Vaidehi Okhad Janai : Meera Aur Pashchimi Gyan-Mimansa

Author: Madhav Hada
Edition: 2023, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
As low as ₹225.00 Regular Price ₹250.00
10% Off
In stock
SKU
Vaidehi Okhad Janai : Meera Aur Pashchimi Gyan-Mimansa
- +
Share:

‘वैदहि ओखद जाणै’ पुस्तक में मीरां को उसकी अपनी सांस्कृतिक पारिस्थितिकी से अलग, पश्चिमी विद्वत्ता के सांस्कृतिक मानकों पर समझने-परखने के प्रयासों की पड़ताल है। पश्चिमी विद्वत्ता से मीरां का सम्बन्ध उपनिवेशकाल से ही है। कर्नल जेम्स टॉड ने मीरां को ‘रहस्यवादी संत-भक्त और पवित्रात्मा कवयित्री’ की पहचान दी, जबकि जर्मन विद्वान् हरमन गोएत्ज़ ने ख़ास पश्चिमी नज़रिये से उसके जीवन की पुनर्रचना की। फ्रांसिस टैफ़्ट सहित कुछ पश्चिमी विद्वानों ने उसके जीवन को ‘किंवदंती’ में सीमित कर दिया, जबकि स्ट्रैटन हौली खींच-खाँचकर उसकी कविता के विरह को भारतीय समाज की कथित लैंगिक असमानता में ले गए। विनांद कैलवर्त, स्ट्रैटन हौली आदि ने मीरां को बहुत मनोयोग से पढ़ा-समझा, लेकिन उन्होंने उसकी कविता को पांडुलिपीय प्रमाणों के अभाव, भाव विषयक बहुवचन और भाषा सम्बन्धी वैविध्य के कारण कुछ हद तक अप्रामाणिक ठहरा दिया।

टॉड का कैनेनाइजेशन औपनिवेशिक साम्राज्यवाद के विस्तार व स्थिरता और व्यापक नीति का हिस्सा था, जबकि हरमन गोएत्ज की मीरां के जीवन की पुनर्रचना पश्चिमी मनीषा के जीवन को देखने-समझने के विभक्त नज़रिये का नतीजा है। मीरां की पहचान और मूल्यांकन में प्रयुक्त अन्य कसौटियों—‘ऑथेंटिक’, एकरूपता, संगति आदि का भी दरअसल मीरां के जीवन और कविता की पहचान और मूल्यांकन में इस्तेमाल बहुत युक्तिसंगत नहीं है। पश्चिम का सांस्कृतिक बोध अलग प्रकार का है, क्योंकि इसका विकास चर्च के अनुशासन में हुआ है, जबकि भारतीय सांस्कृतिक बोध इस तरह के किसी अनुशासन से हमेशा बाहर, स्वतंत्र रूप से विकसित हुआ। भक्ति आन्दोलन तो भारतीय मनीषा की स्वातंत्र्य चेतना का विस्फोट है और स्वतंत्रता हमेशा बहुवचन में ही चरितार्थ होती है। मीरां की कविता भी इसीलिए श्रुत और स्मृत पर निर्भर ‘जीवित’ कविता है और इसका स्वर बहुवचन है।

इस पुस्तक में मीरां सम्बन्धी पश्चिमी विद्वत्ता की इन धारणाओं का प्रत्याख्यान है। यह प्रत्याख्यान इसलिए ज़रूरी है कि आम भारतीय मीरां के सम्बन्ध में अपनी सदियों से चली आ रही धारणाओं के प्रति मन में किसी संशय को जगह देने से पहले विचार करें।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back, Paper Back
Publication Year 2023
Edition Year 2023, Ed. 1st
Pages 160p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1
Write Your Own Review
You're reviewing:Vaidehi Okhad Janai : Meera Aur Pashchimi Gyan-Mimansa
Your Rating
Madhav Hada

Author: Madhav Hada

माधव हाड़ा

विख्यात आलोचक माधव हाड़ा का जन्म 9 मई, 1958 को उदयपुर, राजस्थान में हुआ। वे मुख्यतः मध्यकालीन साहित्य और इतिहास के क्षेत्र में रुचि रखते हैं। आधुनिक साहित्य, मीडिया और संस्कृति के क्षेत्र में भी उनका महत्त्वपूर्ण कार्य है। उनकी चर्चित कृति—‘पचरंग चोला पहर सखी री’ मध्ययुगीन संत-भक्त कवयित्री मीरांबाई के जीवन और समाज पर एकाग्र है, जिसका अंग्रेज़ी अनुवाद ‘मीरां वर्सेज़ मीरां’ नाम से प्रकाशित है। उनकी यह पुस्तक पर्याप्त चर्चा में रही। इसे 32वें ‘बिहारी पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया।

माधव हाड़ा ने भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला में दो वर्षीय अध्येतावृत्ति के अन्तर्गत (2019-2021) ‘पद्मिनी विषयक देशज ऐतिहासिक कथा-काव्य का विवेचनात्मक अध्ययन’ विषय पर शोध कार्य किया, जो ‘पद्मिनी : इतिहास और कथा-काव्य की जुगलबंदी’ नाम से प्रकाशित हुआ। प्राच्यविद्याविद् मुनि जिनविजय के अवदान पर भी उनका शोध कार्य है, जो साहित्य अकादेमी से प्रकाशित है। हाल ही में उन्होंने ‘कालजयी कवि और उनकी कविता’ नामक एक पुस्तक शृंखला का सम्पादन किया है, जिसमें कबीर, रैदास, मीरां, तुलसीदास, अमीर ख़ुसरो, सूरदास, बुल्लेशाह और

गुरु नानक शामिल हैं।

उनकी अन्य कृतियों में ‘वैदहि ओखद जाणै’, ‘देहरी पर दीपक’, ‘सीढ़ियाँ चढ़ता मीडिया’, ‘मीडिया, साहित्य और संस्कृति’, ‘कविता का पूरा दृश्य’, ‘तनी हुई रस्सी पर’ और सम्पादित कृतियों में ‘एक भव अनेक नाम’, ‘सौने काट ने लागै’, ‘मीरां रचना संचयन’, ‘कथेतर’ और ‘लय’ शामिल हैं।

मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय,उदयपुर के प्रोफ़ेसर पद से सेवानिवृत्ति के बाद, संप्रति वे भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान की पत्रिका ‘चेतना’ के सम्पादन से सम्बद्ध हैं।

ई-मेल : madhavhada@gmail.com

Read More
Books by this Author
New Releases
Back to Top