Sukhi Ghar Society

Author: Vinod Das
As low as ₹315.00 Regular Price ₹350.00
You Save 10%
In stock
Only %1 left
SKU
Sukhi Ghar Society
- +
‘सुखी घर सोसाइटी’ उपन्यास महानगर मुम्बई के उपनगर स्थित एक रिहाइशी परिसर का ऐसा वृत्तान्त है जिसमें क़स्बे के एक मुहल्ले की तरह विविधवर्णी जीवन की आपाधापी है, वहीं उसमें महानगर के अन्तर्द्वन्द्व, रहवासियों की हताशाएँ और उनके दैनिक संघर्ष की छोटी-छोटी ऐसी मार्मिक कथाएँ भी हैं जो रिसते ज़ख़्मों की तरह हमेशा उनके भीतर दुखती रहती हैं। लेकिन इसकी कथा-भूमि केवल महानगर तक सीमित नहीं है। इसमें गाँव से उखड़े हाशियों पर रहनेवालों की व्यथा-कथाएँ भी हैं जो महानगर पर्यटन के लिए नहीं, रोजी-रोटी के लिए आते हैं और हर दिन वहाँ तिल-तिल मरते हुए अपने गाँव लौटने का सपना देखते रहते हैं। विस्थापन की टीस, पानी की किल्लत, समय पर काम के लिए पहुँचने के लिए लोकल ट्रेन की रगड़ा-रगड़ी, बदबूदार सीवर की जानलेवा सफ़ाई, बार में नाचती देह बेचने की मजबूरी, स्थानीय भाषा न बोल पाने पर पिटाई-धुनाई जैसी तमाम ज़िल्लतों और घृणा के बीच मनुष्य अपने भीतर प्रेम सरीखी कोमल अनुभूति को किस तरह बचाता है, यह उपन्यास इसका अद्भुत आख्यान है। इसमें जहाँ मुम्बई के इतिहास की हल्की झलक है, वहीं देश की दरकती हुई लोकतान्त्रिक व्यवस्था का वर्तमान भी है। उपन्यास में वर्तमान और इतिहास की सहज आवाजाही हमें विस्मित करती है। इसे पढ़ते हुए जहाँ बार-बार इस बात की पुष्टि होती है कि इतिहास को बीते समय का कंकाल मानने से इसकी स्याह छायाएँ कई बार वर्तमान की ज़मीन को भी ऊसर बनाती हैं। हालाँकि, इसके कथ्य में समय की अनुभूति इतनी गहरी है कि वह ऐतिहासिकता भी रचती चलती है। सोसाइटी के बहुसंख्य फ़्लैटों की तरह इसकी कथा में विविध चरित्रों का रंगारंग संसार गुंफित है। इस उपन्यास का हर अध्याय अपने आप में एक स्वतंत्र कहानी पढ़ने का विरल अनुभव देता है जबकि हर अध्याय अपने में स्वायत्त होने के बावजूद अपने पूर्व के अध्याय की कोख से निकला भी लगता है। कहना न होगा कि काव्यात्मक भाषा में अपने समय की धड़कनों को जीवित यथार्थ की तरह अपनी रक्त की धमनियों में पढ़ना आज के अमानवीय दौर में मनुष्य बने रहने के लिए एक सकारात्मक कारवाई है जिसकी सृजनात्मक कसौटी पर विनोद दास का यह उपन्यास पूरी तरह खरा उतरता है।
More Information
Language Hindi
Format Hard Back, Paper Back
Publication Year 2022
Edition Year 2022, Ed. 1st
Pages 396p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 20.5 X 13.5 X 2.5
Write Your Own Review
You're reviewing:Sukhi Ghar Society
Your Rating
Vinod Das

Author: Vinod Das

विनोद दास

विनोद दास का जन्म बाराबंकी, उत्तर प्रदेश के कमोली गाँव में 10 अक्टूबर, 1955 को हुआ। उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी में एम.ए. किया और मोहन होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज से चार वर्षीय चिकित्सा पाठ्यक्रम ‘बीएमएस’ की डिग्री ली।

उनकी प्रकाशित कृतियाँ हैं—‘ख़ि‍लाफ़ हवा से गुज़रते हुए’, ‘वर्णमाला से बाहर’, ‘कुजात’ (कविता-संग्रह); ‘सुखी घर सोसाइटी’ (उपन्यास); ‘कविता का वैभव’, ‘सृजन का आलोक’, ‘भारतीय सिनेमा का अन्त:करण’ (आलोचना); ‘बतरस’ (साक्षात्कार); ‘साक्षरता और समाज’ (निबन्ध); ‘कैमरा मेरी तीसरी आँख’ (अनुवाद)।

उनकी कविताओं के अनुवाद हिन्दी से इतर विभिन्न भारतीय भाषाओं और विदेशी भाषाओं में हो चुके हैं। अंग्रेजी में अनूदित उनकी कविताओं का संकलन ‘द वर्ल्ड ऑन ए हैंडकार्ट’ शीर्षक से प्रकाशित है। उन्होंने काफ़्का, रुडयार्ड किपलिंग, बोर्खेस, लोर्का, पाब्लो नेरूदा जैसे विश्वविख्यात लेखकों की कृतियों के अंग्रेज़ी से हिन्दी अनुवाद भी किए हैं। ‘जनसत्ता’ कोलकाता के सबरंग में ‘देशान्तर’ स्तम्भ में विदेशी कविताओं के निय‍मित अनुवाद प्रकाशित होते रहे हैं। भारतीय भाषा परिषद् की मासिक पत्रिका ‘वागर्थ’ के सम्पादक रहे हैं। साहित्यिक पत्रिका ‘अन्तर्दृष्टि’ का प्रकाशन और सम्पादन भी किया है।

उन्हें ‘श्रीकान्त वर्मा सम्मान’, ‘केदारनाथ अग्रवाल सम्मान’, ‘शमशेर सम्मान’ और युवा लेखन के लिए ‘भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार’ से सम्मानित किया जा चुका है।

सम्पर्क : tiwarvk1955@yahoo.com

Read More
Books by this Author
Back to Top