Kamayani-Lochan : Vols. 1-2

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Kamayani-Lochan : Vols. 1-2

डॉ. उदयभानु सिंह भारतीय दर्शन और संस्कृत काव्यशास्त्र के गहन अध्येता थे। तुलसीदास पर उनके ग्रन्थ अपने प्रकाशन-काल से ही निरन्तर तुलसी काव्य के रसग्राही पाठकों और शोधार्थियों के लिए प्रामाणिक स्रोत-सामग्री की भूमिका निबाह रहे हैं। ‘कामायनी-लोचन’ उसी परम्परा को आगे बढ़ानेवाली रचना है।

विद्वान लेखक ने प्राक्कथन में इस तथ्य का उल्लेख किया है कि कामायनी आधुनिक काव्य का “ऐसा गौरवग्रन्थ है जिस पर सबसे अधिक आलोचनात्मक पुस्तकें तथा लेख लिखे गए हैं; सबसे अधिक टीकाएँ लिखी गई हैं, सबसे अधिक शोधपरक निबन्ध एवं प्रबन्ध प्रणीत हुए हैं, और सर्वाधिक विवाद भी हुआ है।” यह कथन इस सामग्री से उनके बाख़बर होने का प्रमाण है। इस सामग्री की ख़ूबियों या ख़ामियों पर उन्होंने कोई टिप्पणी नहीं की। विनम्रतापूर्वक बस इतना जोड़ा कि
“ ‘कामायनी’ के विषय में बहुत-कुछ कहा जा चुका है, परन्तु बहुत-कुछ अनकहा भी रह गया है। अतएव उनके अध्ययन की शृंखला को आगे बढ़ाने की आवश्यकता है। ‘कामायनी-लोचन’ उसी शृंखला की एक कड़ी है।’’

कहना न होगा कि ‘कामायनी-लोचन’ हिन्दी में कामायनी की टीका-व्याख्याओं की किसी चली आती अधूरी परम्परा की पूरक कड़ी-भर नहीं है। उसमें जो कहने से रह गया उसे कहकर रिक्त स्थान की पूर्ति का दायित्व निर्वाह भर करने का प्रयास नहीं है। उसका आदर्श तो संस्कृत-आचार्यों की वह समृद्ध टीका-व्याख्या परम्परा है जिसके आधार पर लेखक ने इसका नामकरण किया है।

दो खंडों में विभाजित इस ग्रन्थ में ‘कामायनी’ के सर्गों की व्याख्या-समीक्षा के साथ इसकी शब्द-सूची प्रस्तुत की गई है। प्रस्तुति की एक निश्चित प्रविधि है। ऐसा ढाँचाबद्ध पैटर्न जिससे एकरूपता और एकरसता एक साथ पैदा होती है। एक ऐसा अकादमिक अनुशासन जिसका पालन वे शिक्षक के रूप में अपनी कक्षाओं में भी करते थे। वे पहले सर्ग-वार कथा-सूत्र प्रस्तुत करते हैं, उसके बाद एक संक्षिप्त समीक्षात्मक टिप्पणी जोड़कर अन्त में शब्दार्थ देते हैं—जिसे उन्होंने शब्द-सूची कहा है। इस प्रकार ‘लोचन’ कामायनी का शब्दकोश भी है।

अकादमिक अनुशासन के विरोधियों को इसकी विधिबद्धता से रसज्ञता और सर्जनात्मकता की कमी की शिकायत हो सकती है। भूलना नहीं चाहिए कि इसका रचयिता दर्शन, व्याकरण और काव्यशास्त्र का अध्येता विद्वान तो था, अभिनवगुप्त की तरह कवि नहीं। उनकी यह कृति भले ही पाठकों को गहरी रसमग्नता का संतोष न दे पर ‘कामायनी’ की समझ में अनेक भ्रान्तियों का निवारण करेगी और उसकी गहन अर्थ-व्यंजनाओं के उद्घाटन में मददगार होगी—व्युत्पत्यर्थ और दार्शनिक अनुषंगों की दृष्टि से।

—निर्मला जैन

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2011
Edition Year 2011, Ed. 1st
Pages 992p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 7
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Editorial Review

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Author: Uday Bhanu Singh

डॉ. उदयभानु सिंह

जन्म : 1 फरवरी, 1917 को ग्राम—बैरी, ज़िला—आजमगढ़ में।

शिक्षा : प्राथमिक शिक्षा गाँव में ही। उच्च शिक्षा जौनपुर, मुम्बई, आगरा और लखनऊ में। हिन्दी, संस्कृत दोनों में एम.ए. क्रमश: बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय और लखनऊ विश्वविद्यालय से। ‘महावीरप्रसाद द्विवेदी और उनका युग’ विषय पर पीएच.डी., डी.लिट्.।

1947 से अध्यापन। बलवंत राजपूत कॉलेज, आगरा में प्राध्यापक रहे, फिर दिल्ली विश्वविद्यालय में प्राध्यापक और रीडर। एक वर्ष तक हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय, शिमला में हिन्दी के विभागाध्यक्ष और स्नातकोत्तर अध्ययन-केन्द्र के निदेशक। 1973 से प्राध्यापक और हिन्दी विभागाध्यक्ष रहते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय से 1982 में सेवानिवृत्त।

प्रमुख कृतियाँ : ‘महावीरप्रसाद द्विवेदी और उनका युग’, ‘हिन्दी के स्वीकृत शोधप्रबन्ध’, ‘अनुसन्धान का विवेचन’, ‘तुलसी-दर्शन-मीमांसा’, ‘तुलसी-काव्य-मीमांसा’ (आलोचना); ‘तुलसी’, ‘छायावाद, भारतीय काव्यशास्त्र’, ‘साहित्य अध्ययन की दृष्टियाँ’ (सं.), ‘संस्कृत नाटक’ (अनुवाद)।

उत्तर प्रदेश सरकार से तीन बार पुरस्कृत, ‘डालमिया पुरस्कार’ और हिन्दी अकादमी, दिल्ली द्वारा सम्मानित।

निधन : 21 फ़रवरी, 2010

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