वायुमंडलीय प्रदूषण आज जिस तरह सघन होता जा रहा है, उससे पृथ्वी, प्रकृति और सम्पूर्ण जीवन-जगत को गम्भीर ख़तरा पैदा हो गया है। इसके मूल कारणों में हैं—तीव्र होता जा रहा शहरीकरण, अनियंत्रित औद्योगिक विकास और बढ़ती हुई आबादी।
डॉ. हरिनारायण श्रीवास्तव की यह पुस्तक पर्यावरण अथवा वायुमंडल-प्रदूषण की गम्भीर समस्या का वैज्ञानिक अध्ययन है। अपने अध्ययन-क्षेत्र के विशिष्ट विद्वान डॉ. श्रीवास्तव ने पूरी पुस्तक को आठ अध्यायों में बाँटा है। पहले अध्याय में वायुमंडल, जलवायु और वायुविलय सम्बन्धी जानकारी है। दूसरे में मौसम और प्रदूषण-मापक आधुनिक उपकरणों का विवरण है। तीसरे, चौथे और पाँचवें अध्याय में वायु, जल तथा ध्वनि-प्रदूषण के प्रभाव, उनके नियंत्रण आदि की चर्चा है। छठे में क्लोरोफ़्लूरो कार्बन के ओजोन परत पर पड़ रहे दुष्प्रभाव और उसकी प्रक्रिया को समझाया गया है। सातवें अध्याय में अम्ल-वर्षा के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला गया है, तथा आठवें में तापमान, वर्षा, पवनगति, सौर-विकिरण एवं कृषि आदि पर निरन्तर बढ़ती जा रही कार्बन डाइऑक्साइड एवं विरल गैसों के सम्भावित दुष्प्रभावों का विवेचन किया गया है। परिशिष्ट में दिए गए कुछ महत्त्वपूर्ण अध्ययन-निष्कर्षों तथा प्रत्येक अध्याय में यथास्थान शामिल विभिन्न तालिकाओं और रेखाचित्रों ने इस पुस्तक की उपयोगिता में और बढ़ोतरी की है।
कहना न होगा कि वर्तमान सभ्यता पर मँडराते सर्वाधिक घातक ख़तरे के प्रति आगाह करनेवाली यह कृति एक मूल्यवान वैज्ञानिक अध्ययन है।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back |
Publication Year | 1992 |
Edition Year | 2019, Ed. 5th |
Pages | 167p |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 22 X 14.5 X 1 |