Vishwarath : Vishwamitra

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Vishwarath : Vishwamitra
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कृष्णकान्त 'एकलव्य' के प्रबन्ध काव्य ‘विश्वस्थ’ से गुज़रना सुखद लगा। दरअसल जब पौराणिक कथा काव्य-रचना के लिए ली जाती है तो वह अपने मूल रूप में होकर भी समय के अनुसार कुछ परिवर्तित होती है। कवि उस पुरा-कथा के माध्यम से अपने समय के सत्य को उद्घाटित करता है। कवि इसीलिए पुराण या इतिहास की ऐसी कथाएँ या पात्र लेता है जिनमें नए समय के साथ जुड़कर कुछ नया कहने की क्षमता हो। वशिष्ठ और विश्वामित्र ऐसे महर्षि हैं जिनके चरित्रों की अलग-अलग छवियाँ हैं जो परस्पर टकराती भी हैं। 'एकलव्य' जी ने इन्हीं दो महर्षियों के माध्यम से आज के समय में व्याप्त अनेक समस्याओं को रूपायित किया है और कथा को समकालीनता की दीप्ति देकर अधिक प्रासंगिक बना दिया है।

—रामदरस मिश्र

More Information
Language Hindi
Publication Year 2018
Edition Year 2018, Ed. 1st
Pages 199p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1.5
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Krishnakant 'Eklavya'

Author: Krishnakant 'Eklavya'

कृष्णकान्त 'एकलव्य’

जन्म : 28 नवम्बर, 1940; जनपद जौनपुर (उ.प्र.) के एक गाँव में।

शिक्षा : ग्रामीण अंचल में माध्यमिक एवं उच्चतर माध्यमिक शिक्षा के बाद शहर में आकर हिन्दी साहित्य में स्नातकोत्तर उपाधि हासिल की।

जीवन-यात्रा एक अध्यापक के रूप में प्रारम्भ होते ही राजकीय सेवा में चयनित होकर बाहर चले गए, किन्तु राजकीय सेवा की विपरीत परिस्थितियों में भी एक दर्जन से अधिक कृतियों की रचना और प्रकाशन करते रहे।

प्रकाशन : ‘शि.ए.न. कुर्सी का स्वर्ग’, ‘सीता का अग्निवेश’, ‘स्मृति के झरोखे के अतिरिक्त व्यंग्य-शिल्प में छिपकली की लाश’, ‘लोकतंत्र से भोग तंत्र तक’, ‘एकलव्य के व्यंग्य-बाण’, ‘पूर्वांचल का हास्य-व्यंग्य’, ‘स्मृति शेष’, ‘हास्य-व्यंग्य पुरोधा’, ‘हिन्दी की प्रमुख लेखिकाएँ’ आदि विशेष उल्लेखनीय कृतियाँ हैं।

सम्मान : उत्तर प्रदेश सहित क्रमश: दिल्ली, मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात, बिहार प्रान्त की प्रमुख हिन्दी संस्थाओं द्वारा सम्मानित।

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