Soor Sanchyita

Author: Manager Pandey
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Soor Sanchyita
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सूर-साहित्य के अध्ययन, मनन और विश्लेषण से चिन्तनशील मानस को सहज ही यह निष्कर्ष प्राप्त हो जाता है कि सूरदास में जन-जीवन के मूल तत्त्वों का ज्ञान और भक्ति की भावना का बोध इस प्रकार समन्वित है कि सम्पूर्ण सूर-साहित्य में व्यक्ति है और समाज भी, राग है और विराग भी, भावविह्वल हृदय है और चिन्तनशील मस्तिष्क भी। उसमें गृहस्थ और साधु तथा भक्त और भावुक सबकी भावना और आदर्श का समन्वय है। सूर-साहित्य की सीमा में प्रवेश करनेवाले प्रत्येक सहृदय को उसमें उसके मन एवं आत्मा की आत्मीय भंगिमाएँ मिलेंगी, उसमें अतीत की झाँकी, वर्तमान का सम्बल और भविष्य का आदर्श प्राप्त होगा। सूरदास ने जीवन के विभिन्न उदात्त पक्षों का उद्घाटन कर उन्हें काम्य और कमनीय बना दिया है तथा सम्पूर्ण रागों का कृष्णार्पण कर उन्हें दिव्य आभा से मंडित कर दिया है।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2012
Edition Year 2012, Ed. 1st
Pages 168P
Translator Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1.5
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Author: Manager Pandey

मैनेजर पाण्डेय

जन्म : 23 सितम्बर, 1941 को बिहार प्रान्त के वर्तमान गोपालगंज जनपद के एक गाँव ‘लोहटी’ में हुआ।

शिक्षा : आरम्भिक शिक्षा गाँव में तथा उच्च शिक्षा काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में हुई, जहाँ से उन्होंने एम.ए. और पी-एच.डी. की उपाधियाँ प्राप्त कीं।

प्रमुख कृतियाँ : ‘शब्द और कर्म’, ‘साहित्य और इतिहास दृष्टि’, ‘साहित्य के समाजशास्त्र की भूमिका’, ‘भक्ति आन्दोलन और सूरदास का काव्य’, ‘अनभै साँचा’, ‘आलोचना की सामाजिकता’, ‘संकट के बावजूद’ (अनुवाद, चयन और सम्पादन) ‘देश की बात’ (सखाराम गणेश देउस्कर की प्रसिद्ध बांग्ला पुस्तक ‘देशेर कथा’ के हिन्दी अनुवाद की लम्बी भूमिका के साथ प्रस्तुति), ‘मुक्ति की पुकार’ (सम्पादन), ‘सीवान की कविता’ (सम्पादन)।

सम्मान : हिन्दी अकादमी द्वारा दिल्ली का ‘शलाका सम्मान’, ‘साहित्यकार सम्मान’, ‘राष्ट्रीय दिनकर सम्मान’, रामचन्द्र शुक्ल शोध संस्थान, वाराणसी का ‘गोकुल चन्द्र शुक्ल पुरस्कार’ और दक्षिण भारत प्रचार सभा का ‘सुब्रह्मण्य भारती सम्मान’।

मैनेजर पाण्डेय ने हिन्दी में एक ओर ‘साहित्य और इतिहास-दृष्टि’ के माध्यम से साहित्य के बोध, विश्लेषण तथा मूल्यांकन की ऐतिहासिक दृष्टि का विकास किया है तो दूसरी ओर ‘साहित्य के समाजशास्त्र’ के रूप में हिन्दी में साहित्य की समाजशास्त्रीय दृष्टि के विकास की राह बनाई है। उन्होंने भक्त कवि सूरदास के साहित्य की समकालीन सन्दर्भों में व्याख्या कर भक्तियुगीन काव्य की प्रचलित धारणा से अलग एक सर्वथा नई तर्काश्रित प्रासंगिकता सिद्ध की है। हिन्दी में दलित साहित्य और स्त्री स्वतंत्रता के समकालीन प्रश्नों पर बहसें हुई हैं, उनमें पाण्डेय जी की अग्रणी भूमिका को बार-बार रेखांकित किया गया है।

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के भाषा संस्थान के भारतीय भाषा केन्द्र से सेवानिवृत्त।

सम्प्रति : स्वतंत्र लेखन।

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