Swadhinata, Pyar : Sándor Petőfi Ki Kavitayein

Author: Sándor Petőfi
Editor: Margit Koves
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Swadhinata, Pyar : Sándor Petőfi Ki Kavitayein
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हंगरी में बच्चे माँ-पिता, खाना-पीना आदि शब्दों के बाद जो शब्द सबसे पहले सीखते हैं, वह है पैतोफ़ी–कवि। उनकी भाषा में शान्दोर पैतोफ़ी, कवि एवं कवि-कर्म के पर्याय हैं। हंगरी के यह अमर कवि हंगरी को आस्ट्रियाई साम्राज्य से मुक्त कराने का आह्वान करते हुए स्वयं रणभूमि में कूद पड़े थे और मात्र 26 वर्ष की आयु में शहीद हो गए थे। वह 1848 का दौर था, जब लगभग सारे यूरोप में राष्ट्रीय स्वाधीनता के लिए क्रान्तियाँ हो रही थीं।

2022 में पैतोफ़ी के जन्म के 200 बरस पूरे हो रहे हैं। इतनी कम उम्र में और लगभग सात साल की अवधि में ही, पैतोफ़ी ने हंगारी साहित्य को कविता, लोकगीत, नाट्य रूपक, पत्र और अनेक महाकाव्यों की जो भेंट दी, उसने हंगारी भाषा और साहित्य में भी अनेक क्रान्तियों की नींव रख दी।

‘स्वाधीनता, प्यार’ में संकलित कविताएँ दर्शाती हैं कि इस आधुनिक कवि ने मूलत: लोकवाणी और लोकगीतों की शैली में निजी, सामाजिक, राजनीतिक, पारिवारिक और सौन्दर्य-प्रेम-मस्ती के कितने-कितने आयामों में प्रवेश किया था। पैतोफ़ी का रचना संसार नृत्य, संगीत, फ़िल्म, काव्य आदि की अजस्र धाराएँ आज भी प्रवाहित कर रहा है।

इन कविताओं में अनुभूति, कल्पना, विचार, आशा-निराशा आदि अनेक भावनाओं का समागम है। विनोद, कटाक्ष, खिलन्दड़ापन, दीवानगी-मस्ती के साथ-साथ, स्वाधीनता के अडिग सेनानी की दृष्टि सामाजिक विषमताओं को उघाड़ती चलती है–दुनिया को एक बेहतर, मानवीय दुनिया बनाने का आह्वान करते हुए।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2022
Edition Year 2022, Ed. 1st
Pages 128p
Translator Not Selected
Editor Margit Koves
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22.5 X 14.5 X 1.5
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Sándor Petőfi

Author: Sándor Petőfi

हंगरी के क्रान्तिकारी-योद्धा कवि शान्दोर पैतोफ़ी का जन्म 1 जनवरी, 1823 में हंगरी के किशकोरोश गाँव में हुआ था। उन्हें हंगारी साहित्य का ‘क्रान्ति का धूमकेतु’ कहा गया है। पैतोफ़ी की पहली कविता ‘वाइन पीनेवाला’ (1842) शीर्षक से प्रकाशित हुई थी। शराब, प्रेम, रोमांटिक डाकुओं आदि पर उन्होंने लोकगीतों की शैली में कविताएँ लिखीं। लयात्मकता, सादगी, आम सहज भाषा उनकी कविताओं की विशेषता है। पैतोफ़ी अपनी कविताओं और गीतों को ‘लोकगीत’ कहना पसन्द करते थे। सन् 1847 में—पैश्त में मार्च क्रान्ति से एक साल पहले पैतोफ़ी का समग्र साहित्य प्रकाशित हुआ।

31 जुलाई, 1849 को वे युद्धस्थल में शहीद हो गए।

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