Tulsi Kavya Mimansa

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Tulsi Kavya Mimansa
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तुलसीदास महाकवि थे। काव्यस्रष्टा और जीवनद्रष्टा थे। वे धर्मनिष्ठ समाज-सुधारक थे। अपने साहित्य में उन्होंने समाज का आदर्श प्रस्तुत किया, ऐसा महाकाव्य रचा जो हिन्दी-भाषी जनता का धर्मशास्त्र भी बन गया। तुलसी गगनविहारी कवि नहीं थे, उनकी लोकदृष्टि अलौकिक थी। उन्होंने आदर्श की संकल्पना को यथार्थ जीवन में उतारा। उनके द्वारा रचे गए गौरव-ग्रन्थ हिन्दी साहित्य के रत्न हैं। सौन्दर्य और मंगल का, प्रेय और श्रेय का, कवित्व और दर्शन का असाधारण सामंजस्य उनके साहित्य की महती विशेषता है।

यह तुलसी-साहित्य की विराटता ही है कि उसकी सबसे अधिक टीकाएँ रची गई हैं। सबसे अधिक आलोचना-ग्रन्‍थ भी तुलसीदास पर ही लिखे गए हैं। सबसे अधिक शोध-प्रबन्धों का प्रणयन भी तुलसी पर ही हुआ है। ‘तुलसी-काव्य-मीमांसा’ भी उसी अटूट शृंखला की एक कड़ी है। इसमें तुलसीदास के दर्शन और काव्य का एक नया विवेचन प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है। इसके विवेच्य विषय
हैं : अध्ययन-सामग्री, तुलसीकृत रचनाओं की प्रामाणिकता, तुलसीदास का जीवनचरित, उनकी आत्मकहानी, परिस्थितियों का प्रभाव एवं उनके साहित्य में युग की अभिव्यक्ति, उनके काव्य-सिद्धान्त, काव्य का भावपक्ष अर्थात् प्रतिपाद्य विषय, उनका कलापक्ष और उनके गौरवग्रन्थ, जिनमें यहाँ ‘रामचरितमानस', ‘विनयपत्रिका’, ‘गीतावली' तथा ‘कवितावली' को लिया गया है।

निस्सन्देह, तुलसीदास के अध्येताओं और जिज्ञासु पाठकों के लिए यह ग्रन्थ उपादेय होगा।

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Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 1977
Edition Year 2024, Ed. 6th
Pages 440p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
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Author: Uday Bhanu Singh

डॉ. उदयभानु सिंह

जन्म : 1 फरवरी, 1917 को ग्राम—बैरी, ज़िला—आजमगढ़ में।

शिक्षा : प्राथमिक शिक्षा गाँव में ही। उच्च शिक्षा जौनपुर, मुम्बई, आगरा और लखनऊ में। हिन्दी, संस्कृत दोनों में एम.ए. क्रमश: बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय और लखनऊ विश्वविद्यालय से। ‘महावीरप्रसाद द्विवेदी और उनका युग’ विषय पर पीएच.डी., डी.लिट्.।

1947 से अध्यापन। बलवंत राजपूत कॉलेज, आगरा में प्राध्यापक रहे, फिर दिल्ली विश्वविद्यालय में प्राध्यापक और रीडर। एक वर्ष तक हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय, शिमला में हिन्दी के विभागाध्यक्ष और स्नातकोत्तर अध्ययन-केन्द्र के निदेशक। 1973 से प्राध्यापक और हिन्दी विभागाध्यक्ष रहते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय से 1982 में सेवानिवृत्त।

प्रमुख कृतियाँ : ‘महावीरप्रसाद द्विवेदी और उनका युग’, ‘हिन्दी के स्वीकृत शोधप्रबन्ध’, ‘अनुसन्धान का विवेचन’, ‘तुलसी-दर्शन-मीमांसा’, ‘तुलसी-काव्य-मीमांसा’ (आलोचना); ‘तुलसी’, ‘छायावाद, भारतीय काव्यशास्त्र’, ‘साहित्य अध्ययन की दृष्टियाँ’ (सं.), ‘संस्कृत नाटक’ (अनुवाद)।

उत्तर प्रदेश सरकार से तीन बार पुरस्कृत, ‘डालमिया पुरस्कार’ और हिन्दी अकादमी, दिल्ली द्वारा सम्मानित।

निधन : 21 फ़रवरी, 2010

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