी समीक्षक का धर्म मानते थे।

इसमें क्या शक कि वे न केवल महान राष्ट्रीय आन्दोलन के वैचारिक पार्टनर थे बल्कि उसी की उपज भी थे। इसीलिए उनकी आलोचना में राष्ट्रीय और सांस्कृतिक मूल्यों का आग्रह क़दम-क़दम पर है। वे आगत परम्पराओं को जाँचते-तौलते भी ख़ूब हैं और गाँधी की तरह अपने घर की खिड़कियों को स्वस्थ प्राण-वायु के लिए खुली भी रखते हैं।

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Language Hindi
Binding Hard Back
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publication Year 2020
Edition Year 2020, 1st Ed.
Pages 184p
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1.5
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Author: Vijay Bahadur Singh

विजय बहादुर सिंह

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