भारत का राष्ट्रीय आन्दोलन अंग्रेज़ी साम्राज्यवाद से मुक्ति–संघर्ष की गाथा है। स्वाधीनता आन्‍दोलन के संघर्ष में 1857 का मुक्ति-संग्राम उल्लेखनीय है। इसमें हर वर्ग, ज़मींदार, मज़दूर और किसान, स्त्री और पुरुष, हिन्‍दू और मुसलमान–सभी लोगों ने अपनी एकता एवं बहादुरी का परिचय दिया।

‘अगस्त क्रान्ति’ या 1942 के ‘भारत छोड़ो आन्‍दोलन’ को हम भारतीय स्वाधीनता का द्वितीय मुक्ति-संग्राम कह सकते हैं जिसके फलस्वरूप 5 वर्ष बाद 1947 में हमें आज़ादी मिली। पं. जवाहरलाल नेहरू के शब्दों में, ‘यह किसी पार्टी या व्यक्ति का आन्‍दोलन न होकर आम जनता का आन्‍दोलन था जिसका नेतृत्व आम जनता द्वारा ले लिया गया था।’

‘भारत छोड़ो आन्‍दोलन’ के सात दशक बाद आज भी भाषा, धर्म, क्षेत्रीयता के तत्त्व भारत को निगल जाने को आतुर हैं। राष्ट्रीय एकीकरण देश के समक्ष एक दु:खजनक समस्या बन गई है। इसका मुख्य कारण स्वतंत्रता के बाद की पीढ़ी का राष्ट्रीय आन्‍दोलन के बलिदानी इतिहास से परिचित न होना है। इसी पृष्ठभूमि में यह आवश्यक समझा गया कि नई पीढ़ी विशेषकर नवयुवकों के लिए एक ऐसी पुस्तक की रचना की जाए जिससे वे स्वाधीनता आन्‍दोलन की कड़ियों से परिचित हो सकें। इन कड़ियों में जहाँ सर्वप्रथम भारत के जाने–माने इतिहासकार विपिनचंद्र, ताराचंद, डॉ. के.के. दत्त के विचारों को प्रस्तुत किया गया है, वहीं डॉ. बी. पट्टाभि सीतारामय्या, डॉ. राजेन्‍द्र प्रसाद, पं. जवाहरलाल नेहरू, पी.सी. जोशी, मधु लिमये, आदि के विचारों के साथ आज के इतिहासविज्ञ प्रो. भद्रदत्त शर्मा, प्रो. सुमन्त नियोगी आदि के भी विचार ‘अगस्त क्रान्ति’ के विभिन्न पहलुओं पर रोशनी डालते हैं ।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2012
Edition Year 2022, Ed.3rd
Pages 224p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 2
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You're reviewing:1942 Ki August Kranti
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Fanish Singh

Author: Fanish Singh

फणीश सिंह

जन्म : 15 अगस्त, 1941 को ग्राम—नरेन्द्रपुर, ज़िला—सिवान (बिहार) में एक ज़मींदार परिवार में।

15 वर्ष की आयु में हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग से ‘विशारद’ की परीक्षा उत्तीर्ण की। इसके पश्चात् एम.ए. तथा बी.एल. करने के बाद पटना उच्च न्यायालय में अगस्त, 1967 में वकालत आरम्भ की। छात्र जीवन से ही हिन्दी साहित्य से अनुराग और अनेक लेख विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए। 1969 से हिन्दी साहित्य सम्मेलन, पटना की स्थायी समिति के सदस्य।

भारतीय प्रतिनिधि के रूप में 1983 में मास्को और 1986 में कोपनहेगेन विश्व-शान्ति सम्मेलन में शामिल हुए। सोवियत संघ की पाँच बार यात्रा की। विश्व-शान्ति परिषद् के विभिन्न कार्यक्रमों में सम्मिलित होने के लिए डेनमार्क, स्वीडन, इस्टोनिया, पोलैंड, जर्मनी, चेकोस्लोवाकिया, फ़्रांस, इटली, ऑस्ट्रिया, इंग्लैंड, अमरीका और पुनः जर्मनी की यात्रा की। सन् 2006 में अखिल भारतीय शान्ति एवं एकजुटता संगठन के प्रतिनिधि मंडल के सदस्य के रूप में चीन की यात्रा की। आपने हाल ही में टर्की, ग्रीस, स्पेन, हंगरी, हॉलैंड, बेल्जियम, स्कॉटलैंड एवं पुनः इंग्लैंड की यात्रा की। पिछले तीन वर्षों से दक्षिणपूर्व एशिया पर भारतीय संस्कृति के प्रभाव पर गहन अध्ययनरत हैं। इस सिलसिले में म्यांमार, थाइलैंड, लाओस, वियतनाम, कम्बोडिया, इंडोनेशिया (बाली), मलेशिया, सिंगापुर, मालद्वीप एवं श्रीलंका की यात्रा कर चुके हैं।

आपने हिन्दी साहित्य के इतिहास और विभिन्न विदेशी भाषाओं की कहानियों का विशेष अध्ययन किया। गोर्की और प्रेमचन्द के कृतित्व और जीवन–दृष्टिकोणों की सादृश्यता से दोनों पर शोध कार्य की प्रेरणा ली और इस विषय में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की। पहली पुस्तक ‘प्रेमचन्द एवं गोर्की का कथा–साहित्य : एक अध्ययन’ दिसम्बर, 2000 में प्रकाशित हुई ।

भारतीय सांस्कृतिक सम्बद्ध परिषद के सलाहकार समिति के सदस्य। आईपीएसओ के बिहार राज्य परिषद के महासचिव। राज्य की अनेक सांस्कृतिक संस्थाओं के पदाधिकारी। ‘कौमी एकता सन्देश’ के सम्पादक।

श्री फणीश सिंह की अब तक दर्जनों पुस्तकें हिन्दी साहित्य के विभिन्न विषयों एवं स्वाधीनता आन्दोलन पर प्रकाशित हो चुकी हैं।

निधन : 23 सितम्‍बर, 2020

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