Uttar Aadhunikta : Bahuayami Sandarbh

Literary Criticism
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Uttar Aadhunikta : Bahuayami Sandarbh
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अधिवृत्तान्त और महावृत्तान्त को खारिज करने वाली तथा अपनी बहुआयामिता में विश्वव्यापी उत्तर- आधुनिकता लगातार बौद्धिकों की मीमांसा का विषय रही है। पर हिन्दी में अब तक इसे इसकी व्यापकता में न देखकर उत्तर-संरचनावाद, नव्य पूँजीवाद और विश्व- बाज़ारवाद से ही जोड़कर विवेचित किया गया है।

उत्तर-आधुनिकता का सरोकार वास्तुकला से स्थापत्य और अभिकल्पन कला तक; सर्जनात्मक और आलोचनात्मक साहित्य से सौन्दर्यशास्त्र, डी- कंस्ट्रक्शन और उत्तर-मार्क्सवाद तक; संस्कृति और स्त्रीवाद से समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र, राजनीतिशास्त्र, दर्शन, विधि और विज्ञान तक; संगीत, चित्र और छायाचित्र से फिल्म, वीडियो, दूरदर्शन और संचार- माध्यमों के प्रौद्योगिकीय विस्फोट तक व्याप्त है।

यह पुस्तक इस व्यापकता को निरूपित करती है तथा गहनता में जाकर यह बताती है कि उत्तर-आधुनिकता के नाभिकेन्द्र में 'इच्छा' सक्रिय है। यह 'विवेक' को केन्द्र में रखने वाली आधुनिकता को नष्ट-भ्रष्ट कर चुकी है। यह ज्ञान को शक्ति मानती है— 'Knowledge is Power', यह उत्पादन, श्रम और इतिहास के अन्त की घोषणा कर चुकी है, साथ ही मूल्य-मीमांसा को खारिज भी। पर यह न्याय-व्यवस्था में विश्वास रखती है, यह मानती है कि न्याय लोगों के आत्म-निर्धारण में बसता है। यदि ल्योतार का विश्वास 'बहुईश्वरवाद' और 'मूर्तिपूजावाद' में है, तो बौद्रिआ अमेरिकी 'वाटरगेट स्कैंडल' और 'डिस्नीलैण्ड' – दोनों को उत्तर- आधुनिक अधि-यथार्थ मानता है। उत्तर-आधुनिक संसार अधि यथार्थ का छाया संसार है।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2010
Edition Year 2023, Ed. 2nd
Pages 314p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 2
Pandeya Shashibhushan 'Shitanshu'

Author: Pandeya Shashibhushan 'Shitanshu'

पाण्डेय शशिभूषण 'शीतांशु’

 

जन्म : 13 मई, 1941

शिक्षा : पीएच. डी. (हिन्दी), डी. लिट्. (भाषा-विज्ञान), स्नातकोत्तर डिप्लोमा (अनुवाद)।

गतिविधियाँ : हिन्दी में वादमुक्त आलोचना के शिखर-पुरुष तथा सुप्रतिष्ठ सैद्धान्तिक और सर्जनात्मक आलोचक। जितनी व्यापकता और गहनता में प्रतिमानों की दृष्टि से भारतीय एवं पाश्चात्य आलोचना-सिद्धान्तों की शक्ति-सीमा पर मौलिक चिन्तन-मनन किया, उतनी ही सूक्ष्मता और प्रातिभ अन्तर्दृष्टि से हिन्दी में पहली बार कुछ प्रसिद्ध साहित्य-पाठों (कविताओं, उपन्यासों, कहानियों और नाटकों) की सार्थकता और साभिप्रायता का तलोन्मेषी उद्घाटन भी किया है।

ये एक निर्भीक प्रत्यालोचक भी हैं। इन्होंने पन्त, दिनकर, मुक्तिबोध, रामविलास शर्मा, नामवर सिंह आदि शीर्ष साहित्यकारों द्वारा स्थापित-प्रचारित प्रत्येक भ्रान्त मतवाद का युक्तियुक्त निरसन एवं निर्मूलन किया है। साथ ही अपना प्रमाणपुष्ट प्रतिपादन भी प्रस्तुत किया है।

साहित्य-सेवा : 40 पुस्तकें तथा 350 से अधिक शोधालेख प्रकाशित।

गुरु नानक देव विश्वविद्यालय, अमृतसर से अवकाश-प्राप्त (1977-2001) प्रोफ़ेसर। विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन (अक्तूबर 1988), महात्मा गांधी अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा (जनवरी 2005-दिसम्बर 2007) तथा केन्द्रीय विश्वविद्यालय, हैदराबाद (फरवरी एवं नवम्बर 2009) में विजिटिंग प्रोफ़ेसर रहे। भारतीय सांस्कृतिक सम्बन्‍ध परिषद्, भारत सरकार, नई दिल्ली द्वारा 1991 में त्रिनिदाद एवं 1995 में पेइचिंग विश्वविद्यालय के लिए विजिटिंग प्रोफ़ेसर नियुक्त।  महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा से प्रकाशित ‘तुलनात्मक साहित्य विश्वकोश’ (2008) का प्रविष्टि-लेखन करवाया एवं अतिथि-सम्पादन किया।

उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा 2020 के ‘भारत भारती सम्मान’ से सम्मानित।

 

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