Vama-Bodhini

Author: Navnita Devsen
Translator: Sushil Gupta
Edition: 2004, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
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Vama-Bodhini

‘वामा-बोधिनी’ सिर्फ़ वामाओं में बोधोदय रचती है, ऐसा नहीं है। नवनीता देव सेन की यह उपन्यासिका, उसका व्यतिक्रम है जो आधुनिक बंगला साहित्य में, निस्सन्देह एक साधारण संयोजन है। उपन्यास का केन्द्र-बिन्दु, हालाँकि औरत ही है, लेकिन इसमें पुरुष-विरोधी हुंकार नहीं है, बल्कि उसके प्रति ममत्व-भाव है। सोलहवीं शती के मैमनसिंह की एक बंगाली महिला कवि की जीवनगाथा, बीसवीं शती की तीन अलग-अलग औरतों की कथा में घुल-मिल गई है। एक चिरन्तन मानवी की व्यथा-कथा; जिसमें रचे-बुने गए हैं, अतल मन की गहराइयों के अनगिनत अहसास!

हम सबकी ज़िन्दगी में परत-दर-परत अनगिनत युद्ध छिड़े हुए हैं—राजनीति बनाम नैतिक सच्चाई; प्रेम बनाम दायित्व; पांडित्य बनाम सृजनात्मक प्रतिभा; पुरुष शासित नीतिबोध बनाम जगत के भीतरी मूल्यबोध; सामाजिक सुनीति बनाम मानवीय आवेग—इन तमाम ख़तरनाक विषयों की लेखिका ने जाँच-परख की है। कमाल की बात यह है कि इसके बावजूद कहीं रस-भंग नहीं हुआ है, शिल्प ने कहीं भी जीवन के स्वाभाविक प्रवाह का अतिक्रमण नहीं किया है, बल्कि कथा-शैली में विलक्षण रूप से एक अभिनव तत्त्व का समावेश हुआ है।

अतीत और वर्तमान, अन्तर्जीवन और बाह्य जीवन, वक्तव्य और कथा-बयानी, गद्य और पद्य, यहाँ घुल-मिलकर एकमेक हो गए हैं। रिसर्च के दौरान लिए गए नोट्स, डायरी के पन्ने, प्रेमियों के ख़त, ग्रामीण बालाओं के गीत, नायिका की विचारधारा, सम्पादक का जवाब—इस सबको मिलाकर इस कथा में, बिलकुल नए रूप में, बेहद सख़्त लेकिन बहुमुखी सत्य का सृजन किया गया है, जो कथा के शिल्प में हीरे की तरह जड़ा हुआ है; हीरे ही की तरह शुभ्र-उज्ज्वल कठोर और अखंडित रूप में जगमगाता हुआ।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 2004
Edition Year 2004, Ed. 1st
Pages 135p
Translator Sushil Gupta
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22.5 X 14.5 X 1.5
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Author: Navnita Devsen

नवनीता देव सेन

जन्म : 13 जनवरी, 1938

दुनिया में आते ही कविगुरु रवीन्द्रनाथ ने नाम दिया—नवनीता! घर में साहित्यिक परिवेश। बचपन में ही लेखन का श्रीगणेश हो गया।

शिक्षा: एम.ए., पीएच.डी.।

बारह वर्ष की उम्र में पिता नरेन देव और माँ राधारानी देवी के साथ यूरोप-यात्रा।

पहला काव्य-संग्रह ‘प्रथम प्रत्यय’। पहला उपन्यास ‘आमि अनुपम’। साहित्य की हर विधा में लेखन। आपकी कहानी, उपन्यास, भ्रमण-वृत्तान्त, निबन्ध, कविता के साथ-साथ रम्य-साहित्य और विनोद कथाओं ने बांग्ला साहित्य जगत में अपनी अलग जगह बनाई है। ‘करुणा तोमार कौन पथ दिए’, ‘गल्प-गुजब’, ‘नटी नवनीता’, ‘प्रवासे दैवेर वशे’, ‘हे पूर्ण तव चरणेर काछे’, ‘सीता थेके शुरू’ आदि उल्लेखनीय पुस्तकें हैं।

सम्मान : ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’ के अलावा भारतीय भाषा परिषद का पुरस्कार, ‘बंगीय साहित्य परिषद पुरस्कार’, ‘पद्मश्री’,‘महादेवी वर्मा पुरस्कार’आदि से सम्मानित।

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