देखते हम सब हैं, लेकिन देखने की कला सीखने और अभ्यास का विषय है। आज का जीवन कुछ ऐसा है कि वस्तुएँ, रंग और स्थितियाँ एक भागमभाग में हमारी आँखों के सामने आती हैं, और इससे पहले कि हम उन्हें 'देख' सकें, लुप्त भी हो जाती हैं; न तो हम उन चीजों से, उनके फैलाव से, उनकी वास्तविकता से परिचित हो पाते हैं, और न ही उन छवियों से अपने अनुभव-कोश को समृद्ध कर पाते हैं, जो वे चीज़ें हमारे सामने प्रस्तुत करती हैं। यह कैसी विडम्बना है कि इतनी आँखें एक अजीब-सी अजनबीयत के बोझ तले दबी रहती हैं।

वरिष्ठ कला चिन्तक और कवि प्रयाग शुक्ल एक अरसे से कला और कला के आसपास बसे संसार को बहुत ग़ौर से, बहुत बारीकी और बहुविध कोणों से देखते रहे हैं, और लगातार हमें अपने देखे हुए से तथा देखने के अपने अनुभव और कलाओं के भीतर आने-जाने की अपनी पूरी प्रक्रिया से भी परिचित कराते रहे हैं। समकालीन कला-जगत की गतिविधियों, उपलब्धियों और कला-परिदृश्य में हो रहे प्रयोगों आदि पर उनकी बराबर नज़र रही है। और, सम्भवतः इस समय हिन्दी में वे ही अकेले हैं जिनके पास आज की कला-प्रवृत्तियों के विषय में कहने के लिए बहुत कुछ हमेशा रहता है। यह पुस्तक उसकी एक बानगी है, जिसमें उन्होंने कला के एक अहम् पक्ष यानी 'देखने के हुनर' के अलावा समकालीन कला के दूसरे अनेक पक्षों पर भी प्रकाश डाला है।

कहने की आवश्यकता नहीं कि उनके गद्य की आत्मीयता अपने आप में एक अलग आकर्षण है, जिसके लिए इस पुस्तक को पढ़ा जाना चाहिए ।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2007
Edition Year 2019, Ed. 2nd
Pages 180p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 2
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You're reviewing:Aaj Ki Kala
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Prayag Shukla

Author: Prayag Shukla

प्रयाग शुक्ल

जन्म 28 मई, 1940; कोलकाता।

कवि, कथाकार, कला समीक्षक, निबन्धकार, अनुवादक और सांस्कृतिक विषयों के टिप्पणीकार। 'कल्पना', 'दिनमान', 'नवभारत टाइम्स' के सम्पादक मंडल में रहे। ‘राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय’ की पत्रिका 'रंगप्रसंग' और ‘संगीत नाटक अकादेमी’ की पत्रिका 'संगना' के प्रथम सम्पादक। ललितकला की पत्रिका 'समकालीन कला' के प्रथम दो अंकों का भी सम्पादन। 'यह जो हरा है' समेत दस कविता-संग्रह, पाँच कहानी-संग्रह, छह यात्रा-वृत्तान्त, और 'गठरी' समेत तीन उपन्यास प्रकाशित हैं। कला, रंगमंच, और फ़िल्म माध्यमों पर बहुतेरा लेखन। कई प्रदर्शनियाँ क्यूरेट की हैं जिनमें ड्रॉइंग 94, ड्रॉइंग 2014, रामकुमार के रेखांकनों की प्रदर्शनियाँ शामिल हैं।

रवीन्द्रनाथ ठाकुर की 'गीतांजलि', और उनके 'गीत वितान' से लगभग दो सौ गीतों का अनुवाद। बांग्‍ला से ही बंकिमचन्द्र के निबन्धों के अनुवाद पर ‘साहित्य अकादेमी अनुवाद पुरस्कार’। जीवनानन्द दास की कविताओं के अनुवाद भी प्रकाशित हैं। ‘द्विजदेव सम्मान’, ‘शरद जोशी सम्मान’, ‘श्रीनरेश मेहता वाङ्मय स्मृति सम्मान’ आदि पुरस्कार प्राप्त हुए हैं।

दिल्ली और भोपाल में रहकर स्वतन्त्र लेखन।

 

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