Suraj Ko Angootha

Poetry
As low as ₹128.00 Regular Price ₹160.00
You Save 20%
In stock
Only %1 left
SKU
Suraj Ko Angootha
- +

सूरज को अँगूठा दिखाते हुए ठहाके लगाने का साहस करती जितेन्द्र श्रीवास्तव की कविताओं का प्राणतत्त्व राजनीति और समाजनीति—दोनों के समान योग से निर्मित है। यही कारण है कि जितेन्द्र की कविताएँ इकहरी नहीं, बहुस्तरीय हैं। मनुष्य और मनुष्यता की चिन्ता करने के क्रम में यह कवि सत्ताकांक्षी राजनीति और वर्चस्ववादी सामाजिक संरचना की गहरी पड़ताल करता है। यह अकारण नहीं है कि वह बात करता है सपनों की, इच्छाओं की और चुप्पी के समाजशास्त्र की। पिछले तीन दशकों से हिन्दी कविता में निरन्तर सक्रिय, स्वीकृत और सम्मानित जितेन्द्र श्रीवास्तव गृहस्थ जीवन के सिद्ध और अद्वितीय कवि हैं। उनकी कविता से ही एक शब्द लेकर कहें तो पारिवारिक विन्यास के रास्ते जीवन की विविधता को प्रकट करने का कौशल उनकी कविताओं का जीवद्रव्य है। जितेन्द्र श्रीवास्तव की भाषा में अपूर्व और दुर्लभ आत्मीयता है। चिन्तन करते हुए, समस्याओं पर विचार करते हुए, दुःख बतियाते हुए, पत्नी से कुछ कहते हुए, छोटे भाई की शादी में माँ की चर्चा करते हुए, पिता को याद करते हुए, पुराने मित्र से मिलते हुए, बहुत दिनों के बाद अपनी पुश्तैनी खेती-बारी को निहारते हुए, आत्मबल को बटोरते हुए—आप कविताओं में विन्यस्त इन सभी रंगों से गुज़रते हुए पाएँगे कि जितेन्द्र की काव्य-भाषा में 'आत्मीयता' आश्चर्यजनक रूप से बनी रहती है। न कोई दिखावे की तल्खी, न नफ़रत का अतिरिक्त प्रदर्शन—फिर भी पक्षधरता में कोई विचलन नहीं। यह रक्त और विवेक में समाई हुई पक्षधरता है जिसे व्यक्त करने के लिए कवि को अलग से कोई उद्यम नहीं करना पड़ता। उम्मीद है उनका यह नया संग्रह हिन्दी कविता के पाठकों को एक नया आस्वाद देगा।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back, Paper Back
Publication Year 2020
Edition Year 2020, 1st Ed.
Pages 144p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Write Your Own Review
You're reviewing:Suraj Ko Angootha
Your Rating

Editorial Review

It is a long established fact that a reader will be distracted by the readable content of a page when looking at its layout. The point of using Lorem Ipsum is that it has a more-or-less normal distribution of letters, as opposed to using 'Content here

Jitendra Srivastava

Author: Jitendra Srivastava

जितेन्द्र श्रीवास्तव

उ.प्र. के देवरिया ज़िले की रुद्रपुर तहसील के एक गाँव सिलहटा में जन्मे प्रतिष्ठित कवि-आलोचक जितेन्द्र श्रीवास्तव ने बी.ए. तक की पढ़ाई गाँव और गोरखपुर में की। तत्पश्चात् जे.एन.यू., नई दिल्ली से हिन्दी साहित्य में एम.ए., एम.फिल और पीएच.डी.।

हिन्दी के साथ-साथ भोजपुरी में भी लेखन-प्रकाशन। ‘इन दिनों हालचाल’, ‘अनभै कथा’, ‘असुन्दर सुन्दर’, ‘बिलकुल तुम्हारी तरह’, ‘कायान्तरण’, ‘कवि ने कहा’ (कविता-संग्रह); ‘भारतीय समाज, राष्ट्रवाद और प्रेमचन्द’, ‘शब्दों में समय’, ‘आलोचना का मानुष-मर्म’, ‘सर्जक का स्वप्न’, ‘विचारधारा, नए विमर्श और समकालीन कविता’, ‘उपन्यास की परिधि’, ‘रचना का जीवद्रव्य’ (आलोचना); ‘शोर के विरुद्ध सृजन’ (ममता कालिया का रचना-संसार), ‘प्रेमचन्द : स्त्री जीवन की कहानियाँ’, ‘प्रेमचन्द : दलित जीवन की कहानियाँ’, ‘प्रेमचन्द : स्त्री और दलित विषयक विचार’, ‘प्रेमचन्द : हिन्दू-मुस्लिम एकता सम्बन्धी कहानियाँ और विचार’, ‘प्रेमचन्द : किसान जीवन की कहानियाँ’, ‘प्रेमचन्द : स्वाधीनता आन्दोलन की कहानियाँ’, ‘कहानियाँ रिश्तों की : परिवार’ (सम्पादन) प्रकाशित कृतियाँ हैं। इनके अतिरिक्त पत्र-पत्रिकाओं में दो सौ से अधिक आलेख प्रकाशित हैं।

इन्होंने भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली से प्रकाशित गोदान, रंगभूमि और ध्रुवस्वामिनी की भूमिकाएँ लिखी हैं। कुछ कहानियाँ भी लिखी हैं, जो प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं।

इनकी कई कविताओं का अंग्रेज़ी, मराठी, उर्दू, उड़िया और पंजाबी में अनुवाद हुआ है। लम्बी कविता ‘सोनचिरई’ की कई नाट्य-प्रस्तुतियाँ हो चुकी हैं। कई विश्वविद्यालयों के कविता केन्द्रित पाठ्यक्रमों में कविताएँ शामिल हैं।

कुछ वर्षों तक महत्त्वपूर्ण साहित्यिक पत्रिका 'उम्मीद’ का सम्पादन किया। विश्वविद्यालों और प्रतिष्ठित संस्थाओं में दो सौ से अधिक व्याख्यान दे चुके हैं।

अब तक कविता के लिए ‘भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार’ और आलोचना के लिए ‘देवीशंकर अवस्थी सम्मान’ सहित हिन्दी अकादमी, दिल्ली का ‘कृति सम्मान’, उ.प्र. हिन्दी संस्थान का ‘रामचन्द्र शुक्ल पुरस्कार’, उ.प्र. हिन्दी संस्थान का ‘विजयदेव नारायण साही पुरस्कार’, भारतीय भाषा परिषद्, कोलकाता का ‘युवा पुरस्कार’, ‘डॉ. रामविलास शर्मा आलोचना सम्मान’ और ‘परम्परा ऋतुराज सम्मान’ ग्रहण कर चुके हैं।

जीविका के लिए अध्यापन कार्य से जुड़े हैं। कार्यक्षेत्र पहाड़, गाँव और अब महानगर। इन दिनों इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के मानविकी विद्यापीठ में हिन्दी के प्रोफ़ेसर हैं। साथ ही इग्नू के पर्यटन एवं आतिथ्य सेवा प्रबन्धन विद्यापीठ के निदेशक तथा विश्वविद्यालय के कुलसचिव भी हैं।

हिन्दी संकाय, मानविकी विद्यापीठ, ब्लॉक—एफ़, इग्नू, मैदानगढ़ी, नई दिल्ली–68

Read More
Books by this Author

Back to Top