Yadon Ke Panchhi

Author: P. E. Sonkamble
Translator: Suryanarayan Ransubhe
Edition: 2022, Ed. 3rd
Language: Hindi
Publisher: Radhakrishna Prakashan
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Yadon Ke Panchhi

आत्मकथापरक शैली में लिखा गया यह बेजोड़ उपन्यास एक ऐसे व्यक्ति की कथा-यात्रा है जिसने भूख को सहने के साथ-साथ उसे नज़दीक से देखा है और भूख के विकराल जबड़ों से निकलकर भी वह अपनी इंसानियत, अपनी संवेदना नहीं खो पाया है। बढ़ती ज़िन्दगी के हर तरफ़ से रोके गए रास्तों के बावजूद जिजीविषा उसे आगे बढ़ाती है, टूटने नहीं देती। जिस जोहड़ में उच्च वर्ग के ढोर पानी पी सकते हैं, उसमें दलित वर्ग के इस नायक को अपना सूखा कंठ भिगोने की इजाज़त नहीं है। उसे मरुभूमि की अपनी यह यात्रा भूखे-प्यासे रहकर ही पूरी करनी है।

इस उपन्यास में दलित वर्ग के हर प्रकार के शोषण का आकलन इतनी तटस्थ और सहज शैली में किया गया है कि बरबस लेखक के आत्म-संयम की दाद देनी पड़ती है। कमाल यह है कि जिनके कारण दलित वर्ग को इंसान से भी बदतर ज़िन्दगी जीनी पड़ रही है, उन्हें भी उपन्यास में काले रंग से नहीं पोता गया है। लेखक उच्च वर्ग के उन लोगों को भी नहीं भूला है जिनके कारण उसे क्षण-भर के लिए भी सुख या सांत्वना या प्रोत्साहन मिला है। कटुता-रहित भूख के अन्तरंग चित्र इस उपन्यास को प्रामाणिक दस्तावेज़ बनाते हैं।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back, Paper Back
Publication Year 1983
Edition Year 2022, Ed. 3rd
Pages 134p
Translator Suryanarayan Ransubhe
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1.5
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Author: P. E. Sonkamble

प्र.ई. सोनकांबले

आपका जन्‍म 1943 में पुराने उस्मानाबाद और अब लातूर ज़िले के सुल्लाली नामक गाँव में हुआ था। आपने शिक्षा में एम.ए. (अंग्रेज़ी) और एल-एल.बी. की उपाधि प्राप्‍त की। आप
डॉ. बाबासाहब आम्बेडकर कला-वाणिज्य महाविद्यालय, औरंगाबाद (द.) के अंग्रेज़ी विभाग में उप-प्राचार्य तथा अध्यक्ष रहे।

आप ‘यादों के पंछी’ सहित कई प्रसिद्ध कृतियों के लेखक हैं। आप तृतीय ‘दलित साहित्य सम्मेलन’ (1979), ‘ऑल इंडिया बुद्धिस्ट टीचर्स कॉन्फ़्रेंस’ (1981) और ‘दलित नाट्य महोत्सव’ (1982) के स्वागताध्यक्ष बनाए गए थे।

निधन : 6 जनवरी, 2010

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