महमूद ग़ज़नवी ने सोमनाथ लूटा, उसके बाद भारत के हिन्दुओं में मुस्लिमों के प्रति अरुचि जागी, जो और दृढ़ होती गई। ऐसा होना नहीं चाहिए था। महमूद के दो मुख्य सेनापति हिन्दू थे और महमूद धर्म के अगुआ के रूप में नहीं आया था। उसकी भूख सत्ता और सम्पत्ति की थी। उसके धर्माध्यक्ष भी उससे सावधान रहते थे। अन्त में वह भाग निकला। उस समय भारत में बचे हुए उसके साथी शादी कर यहाँ के समाज में मिल गए—जिनसे बाढेल और शेखावत हुए। यहाँ तत्कालीन राजनीतिक–सामाजिक स्थितियों का वर्णन करते हुए उपन्यासकार ने लोगों के निजी सुख–दु:ख तथा दाँव–पेच को भी संजीदगी से उजागर किया है।

लेखक ने यहाँ दो महत्त्वपूर्ण कार्य किए हैं—(1) सत्ता और सम्पत्ति के लोभी राजपुरुषों द्वारा धार्मिक प्रजाजनों के बीच खड़ी की गई ग़लतफ़हमी दूर करना, और (2) सृष्टि में व्याप्त कल्याणकारी सौन्दर्य को शिवतत्त्व के रूप में निरूपित करना।

ऐतिहासिक तथ्यों के प्रति वफ़ादार रहते हुए लेखक ने कहीं–कहीं छूट भी ली है लेकिन इस तरह कि कथासृष्टि के वातावरण में उपकारक सिद्ध हो।

सरस भाषा एवं रोचक शैली में यह उपन्यास पढ़ते हुए महसूस ही नहीं होता कि हम गुजराती उपन्यास का रूपान्तर पढ़ रहे हैं।

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Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2004
Edition Year 2004, Ed. 1st
Pages 256p
Translator Jagannath Pandit
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 2
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Raghuveer Chaudhary

Author: Raghuveer Chaudhary

रघुवीर चौधरी

जन्म : सन् 1938; बापुपुरा, महेसाणा (उत्तर गुजरात)।

शिक्षा : एम.ए. (हिन्दी, संस्कृत), पीएच.डी. (भाषाविज्ञान)।

कृतियाँ : गुजराती में दर्जनों मौलिक कृतियाँ। कुछ-एक का सम्पादन-अनुवाद। प्रमुख है : काव्य—‘तमसा’, ‘वहेता वृक्ष पवनमाँ’; उपन्यास—‘गोकुल’, ‘मथुरा’, ‘द्वारिका’, ‘पूर्वराग’, ‘अमृता’, ‘आवरण’, ‘वेणु वत्सला’, ‘उपरवास कथा-त्रयी’, ‘लागणी’, ‘सोमतीर्थ’; कहानी-संग्रह—‘आकस्मिक स्पर्श’, ‘गेरसमज’; नाटक—‘अशोक वन’, ‘झूलता किनारा’, ‘सिकन्दर सानी’; एकांकी—‘डिम लाइट’; रेखाचित्र—‘सहरानी भव्यता’; समीक्षा—‘गुजराती नवलकथा’, ‘अद्यतन कविता’, ‘वार्ता-विशेष’, ‘दर्शकना देशमाँ’।

सम्मान : गुजरात शासन द्वारा ‘कुमार चन्द्र’, ‘रणजीतराम सुवर्णचन्द्र’, ‘उपरवास कथा-त्रयी’ के लिए केन्द्रीय ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’ और ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ से सम्मानित।

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