Aapeshikta Siddhant Kya Hai

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Aapeshikta Siddhant Kya Hai
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महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टाइन (1879-1955 ई.) द्वारा प्रतिपादित आपेक्षिकता-सिद्धान्‍त को वैज्ञानिक चिन्‍तन की दुनिया में एक क्रान्तिकारी खोज की तरह देखा जाता है। इस सिद्धान्त ने विश्व की वास्तविकता को समझने के लिए एक नया साधन तो प्रस्तुत किया ही है, मानव चिन्तन को भी गहराई से प्रभावित किया है। अब द्रव्य, गति, आकाश और काल के स्वरूप को नए नज़रिए से देखा जा रहा है। सन् 1905 में ‘विशिष्ट आपेक्षिकता’ का पहली बार प्रकाशन हुआ, तो इसे बहुत कम वैज्ञानिक समझ पाए थे, इसके बहुत-से निष्कर्ष पहेली जैसे प्रतीत होते थे। आज भी इसे एक ‘क्लिष्ट’ सिद्धान्त माना जाता है। लेकिन इस पुस्तक में आपेक्षिकता के सिद्धान्त को, गणितीय सूत्रों का उपयोग किए बिना, इस तरह प्रस्तुत किया गया है कि इसकी महत्त्वपूर्ण बातों को सामान्य पाठक भी समझ सकते हैं। संसार की कई प्रमुख भाषाओं में अनूदित इस पुस्तक के लेखक हैं, ‘नोबेल पुरस्कार’ विजेता प्रख्यात भौतिकवेत्ता लेव लांदाऊ और उनके सहयोगी यूरी रूमेर। परिशिष्ट में इनका जीवन-परिचय भी दिया गया है। इतिहास-पुरातत्त्व और वैज्ञानिक विषयों के सुविख्यात लेखक गुणाकर मुळे ने सरल भाषा में इस पुस्तक का अनुवाद किया है। कई वैज्ञानिक शब्दों और कथनों को स्पष्ट करने के लिए अनुवादक ने पाद-टिप्पणियाँ भी दी हैं। साथ ही, परिशिष्ट में ‘विशिष्ट शब्दावली’ तथा ‘पारिभाषिक शब्दावली’ के अलावा अल्बर्ट आइंस्टाइन की संक्षिप्त जीवनी भी जोड़ी गई है, चित्रों सहित। हिन्‍दी माध्यम से ज्ञान-विज्ञान का अध्ययन करनेवाले पाठकों के लिए आपेक्षिकता सिद्धान्त के शताब्दी वर्ष में यह पुस्तक एक अनमोल उपहार की तरह है।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2006
Edition Year 2014, Ed. 3rd
Pages 128p
Translator Gunakar Muley
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
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Lev Landau & yuri Rumer

Author: Lev Landau & yuri Rumer

लेव लांदाऊ   

लेव लांदाऊ का जन्‍म 22 जनवरी, 1908 को कैस्पियन समुद्रतट के नगर बाकू (अजरबैजान) की राजधानी में एक मध्‍यवर्गीय यहूदी परिवार में हुआ था। पिता पेट्रोलियम इंजीनियर थे और माँ चिकित्‍सक। लांदाऊ बचपन से ही कुशाग्रबुद्धि के थे। गणित में उनकी गहरी दिलचस्‍पी थी। चौदह साल की आयु में बाकू विश्‍वविद्यालय के गणित तथा भौतिकी विभाग में प्रवेश लिया। दो साल बाद लांदाऊ लेनिनग्राद विश्‍वविद्यालय के भौतिकी विभाग में दाख़िल हुए और 1927 में उन्‍नीस साल की उम्र में स्‍नातक बने। वे अभी विश्‍वविद्यालय में विद्यार्थी ही थे, जब उनका पहला स्‍वतंत्र शोध-निबन्‍ध प्रकाशित हुआ।

दो साल बाद 1929 में लांदाऊ को विदेश जाने का मौक़ा मिला। उन्‍होंने डेनमार्क, इंग्‍लैंड, जर्मनी, और स्विट्जरजैंड में डेढ़ साल रहकर शोध-कार्य किया। कोपेनहेगन के सैद्धान्तिक भौतिकीय संस्‍थान में नील्‍स बोर (1885-1972 ई.) के साथ गुज़ारे दिन उनके लिए बड़े लाभप्रद सिद्ध हुए। लांदाऊ अपने को हमेशा नील्‍स बोर का शिष्‍य मानते रहे।

विदेश से लौटने के बाद लांदाऊ ज्‍़यादा दिनों तक लेनिनग्राद में नहीं रहे। वे खारकोव के ‘उक्राइन भौतिकीय तकनीकी संस्‍थान’ चले गए। वहाँ पाँच साल रहकर उन्‍होंने भौतिकी के अध्‍ययन-अन्‍वेषण के लिए एक ‘न्‍यूनतम पाठ्यक्रम’ तैयार किया और भौतिकी के क्षेत्र में शोध-कार्य करने के लिए कई विद्यार्थियों को प्रोत्‍साहित किया।

सन् 1937 में लांदाऊ मास्‍को में नए स्‍थापित ‘भौतिकीय समस्‍या संस्‍थान’ चले आए और वहाँ सैद्धान्तिक विभाग के प्रमुख नियुक्‍त हुए। मास्‍को आने के बाद लांदाऊ ने सैद्धान्तिक भौतिकी के कई क्षेत्रों में मौलिक अनुसन्‍धान-कार्य किया, जिनमें प्रमुख है—क्‍वांटम द्रवों का सिद्धान्‍त। द्रव हीलियम की अतितरलता के साथ लांदाऊ का नाम अभिन्‍न रूप से जुड़ गया है।

लांदाऊ को सन् 1962 में भौतिकी का ‘नोबेल पुरस्‍कार’ प्रदान किया गया।

सन् 1968 में 60 साल की आयु में निधन हुआ।

 

About Author : यूरी रूमेर

1901 में जन्‍मे यूरी रूमेर भौतिकी के प्राध्यापक थे। वे खारकोव के ‘उक्राइन भौतिकीय तकनीकी संस्‍थान’ में लांदाऊ के सहकर्मी और उन्‍हीं के साथ रहते थे। दोनों ने मिलकर इलेक्‍ट्रॉन-फ़ोटॉन सोपानी बौछार के सृजन के लिए एक गणितीय सिद्धान्‍त प्रस्‍तुत किया था।

सन् 1938 के दमन के दिनों में, लेव लांदाऊ की तरह, यूरी रूमेर को भी गिरफ़्तार करके साइबेरिया में निर्वासित कर दिया गया था। उन दिनों लांदाऊ रूमेर को नियमित रूप से पैसा भेजते थे। उन दिनों की परिस्थितियों में ऐसा करना एक बहुत बड़े साहस का काम था। मुक्ति मिलने और पुन: बहाली होने पर यूरी रूमेर ने पहले येनिसेइस्‍क के शैक्षणिक संस्‍थान में, फिर नोवासिबिर्स्‍क में और अन्‍त में सोवियत विज्ञान अकादमी की साइबेरियाई शाखा के नाभि‍कीय भौतिकी संस्‍थान में कार्य किया। 

सन् 1985 में यूरी रूमेर का निधन हुआ।   

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