Tola

Edition: 2023, Ed/ 1st
Language: Hindi
Publisher: Radhakrishna Prakashan
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Tola

हिन्दी में पिकरेस्क उपन्यासों की परम्परा बहुत पुरानी नहीं है। 1928 में केदारनाथ अग्रवाल ने ‘पतिया’ लिखा, इसी के आसपास सूर्यकान्त त्रिापाठी ‘निराला’ के ‘बिल्लेसुर बकरिहा’ और ‘कुल्लीभाट’ भी लिखे गए। ये सभी उपन्यास, जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, व्यक्ति- केन्द्रित हैं। पश्चिम में भी पिकरेस्क उपन्यासों का जन्म ‘डेविड कॉपरफील्ड’ जैसी व्यक्ति-केन्द्रित कथाओं से हुआ था। 
सामन्ती व्यवस्था के अन्तिम दिनों में समाज में एक ऐसा वर्ग उभर रहा था जो औद्योगिक आवश्यकताओं के लिए अनिवार्य था। समाज के घूरे पर फेंक दिया गया यह वर्ग नाले के उस पार का है, रोज कुआँ खोदने को विवश जो केवल अपने जीवट के बल पर ही जीवित है। समाज के ये दईमारे, बेचारे, हारे हुए लोग रमेश दत्त दुबे के टोले के बाशिंदे हैं—इनके नाम भले अलग- अलग हों, पर इनके अभाव एक से हैं, इनके चेहरे एक से हैं, इनके जीवन की दुर्घटनाएँ एक सी हैं क्योंकि रूढ़ियों और अभावों की जिस चक्की में ये पिस रहे हैं, उसमें साबुत बचा न कोय। 
रमेश के टोले में जो रहते हैं, कौन हैं वे लोग—बीड़ी और अवैध शराब बनानेवाले, गर्भपात करवानेवाले, मछली मारनेवाले, बैलगाड़ी हाँकने वाले। स्त्रियाँ हैं तो वे जंगल से लकड़ियाँ बीनने के लिए हैं, पति की मार खाने के लिए हैं, देह व्यापार के लिए हैं, लड़ने-झगड़ने के लिए हैं। इन्हें अपने जीवन से कोई शिकायत नहीं है क्योंकि इन्हें अपने जीवन से कोई अपेक्षा ही नहीं है। 
‘टोला’ की कहानी का न कहीं से प्रारम्भ होता है, न कहीं अन्त क्योंकि इस कथा के पात्रों का न कोई आदि है, न अन्त। बरसात में उफनते नाले में जैसे कचरा बहता है वैसे ही टोले के पात्र आते-जाते हैं—एक-दूसरे को ठेलते हुए, थोड़ी देर के लिए, एक हहराती हुई गन्दगी को बहाकर आगे बढ़ाने के लिए ताकि वह नयी गन्दगी के लिए जगह बना सकें। किसी बेहतर जीवन का न कोई वायदा, न कोई यकीं, न कोई उम्मीद। पर लेखक को इन्तजार है।  शायद  यही  इन्तजार  ‘टोला’  को सर्जनात्मक संवेदना से मंडित करता है और उसे आस्था-विहीन नहीं बनाता।
—कान्तिकुमार जैन

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Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 2023
Edition Year 2023, Ed/ 1st
Pages 108p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22.5 X 14.5 X 1
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Author: Ramesh Dutt Dube

रमेश दत्त
रमेश दत्त दुबे का जन्म 31 मार्च, 1940 को सागर, मध्यप्रदेश में हुआ। उनकी प्रकाशित पुस्तकें हैं—‘पृथ्वी का टुकड़ा’ और ‘गाँव का कोई इतिहास नहीं होता’ (कविता-संग्रह); ‘पावन मोरे घर आयो’ (कहानी-संग्रह); ‘पिरथवी भारी है’ (बुन्देली लोककथाओं का पुनर्लेखन); ‘कहनात’ (बुन्देली कहावतों का कोश); ‘कर लो प्रीत खुलासा गोरी’ (लोककवि ईसुरी की फागों का हिन्दी रूपान्तरण); ‘अब्बक-दब्बक’ और ‘रेलगाड़ी छुक-छुक’ (बाल-गीत संग्रह); साम्प्रदायिकता (विचार पुस्तक); ‘मेरा शहर’, ‘विहग’ (सम्पादन)। ‘साप्ताहिक-हन्टर’, अनियतकालिक ‘समवेत’ और ‘कविता मासिक विन्यास’ का सम्पादन सहयोग। ‘साप्ताहिक प्रतिपक्ष’, ‘दैनिक भास्कर’, ‘पहले-पहल’ और ‘सार्थक संवाद’ आदि में स्तम्भ लेखन।
23 दिसम्बर, 2013 को उनका निधन हुआ।

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